एक लड़की ने खेती के लिए अच्छी खासी नौकरी छोड़ने का फैसला किया। किसान बनना ही उसका सपना था। परिवार से लड़-झगड़ कर उसने अपने परिवार के खेत में ऑर्गेनिक खेती शुरू की। इन खेतों में कभी कुछ भी उगना बंद हो गया था। इससे हारकर पिता और भाई खेती छोड़ने तक वाले थे।
रोजा का जन्म कर्नाटक के डोन्नेहल्ली गांव में हुआ था। परिवार के लोग किसानी करते थे। घर के सदस्य चाहते थे कि खेती-किसानी में मन लगाने के बजाय रोजा पढ़-लिखकर शहर में नौकरी करें। लेकिन, जब कोरोना की महामारी आई तो उनकी कंपनी ने वर्क फ्रॉम होम का ऑप्शन दिया। रोजा ने इसे बड़े मौके की तरह इस्तेमाल किया।
नौकरी के बाद खेतों में जुटती थीं
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रोजा बताती हैं कि नुकसान के चलते उनके भाई और पिता किसानी छोड़ने वाले थे। ऐसे में उन्होंने अपने परिवार के खेत में दोबारा जान फूंकने के काम को चुनौती के तौर पर लिया। इसके लिए उन्होंने ऑर्गेनिक तरीकों का सहारा लिया। वह नौकरी के घंटों के बाद शाम को 4 बजे से खेत में काम करने लगीं।
उन्होंने उपज में गिरावट की वजह खोज निकाली थी। इसका कारण केमिकल का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल था। रोजा ने फैसला किया कि वह ऑर्गेनिक तरीके से खेती की उर्वरकता को बहाल करेंगी। बेटी ने परिवार की इच्छा के खिलाफ जाकर ऑर्गेनिक फार्मिंग की शुरुआत की। परिवार चाहता था कि रोजा अपनी लगी-लगाई नौकरी को नहीं छोड़ें।
घरवालों और रिश्तेदारों को नहीं था यकीन
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ज्यादातर गांव वालों और रोजा के परिजनों को यकीन नहीं था कि ऑर्गेनिक फार्मिंग से खेत की उपज को बढ़ाया जा सकता है। रोजा बताती हैं कि रिश्तेदारों, गांव वालों और घरवालों ने उनका मजाक तक उड़ाया। इसके बावजूद रोजा अपनी नौकरी छोड़कर फुल-टाइम किसान बन गईं।
रोजा खेत में 40 तरह की सब्जियां उगाने लगीं। इनमें बीन्स, बैंगन और शिमला मिर्च शामिल थे। वह अलग-अलग तालुकाओं में जाकर ऑर्गेनिक खेती करने वाले किसानों के समूह भी बनाने लगीं। चित्रदुर्गा से उन्होंने ऐसे 8 किसानों के समूह बना लिए। इसका मकसद ऑर्गेनिक खेती के बारे में जागरूकता फैलाना था। इसके बाद उन्होंने हर एक तालुका के स्थानीय प्राधिकरण से अपनी उपज के लिए मार्केट मुहैया कराने को कहा।
500-700 किलो सब्जी की रोजाना पैदावार
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फिर रोजा ने अपने नेटवर्क का विस्तार कई और जिलों में किया। इनमें उडुपी, दक्षिण कन्नड़ इत्यादि शामिल थे। इसके बाद उन्होंने निसारगा नेटिव फार्म्स नाम का वेंचर शुरू कर दिया। इसके जरिये राज्य में 500 किसानों का नेटवर्क जुड़ा है। वह रोजाना 500 किलो से 700 किलो सब्जी की पैदावार करती हैं। उनकी सालाना कमाई करीब 1 करोड़ रुपये है। उनके गांव में करीब 25 किसानों ने ऑर्गेनिक खेती अपनाई है। इसे रोजा अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानती हैं।