मलयालम में एक कहावत है- वेनेमेनकिल चक्का वेरिलुम कायक्कुम। मतलब- इच्छाशक्ति हो तो कटहल पेड़ की जड़ में भी लग सकता है। लगता है कि जैम्स जोसफ ने इस कहावत को दिल से ले लिया। उन्होंने कटहल का नया स्वाद दे दिया है- पारंपरिक पयसम और जैम (चक्का वराट्टी) से रेविओली और बर्बेक का। मामला यहीं खत्म नहीं हो जाता है। जून 2021 में जब देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर पीक पर थी तब जोसफ को लगा कि यह वक्त कुछ नया करने का है। उन्होंने इस मौसमी फल हो सालोंभर उपलब्ध रखने के लिए इसे जैकफ्रुट365 के साथ फ्रीज में रखकर सुखाने का इनोवेशन पहले ही कर चुके थे। इस बार उन्होंने इसकी पोषक क्षमता बढ़ाने की सोची। पता चला कि कच्चे कटहल का आटा टाइप-2 डाइबिटीज से लड़ने में मरीजों की मदद करता है। अगर टाइप-2 डाइबिटीज मरीज अपने भोजन में चावल और गेंहू के आटे का उपयोग छोड़ दें उनका ब्लड शुगर लेवल कम हो जाता है। दुनिया की प्रतिष्ठित स्वास्थ्य पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित एक अध्ययन में इसका दावा किया गया है।
1 लाख से 1 करोड़ रुपये प्रति माह तक पहुंच गया रेवेन्यू
बस क्या था, जोसफ ने जुलाई 2021 में कच्चे कटहल का आटा लॉन्च कर दिया। उन्होंने कहा, ‘तब से हमारी मांग जबर्दस्त बढ़ी है। अकेले ऐमजॉन पर एक साल में ही आटे की बिक्री 1 लाख प्रति माह से बढ़कर 1 करोड़ प्रति माह तक हो गई। ऐमजॉन पर मैगी नूडल्स और टाटा नमक के बाद ग्रॉसरी में हमारा तीसरा सबसे उत्तम उत्पाद लिस्ट हुआ।’ उन्होंने कहा कि बढ़ती मांग को देखते हुए हमारा स्टॉक न कम पड़ जाए, इसके लिए हमें प्रॉडक्ट की मार्केटिंग कम करनी पड़ी। यूके की वार्विक यूनिवर्सिटी से मास्टर की डिग्री लेकर इंजीनियरिंग में ट्रेंड जोसफ ने माइक्रोसॉफ्ट, फोर्ड, i2 टेक्नॉलजीज जैसी बड़ी कंपनियों के लिए काम किया था। फिर उनमें खुद से कुछ करने की इच्छा जागी और वो केरल अपने घर लौट आए।
होटल के शेफों से की बात तो बताई मुश्किलें
चूंकि केरल में कटहल का अंबार होता है, इस कारण जोसफ ने इसी में अपना बिजनस खड़ा करने का सोच लिया। यूं तो कटहल आम आदमी का भोजन है, लेकिन जोसफ ने इसे रईशों की थाली तक पहुंचाने की ठान ली। उन्होंने भारत में शेफों से बात करने लगे तब उन्हें इससे जुड़ी दिक्कतें बताई गईं। शेफों ने उन्हें बताया कि एक तो यह सालोंभर उपलब्ध नहीं रहता है, दूसरे इसे किचन में हैंडल करना काफी कठिन है, ऊपर से इसकी तेज महक ग्राहकों को बहुत रास नहीं आती है।
सबसे पहले फाइव स्टार होटलों में ही पहुंचा कटहल का आटा
कटहल को ठंडा करके सुखाने के मकसद से जैकफ्रुट365 लॉन्च 2 अक्टूबर, 2013 को हो चुका था। सोच यह थी कि इससे कटहल का संगठित बाजार खड़ा किया जा सकेगा। जोसफ कहते हैं, ‘जब-जब मेरे सामने कोई चुनौती आती है, तब-तब हमारे अंदर उससे निपटने की इच्छा बलवती हो जाती है। मुझे कुछ भी असंभव नहीं जान पड़ता है।’ फ्रीज में सुखाए गए प्रॉडक्ट को सबसे पहले फाइव स्टार होटलों में पहुंचाया गया।
कटहल के आटे में किया वैल्यु एडिशन
जोसफ कहते हैं, ‘मेरे सामने दूसरा बड़ा मौका तब आया जब मुझे महसूस हुआ कि ठंडा करके सुखाए गए कटहल का आटा बनाकर इसमें फाइबर मिलाया जा सकता है और उससे बने डिश का स्वाद भी नहीं बदलता।’ अब उनके पास न्यूट्रिशनव वैल्यु वाले कटहल का पेटेंट है। वो बताते हैं, ‘हम हर दिन पूरे केरल और तमिलनाडु से कटहल मंगवाते हैं। भारत में कटहल खूब होता है लेकिन 80% बर्बाद हो जाता है। अब चूंकि कटहल की मांग बहुत ज्यादा हो गई है, इसलिए हम अपनी क्षमता तीन गुना बढ़ा रहे हैं।’
मजदूर से मशीन तक की यात्रा
कोची स्थित कोलेनचेरी में जोसफ की फैक्ट्री की ओवरहॉलिंग हो रही है। मशीनों को अपग्रेड किया जा रहा है ताकि उत्पादन क्षमता 10 टन प्रति दिन से बढ़ाकर 40 टन प्रति दिन किया जा सके। इसके लिए हर दिन 4 हजार कटहल की जरूरत होगी, अभी 1 हजार कटहल ही लगते हैं। जोसफ का मैकेनिकल इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग यहां काम आ रही। उन्होंने एक मशीन डिजाइन की जो पूरे-पूरे कच्चे कटहल का आटा बना देती है। जोसफ ने कहा, ‘इससे उत्पादन बढ़ेगा और बर्बादी घटेगी।
खुद की बनाई मशीन का करवाएंगे पेटेंट
एक वर्कर हर दिन 20 किलो कटहल के टुकड़ों से ही आटा बना सकता है, लेकिन मशीनों से हम हर दिन 500 किलो आटा बना सकते हैं। उत्पादन बढ़ाने में कोई समस्या नहीं थी, दिक्कत यह हो रही थी कि मजदूर सुबह में कटहल काटना शुरू करता था और शाम में जब उसका आटा बनाने का वक्त होता था तब तक वह पकने लगता था। लेकिन अब मशीनों से भारी मात्रा में कटहल काटे जाते हैं और उनका तुरंत आटा बना दिया जाता है।’ जोसफ ने अपनी मशीनों का पेटेंट भी करवाने का आवेदन डाल दिया है।