मंच के राज्य संयोजक विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि प्रदेश सरकार की नाकामी व उसकी निजी स्कूलों से मिलीभगत के कारण निजी स्कूल लगातार मनमानी कर रहे हैं। कोरोना काल में भी निजी स्कूल टयूशन फीस के अलावा एनुअल चार्जेज़, कम्प्यूटर फीस, स्मार्ट क्लास रूम, मिसलेनियस, केयरज़, स्पोर्ट्स,मेंटेनेंस,इंफ्रास्ट्
कानून का प्रारूप तैयार करने में ही इस सरकार ने तीन वर्ष का समय लगा दिया। अब जबकि महीनों पहले अभिभावकों ने दर्जनों सुझाव दिए हैं तब भी जान बूझकर यह सरकार कानून बनाने में आनाकानी कर रही है। इस मानसून सत्र में कानून हर हाल में बनना चाहिए था परन्तु सरकारी की संवेदनहीनता के कारण कानून नहीं बन पाया। सरकार की नाकामी के कारण ही बिना एक दिन भी स्कूल गए बच्चों की फीस में पन्द्रह से पचास प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की गई है।
स्कूल न चलने से स्कूलों का बिजली, पानी, स्पोर्ट्स,कम्प्यूटर,स्मार्ट क्लास रूम, मेंटेनेंस, सफाई आदि का खर्चा लगभग शून्य हो गया है तो फिर ये निजी स्कूल किस बात की पन्द्रह से पचास प्रतिशत फीस बढ़ोतरी कर रहे हैं और इस बढ़ोतरी पर सरकार मौन है। उन्होंने कहा है कि फीस वसूली के मामले पर वर्ष 2014 के मानव संसाधन विकास मंत्रालय व 5 दिसम्बर 2019 के शिक्षा विभाग के दिशानिर्देशों का निजी स्कूल खुला उल्लंघन कर रहे हैं व इसको तय करने में अभिभावकों की आम सभा की भूमिका को दरकिनार कर रहे हैं। निजी स्कूल अभी भी एनुअल चार्जेज़ की वसूली करके एडमिशन फीस को पिछले दरवाजे से वसूल रहे हैं व हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के वर्ष 2016 के निर्णय की अवहेलना कर रहे हैं जिसमें उच्च न्यायालय ने सभी तरह के चार्जेज़ की वसूली पर रोक लगाई थी। उन्होंने प्रदेश सरकार से एक बार पुनः मांग की है कि वह निजी स्कूलों में फीस,पाठ्यक्रम व प्रवेश प्रक्रिया को संचालित करने के लिए तुरंत कानून बनाए व रेगुलेटरी कमीशन का गठन करे।