गोवा में एम्ब्रोसिया ऑर्गेनिक फार्म की शुरुआत छोटे से वेंचर के तौर पर हुई थी। आज इसका टर्नओवर करीब 22 करोड़ रुपये है। इसका पूरा श्रेय जाता है 34 साल के जनार्दन खोराटे को। उन्हें एक विदेशी दंपती ने गोद लिया था। फिर पूरे वेंचर की कमान जनार्दन को ही सौंप दी।
कैसे नाम पड़ा ‘सलादबाबा’?
जनार्दन बताते हैं कि वह आसपास के रेस्तरां में सब्जी और फलों की सप्लाई किया करते थे। सलाद के लिए इनकी आपूर्ति की जाती थी। इसी से उनकी पहचान ‘सलादबाबा’ के तौर पर बनी। 1999 में एम्ब्रोसिया ने डायवर्सिफाई करना शुरू किया। कंपनी ने पीनट बटर, राइस और चिया बीज जैसे अनाज उगाने शुरू किए।
2003 आते-आते इस दंपती को जनार्दन बहुत ज्यादा पसंद आने लगे। फिर एक दिन उन्होंने जनार्दन को लंदन आने के लिए पूछ लिया। जनार्दन इसके लिए तुरंत तैयार हो गए। फिर दंपती ने जनार्दन के असली माता-पिता से बात की। उन्होंने भी इसके लिए अपनी सहमति दे दी। डेविड और मिशेला ने वादा किया था कि वह जनार्दन को कॉलेज की शिक्षा दिलवाएंगे। उन्हें सबकुछ देंगे जो वे कर सकते हैं। 2008 में दोनों ने एम्ब्रोसिया को जनार्दन के पूरी तरह हवाले कर दिया।
आज यह परिवार लंदन में कुछ महीने बिताता है। बाकी का समय गोवा में रहता है। जर्नादन इस वेंचर के सभी कामकाज को देखते हैं। हालांकि, यह भी सच है कि 2016 के बाद ही उनके कारोबार ने रफ्तार पकड़ी। यह वह समय था जब ऑनलाइन सेल्स का दौर आया।
कंपनी से जुड़े हैं 400 किसान
जनार्दन याद करते हुए बताते हैं कि कुछ लोग दिल्ली से आए थे। उन्हें कंपनी के प्रोडक्ट बहुत अच्छे लगे थे। वे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने कहा कि हम दिल्ली में अपने प्रोडक्टों को बेचने के बारे में क्यों नहीं सोचते। तभी उन्होंने एमेजन पर प्रोडक्टों की बिक्री करनी शुरू की। यह कदम ग्राहकों को बढ़ाने के लिए उठाया गया था। ऐसा करते ही एम्ब्रोसिया ने कारोबारी दुनिया में छलांग लगा दी।
जर्नादन के अनुसार, आज कंपनी के पास 135 एकड़ कृषि योग्य जमीन है। उनके साथ 400 किसान जुड़े हैं। वह 59 अलग-अलग तरह के प्रोडक्टों को बना रहे हैं। इन प्रोडक्टों में ब्लूबेरी फ्लेवर्ड पीनट बटर और राइस केक शामिल हैं। ये प्रोडक्ट रूसी, इतालवी और जर्मनी के लोगों के बीच काफी ज्यादा पसंद किए जाते हैं।
एम्ब्रोसिया देशभर में अपने प्रोडक्टों को भेजती है। 2020 में उसने जापान और ताइवान को निर्यात करना भी शुरू कर दिया। कंपनी के मुनाफे का एक हिस्सा गोवा के तमाम स्कूलों में जरूरतमंद बच्चों पर खर्च किया जाता है। इनमें से कुछ स्कूल अनाथों के लिए हैं। दूसरे स्कूल ऐसे हैं जिन्हें सरकार किसानों के बच्चों के लिए चलाती है।