जिन लोगों को लगता है कि खेती-किसानी में कुछ नहीं होता, उन्हें बिहार के बेगूसराय में रहने वाले एकलव्य कौशिक से मिलना चाहिए. 10वीं में पढ़ने वाले इस लड़के ने खेती में एक नया प्रयोग करने का प्लान किया और महज 2700 रुपए की लागत से स्ट्रॉबेरी के 1000 पेड़ लगा दिए. जब एकलव्य ने अपने खेत में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की थी, तब लोग कहते थे इसका दिमाग खराब है. स्ट्रॉबेरी की खेती उनके इलाके में संभव नहीं है. मगर यह एकलव्य का जुनून ही था कि उन्होंने इसे गलत साबित कर दिया. मौजूदा समय में वो स्ट्रॉबेरी के फलों से अच्छी कमाई कर रहे हैं.
2700 रु की लागत से शुरू किया था काम
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इंडिया टाइम्स हिन्दी से खास बातचीत में एकलव्य अपने अब तक के सफ़र के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि उन्होंने कोरोना लॉकडाउन के वक्त स्ट्रॉबेरी की खेती करने का निश्चय किया था. शुरुआत में उन्हें नहीं पता था कि वो इसे कैसे शुरू करेंगे. पर कहते हैं ना जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है!
एकलव्य ने तकनीक का सहारा लिया और यूट्यूब की मदद से स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़ी जानकारी एकत्रित की. उन्होंने उन लोगों से भी संपर्क किया, जो लंबे समय से स्ट्रॉबेरी की खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं. एकलव्य की रिसर्च में उनके फूफा कुमार शैलैंन्द्र प्रियदर्शी की अहम भूमिका रही, जोकि जियोलॉजी के प्रोफेसर है. उन्होंने ही एकलव्य को भरोसा दिलाया था कि उनके खेत की मिट्टी स्ट्रॉबेरी की खेती के अनुकूल है.
एकलव्यकैसे कर रहे हैं स्ट्रॉबेरी की खेती?
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26 जून, 2006 को बिहार के बेगूसराय जिले में पड़ने वाले मंझौल गांव में पैदा हुए एकलव्य बताते हैं कि स्ट्रॉबेरी से जुड़ी लंबी रिसर्च के बाद उन्होंने हिमाचल से खास किस्म के 1000 स्ट्रॉबेरी के पेड़ मगाएं, जो कि मूलतः: ऑस्ट्रेलियन हैं. इसके बाद उन्होंने अपने खेत की अच्छे से जुताई कराई और पौधे रोप दिए.
आगे समय-समय पर नमी को ध्यान में रखकर सिंचाई करते रहे. उनकी यह मेहनत रंग लाई और स्ट्रॉबेरी में फल आने शुरू हो गए. एकलव्य बताते हैं कि आमतौर पर स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए ठंडे प्रदेश अच्छे माने जाते हैं, लेकिन इसके लिए अनुकूल भूमि और वातावरण बनना कठिन नहीं है.
60 हजार रुपए तक के फायदे का अनुमान
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एकलव्य के अनुसार, लोकल मार्केट में स्ट्रॉबेरी पचास रुपए किलो से लेकर अस्सी रुपए किलो तक बिक जाती है. वहीं बड़े बाजारों में इसकी कीमत 600 रुपए किलो तक है. ऐसे में 1000 पौधों से होने वाली पैदावार के बाद सारे खर्च निकालकर उन्हें करीब 60 हजार रुपए का फायदे का अनुमान है.
बता दें, एकलव्य की फसल तैयार हो चुकी है और बिकने के लिए तैयार है. फलों के लिए उन्होंने लोकल मार्केट में संपर्क किया है, जहां से उन्हें आर्डर मिलने शुरू हो चुके हैं. इस फसल के बिकने के बाद एकलव्य आगे के लिए और अच्छी तैयारी करना चाहते हैं, ताकि वो अधिक से अधिक मुनाफा काम सकें.
कहां से आया स्ट्रॉबेरी की खेती का आइडिया?
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एकलव्य कहते हैं, ”बचपन से मैंने अपने गांव के लोगों को परंपरागत खेती करते हुए देखा, जिससे ज़्यादा कमाई नहीं होती थी. किसान का जैसे-तैसे गुजारा होता था. कई बार तो फसल खराब होने के कारण अगली फसल के लिए क़र्ज़ तक लेने की नौबत आ जाती है. ऐसे में मैं एक नया प्रयोग करके साबित करना चाहते थे कि अगर खेती में नए प्रयोग किए जाए तो किसान भी मोटी कमाई कर सकते हैं.”
”यही कारण रहा कि मैंने गूगल पर विकल्प ढूंढने शुरू किए और मेरा ध्यान स्ट्रॉबेरी पर गया. आगे रिसर्च में मुझे पता चला कि मैं इसे मैं गांव में कर सकता हूं. बस इसी के साथ मैं काम पर निकल पड़ा. मुझे खुशी है कि मेरा प्रयास सफल रहा. उम्मीद है कि गांव के अन्य लोग भी इससे प्रेरित होकर अपने खेतों में ऐसे प्रयोग करेंगे.”
माता-पिता के साथ ने आसान किया सफ़र
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एकलव्य के मुताबिक परिवार के सहयोग के बिना उनका आगे बढ़ना संभव नहीं था. स्ट्रॉबेरी की खेती को लेकर उनके जुनून और प्रयास को देखते हुए उनके माता-पिता ने उन्हें सपोर्ट किया. उनके पिता रविशंकर सिंह ट्रक ट्रांसपोर्ट के काम में हैं. बावजूद इसके उन्होंने जिस तरह खेती के लिए अपने बेटे का साथ दिया वो बड़ी बात है.
दरअसल, एकलव्य खेती के साथ-साथ अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहे हैं. एक दिन भी खेती के कारण उनकी पढ़ाई प्रभावित नहीं हुई. यही कारण है कि उनके घरवालों को उनके काम से दिक्कत नहीं है. एकलव्य के परिवार को गर्व है कि उनका बेटा 14 साल की उम्र में पूरे इलाके लिए एक मिसाल बनकर उभर रहा है.