BJP अध्यक्ष के घर में अजब-गजब, नारी शक्ति को शिकस्त देने की जद्दोजहद में मुसाफिर

नाहन, 05 नवंबर : हिमाचल प्रदेश के पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में एक कहावत मशहूर है, दाना खाद में-नेता पच्छाद में, ये वाक्य सही भी साबित होता हैं। मौजूदा विधानसभा चुनाव में भी हर घर में चुनावी बिसात का अंकगणित बनाया जा रहा है।

      हिमाचल प्रदेश के निर्माता डॉ वाईएस परमार के गृह निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस ने 36 साल बाद टिकट बदलने का फैसला लिया, इसका परिणाम बगावत में मिला है। मुसाफिर भी महिला शक्ति की राह में रोड़ा हैं। 1982 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीते गंगूराम मुसाफिर पर ही कांग्रेस ने न केवल 2017 के सामान्य चुनाव में दांव खेला, बल्कि 2019 के उपचुनाव में भी मुसाफिर को टिकट दिया गया था। तीन बार विधानसभा व एक बार लोकसभा का चुनाव हार चुके मुसाफिर की जगह इस बार कांग्रेस ने दयाल प्यारी पर दांव खेला।

        पच्छाद विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक मानचित्र पर खास मायने रखता है। पहला यह कि प्रदेश के निर्माता का गृह क्षेत्र है। डॉ. परमार का पैतृक घर भी पच्छाद हलके में आता है, यही नहीं 1998 में जब प्रेम कुमार धूमल पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो इसी विधानसभा क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले भाजपा नेता चंद्रमोहन ठाकुर ने ही भाजपा को सत्ता दिलवाने में अहम भूमिका निभाई थी, तब रमेश धवाला को भाजपा के पाले में लाने वाले चंद्रमोहन ठाकुर ही थे।

    धीरे-धीरे विधानसभा क्षेत्र की राजनीति आगे बढ़ी तो पच्छाद में भाजपा को एक शिक्षित व युवा प्रत्याशी के तौर पर सुरेश कश्यप मिले। हालांकि एयरफोर्स से रिटायर सुरेश कुमार कश्यप को 2007 में पहली बार गंगूराम मुसाफिर के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन इसके बाद  2012 व 2017 में सुरेश कश्यप जीते।  2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सुरेश कश्यप को शिमला संसदीय सीट से मैदान में उतारा, जिन्होंने जीत भी हासिल कर ली। उपचुनाव में भी सुरेश कश्यप प्रतिष्ठा बचाने में सफल हो गए।

         जुलाई 2020 में अचानक राजनीति ने करवट लिया, परिचय में सांसद के साथ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भी जुड़ गया। विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने राजगढ़ क्षेत्र की रीना कश्यप पर दांव खेला, इसमें सफलता भी मिल गई। वहीं भाजपा से रुष्ट होकर दयाल प्यारी भी मैदान में थी। हालांकि सिरमौर जिला परिषद में अपनी एक खास पहचान छोड़ने वाली दयाल प्यारी को मनाने में भाजपा ने कोई कोर कसर नहीं रखी थी, लेकिन वो मानने को तैयार नहीं हुई।

      भाजपा के खाते से 14 फीसदी मत चुराए तो कांग्रेस के गढ़ से 7 फीसदी वोट बैंक पर सेंध लगाई। वो एक महिला के नाते एक अलग पहचान बनाने में सफल हुई। इसी को आधार मानते हुए कांग्रेस ने 2022 के विधानसभा चुनाव में दयाल प्यारी को टिकट देने का निर्णय ले लिया। वैसे तो स्थानीय विधायक रीना कश्यप के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का फैक्टर नजर नहीं आ रहा, लेकिन आम जनता की पार्टी के एक शीर्ष नेता से नाराजगी ही भाजपा प्रत्याशी की परेशानी है।

     भाजपा इस बात को लेकर फूला नहीं समा रही कि कांग्रेस की बगावत के कारण पार्टी प्रत्याशी रीना कश्यप को दूसरी बार विधानसभा में एंट्री मिल जाएगी। लेकिन भाजपा को ये नहीं भूलना चाहिए कि उप चुनाव में बगावत के बावजूद भी भाजपा ने ही सीट जीती थी।

मुसाफिर नहीं रख सके बेटी के सिर पर हाथ

राजनीति की बिसात पर सब कुछ मुमकिन होता है। मौजूदा चुनाव में भी कई ऐसे निर्वाचन क्षेत्र हैं, जहां खून के रिश्ते ही आमने-सामने हैं। रिश्तेदारी भी ताक पर है। मुसाफिर का तो दयाल प्यारी से खून का रिश्ता भी नहीं है तो फिर वो दयाल प्यारी को कैसे बेटी स्वीकार कर राजनीतिक विरासत सौंप देते।

 शायद यही बात थी कि 1982 से निर्वाचन क्षेत्र में सक्रिय राजनीति कर रहे कांग्रेस के निष्कासित दिग्गज नेता जी आर मुसाफिर इस बात का साहस नहीं जुटा पाए कि वह सम्मान से राजनीतिक संन्यास लेकर दयाल प्यारी के सिर पर हाथ रख देते।

बता दें कि मुसाफिर के परिवार में दूसरी पीढ़ी में कोई नहीं है, जो उनकी राजनीतिक विरासत को संभाले। 1982 से 2007 तक गंगूराम मुसाफिर ही निर्वाचन क्षेत्र में सर्वे सर्वा रहे हिमाचल की राजनीति में शायद कम ही नेता है, जो लगातार सात बार विधानसभा पहुंचे हैं। देखना है कि मुसाफिर सहानुभूति लहर ला पाते या नहीं, केवल सहानुभूति ही मुसाफिर को विधानसभा की दहलीज पार करवा सकती है।

यह है चुनावी समीकरण

विधानसभा क्षेत्र में जातिवाद का नारा ही सर्वोपरि रहता है। हल्के में अनुसूचित जाति के अलावा ब्राह्मण व राजपूत वोट बैंक है।चूंकि विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए ही आरक्षित है, लिहाजा बिरादरी कांग्रेस व भाजपा में विभाजित हो जाती है। इसके बाद अहम भूमिका में ब्राह्मण व राजपूत वोट बैंक आते हैं। राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी ने भी निर्वाचन क्षेत्र से प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। ऐसी संभावना है कि पार्टी का प्रत्याशी राजपूत वोट बैंक में सेंधमारी कर सकता है।

      उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी के गठन का आधिकारिक ऐलान भी कुछ पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र में ही रुमित ठाकुर ने किया था। वैसे ये विधानसभा क्षेत्र गिरी आर व गिरीपार में भी बराबर बराबर  विभाजित है। कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशी कोली बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं, जबकि मुसाफिर की अलग बिरादरी है।

      दयाल प्यारी व गंगूराम मुसाफिर गिरि आर से है। लेकिन आखिर में जातिवाद ही हावी हो सकता है। कसौली व शिमला (ग्रामीण विधानसभा) क्षेत्रों से इस हलके की सीमा जुड़ी हुई है, साथ ही एक हिस्सा हरियाणा के बाउंड्री पर भी है।

पहली बार सराहां में नामांकन

विधानसभा क्षेत्र के इस चुनाव में एक खास बात यह भी है कि इस बार प्रत्याशियों ने सराहां में नामांकन पत्र दाखिल किए है। मतगणना भी सराहां में ही होगी। इससे पहले रिटर्निंग अधिकारी की नियुक्ति राजगढ़ में हुआ करती थी। यह बदलाव इस कारण भी हुआ है क्योंकि  सराहां  में एसडीएम कार्यालय नियमित रूप से खुल चुका है। सराहां व पच्छाद एक ही पर्याय है। चुनाव आयोग ने सराहां के एसडीएम को रिटर्निंग अधिकारी बनाने का निर्णय लिया था।

समझें दो चुनाव का अंकगणित…

पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में पांच साल के भीतर दो विधानसभा चुनाव हुए। 2017 के सामान्य चुनाव के बाद 2019 में उप चुनाव हुआ। 2017 में भाजपा का ग्राफ 54.26 प्रतिशत था। जबकि कांग्रेस की वोट परसेंटेज 42.73 रही। अन्य दो उम्मीदवारों ने 3.01 प्रतिशत वोट हासिल किए।

2019 के उप चुनाव में भाजपा का ग्राफ 54.26 प्रतिशत से गिरकर 40.85 प्रतिशत रह गया, जबकि कांग्रेस के ग्राफ में 7.05 प्रतिशत की गिरावट आई। इससे ये जाहिर होता है कि भाजपा से बगावत कर मैदान में उतरी दयाल प्यारी ने भाजपा को कांग्रेस की तुलना में अधिक नुकसान पहुंचाया था। दयाल प्यारी ने 13.4 प्रतिशत वोट की सेंधमारी भाजपा के खाते से की, जबकि 7 फीसदी के आसपास कांग्रेस के वोट चुराए थे।

कुल मिलाकर त्रिकोणीय मुकाबला होने से जाहिर है कि मुकाबला कड़ा है। इसका कारण ये भी है कि जंग को राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी का प्रत्याशी भी चौतरफा बनाने की कोशिश में लगा हुआ है। जबकि सीपीआईएम के आशीष भी मैदान में डटकर मुकाबले को रोचक बनाने की जद्दोजहद में हैं। विधानसभा चुनाव का सूरत-ए-हाल इस तरफ भी संकेत दे रहा है कि 35 प्रतिशत वोट लेने वाला जीत का सेहरा पहन सकता है।

मतदाताओं का आंकड़ा
पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र में 10 अक्तूबर 2022 तक 76,396 मतदाता दर्ज हुए। इसमें महिलाओं की संख्या 37,026 है, जबकि पुरुषों की संख्या 39,0369 है। यदि यह मान लिया जाए कि 80 प्रतिशत मतदान होता है तो 61,168 मतदाता मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। मैदान में डटे प्रत्याशियों की पृष्ठभूमि व राजनीतिक दल तय कर रहा है कि किसे कितने वोट हासिल होंगे। अलबत्ता ये जरूर है कि 22 से 25 हजार वोट लेने वाला जीत का सेहरा पहन सकता है। एक ही सूरत में  इस आंकड़े में बदलाव हो सकता है, वो ये कि भाजपा या कांग्रेस में एक प्रत्याशी अप्रत्याशित तरीके से डाउन चला जाए या फिर राजपूत व ब्राह्मण मतों की  पोलराइजेशन हो।

भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप करोडपति, शैक्षणिक योग्यता-पीजी
पच्छाद सीट पर हुए उपचुनाव में जीत कर पहली बार विधानसभा में पहुंची रीना कश्यप एक बार फिर भाजपा की ओर से चुनाव में उतारी गई हैं। 38 साल की रीना कश्यप करोड़पति प्रत्याशियों की सूची में सम्मिलत हैं। उनके परिवार की चल व अचल संपत्ति 1.77 करोड़ है। इसमें रीना कश्यप 1.50 करोड़ की मालकिन हैं। जबकि उनके पति के नाम 27 लाख की  संपत्ति है। रीना कश्यप द्वारा चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में नजर डालें, तो उनकी चल संपत्ति 66.31 लाख है। उनके पति के पास 15.20 लाख की चल  संपत्ति है। रीना कश्यप के पास 2.27 लाख के गहने हैं। इसके अलावा रीना कश्यप के नाम 84 लाख की अचल संपत्ति है। उन्होंने मकान बनाने के लिए 42 लाख का कर्ज भी उठाया है। रीना कश्यप की शैक्षणिक योग्यता पोस्ट ग्रेजुएट हैं। उन्होंने वर्ष 2007 में बीए और वर्ष 2009 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में एम.ए. की है।

कांग्रेस की दयाल प्यारी 63 लाख की मालकिन, शैक्षणिक योग्यता-जमा दो
कांग्रेस ने पच्छाद सीट से भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए महिला प्रत्याशी दयाल प्यारी को उतारा है। जमा दो पास दयाल प्यारी के परिवार के पास 63 लाख की

संपत्ति है। निर्वाचन आयोग में जमा शपथपत्र के मुताबिक 43 साल की दयाल प्यारी की चल संपत्ति 18.06 लाख और पति की चल संपति 3.58 लाख है। वहीं उनके बच्चों के नाम क्रमशः 2.72 लाख और 1.29 लाख हैं। दयाल प्यारी के पास छह लाख के गहने हैं। उनके पास एक कार भी है, जिसकी कीमत छह लाख है। दयाल प्यारी के नाम अचल संपत्ति नहीं है। हालांकि उनके पति की अचल संपत्ति 45 लाख है। शपथपत्र के मुताबिक दयाल प्यारी के नाम किसी भी तरह की देनदारियां नहीं हैं। उनके पति ने 3.50 लाख का लोन लिया है। दयाल प्यारी ने वर्ष 1999 में जमा दो की परीक्षा पास की है।

निर्दलीय गंगूराम मुसाफिर की संपति 3.69 करोड़, पंजाब यूनिवर्सिटी से बीए

कांग्रेस के कदावर नेता रहे व पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष गंगू राम मुसाफिर करोड़पति हैं। चुनावी हल्फनामे में उन्होंने अपनी चल-अचल संपत्ति3.69 करोड़ दिखाई है। उनकी चल संपति 1.95 करोड़ और अचल संपत्ति 1.75 करोड़ है। उनके पास एक स्कोर्पियो और पांच लाख के गहने हैं। उनकी पत्नी के नाम 37.89 लाख की चल संपत्तिहै। गंगूराम मुसाफिर का शिमला में भी एक रिहायशी भवन है। सिरमौर के ध्याला देवती गांव में उनकी 4.75 एकड़ कृषि भूमि है। इस भूमि को उन्होंने वर्ष 1988 में 15 लाख में खरीदा था। गंगूराम मुसाफिर की शैक्षणिक योग्यता ग्रेजुएट है। उन्होंने वर्ष 1976 में पंजाब यूनिवर्सिटी से बीए की है।

ये है 50 साल का इतिहास…
1972 में कांग्रेस जीती। 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में जनता पार्टी के श्रीराम जख्मी विधायक बने। 1982 में वन विभाग की नौकरी छोड़कर गंगूराम मुसाफिर पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर विधायक बने। इसके बाद 2007 तक लगातार मुसाफिर का ही वर्चस्व रहा। 2012 के बाद से कमल का फूल ही खिला हुआ है।

निर्बल व सबल पक्ष….
भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप का सबल पक्ष ये है कि वो राजनीति में नया चेहरा है। उप चुनाव जीतने के बाद भी एंटी इंकम्बेंसी का सामना नहीं कर रही हैं। कमजोर पक्ष ये है कि सराहां बेल्ट में स्थिति कमजोर हो सकती है। चुनाव लड़ने में तजुर्बे की कमी भी कमी खल रही है।

आजाद उम्मीदवार गंगूराम मुसाफिर का निर्बल पहलू यही है कि वो 1982 से लगातार 7 बार चुनाव जीते, लेकिन राजनीति में अगली युवा पीढ़ी को विरासत नहीं सौंप रहे। सबल पक्ष में ये जाता है कि वो अनुभवी हैं। चुनावी बिसात को कैसे बिछाना है, इसके मंझे हुए खिलाड़ी हैं।

    कांग्रेस प्रत्याशी दयाल प्यारी को इस परेशानी का सामना करना पड़ रहा है कि कांग्रेस का संगठन पूरी तरह से साथ नहीं खड़ा है। इसके अलावा भाजपा के एक शीर्ष नेता ने दयाल प्यारी को हराने के लिए खुद की प्रतिष्ठा ही दांव पर लगा रखी है। उप चुनाव में शानदार प्रदर्शन सबल पक्ष में आ रहा है, साथ ही सहानुभूति भी मिलने के आसार हैं। दयाल प्यारी भी एक अनुभवी राजनीतिज्ञ बन चुकी हैं। पंचायती राज संस्थाओं में पैठ बना चुकी है। जिला परिषद की चेयरपर्सन का कार्यकाल भी सराहनीय रहा।