सुपर फ्रूट कीवी: बढ़ रही है डिमांड, 1 हेक्टेयर खेत से 24 लाख तक हो रही कमाई, सेहत के लिए रामबाण

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कीवी एक ऐसा फल है, जिसकी पहुंच समय के साथ-साथ देश के कोने-कोने में फैल रही है और लोग उसके फायदों पर बात कर रहे हैं. इसे चाइनीज गूजबैरी भी कहते हैं. उत्तर भारत में तो एक बड़े वर्ग में कीवी को प्लेटलेट्स बढ़ाने वाले फल के रूप में ही जाना जाता है. वहीं, एक दूसरा वर्ग है जो इसे सेहत के लिए काफी फायदेमंद मानता है और इसी तरह धीरे-धीरे कीवी की पहुंच हर राज्य तक हो रही है.

एक तरफ कीवी की डिमांड बढ़ रही है तो दूसरी तरफ किसानों ने इसकी बगवानी को लेकर भी दिलचस्पी दिखाई है. उत्तराखंड में साल 1984-85 में भारत-इटली फल विकास परियोजना के तहत राजकीय उद्यान मगरा में इटली से आयातित कीवी की अलग-अलग प्रजातियों के 100 पौधे लगाए गए थे. इटली के वैज्ञानिकों ने इसकी देखरेख भी की थी.

हालांकि, बताया जाता है कि साल 1960 में बंगलूरू में सबसे पहले कीवी को लगाने का प्रयास किया गया था. लेकिन, वहां मौसम अनुकुल नहीं होने पर सफलता नहीं मिली. इसके बाद साल 1963 में शिमला के फागली में इसकी 7 प्रजातियों को लगाया गया जहां इसका सफल उत्पादन हुआ.

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दुनिया में न्यूजीलैंड एक ऐसा देश है जहां के फल के रूप में कीवी को विश्वभर में जाना जाता है. न्यूजीलैंड ने इसका एक बिजनेस मॉडल ही तैयार कर दिया है और पूरी दुनिया में निर्यात करता है. इतना ही नहीं दुनियाभर में यहां से वैज्ञानिक जाते हैं और वहां इसकी खेती के बारे में जानकारी देते हैं.

माना जाता है कि ऐसे क्षेत्र जहां का तापमान 35 डिग्री से कम रहता है और तेज हवाएं चलती हैं, वहां कीवी की बेहतर खेती हो सकती है. मई-जून में और सिंतबर से अक्टूबर में इसकी सिंचाई होती है. इसके फूल अप्रैल में आते हैं.

मिट्टी का है अहम रोल

कहा जाता है कि जिस मिट्टी में पानी रुकता है, वहां कीवी की खेती बेहतर होती है. वहीं, 6.5 पीएच की भूमि रहने पर भी फसल अच्छी होती है.इसके पौधों को शीत काल के बाद या बसंत के शुरू होने से पहले लगाया जाता है.

दूसरी तरफ कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि कीवी पौधो को 17-18 बार सिंचाई की जरूरत होती है. जहां पानी की उपलब्धता कम है वहां पौधों में घास और मल्चिंग लगाने से पानी की आवश्यकता कम की जा सकती है.

कीवी फल के साथ अच्छी चीज है कि इसे अगर बेहतर तरीके से रखा जाए तो काफी दिनों तक रखा जा सकता है. इसे बेहतर पैकेजिंग से दूर-दूर तक भेजा भी जा सकता है. कमरे के तापमान में इस एक महीने तक आसानी से रखा जा सकता है. ऐसे में ये बाजारों में लंबे समय तक बिकते हैं.

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कीवी की बागवानी के लिए राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, देहरादून से जानकारी ले सकते हैं. यह पंडित वारी राजपुर रोड पर है. यहां से आप प्रोजेक्ट बनवाकर 40% तक का अनुदान भी ले सकते हैं. उद्यान विभाग प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद 20% का अतिरिक्त अनुदान भी देता है.

दूसरी तरफ माना जाता है कि हिमाचल प्रदेश के मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में कीवी की अच्छी पैदावार हो सकती है. नौणई यूनिवर्सिटी के फल विज्ञान विभाग ने इसके लिए तकनीक बी विकसीत की है. इससे  प्रति हेक्टेयर 6 गुना अधिक आमदनी हो सकती है.  वहीं, एक हेक्टेयर से 24 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है. 

नागालैंड बेहतर कर रहा

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने हाल ही में कहा था कि कीवी जैसे विदेश फल का उत्पादन करने में नागालैंड और उत्तर पूर्वी राज्य बेहतर भूमिका अदा कर रहे हैं. इससे किसानों की आय भी  बढ़ी है और राज्य की अर्थ व्यवस्था भी मजबूत हुई है. नागालैंड को कीवी स्टेट का दर्जा मिले इस दिशा में कार्य करना चाहिए. 

बता दें कि नागालैंड ने हाल ही में कीवी के लिए वेल्यू चैन निर्माण कार्यक्रम आयोजित किया था. इसे केंद्रीय बागवानी संस्थान नागालैंड की देखरेख में आयोजित किया गया. नागालैंड के कारोबारी दावा करते हैं कि एक हैक्टेयर बगीचे से 24 लाख रुपये की आमदनी की जा सकती है. कीवी को लेकर नागालैंड में अलग कृषक उत्पादक संगठन बनाने पर विचार किया जा रहा है.

कीवी के फायदे, कैसे बना सुपर फ्रूट

माना जाता है कि कीवी में संतरे से 5 गुना ज्यादा विटामिन सी होता है. इसमें 20 से भी ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसमें विटामिंस, पोटेशियम, कॉपर और फाइबर पाया जाता है. इसे सुपर फ्रूट कहा जाता है. 

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लगभग 70 ग्राम ताजी कीवी में 50% विटामिन सी कैल्शियम के 10%, फाइबर के 8%, विटामिन ई के 60% और पोटेशियम के 6% तत्व पाए जाते हैं. इसमें एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो रोगों से दूर रखता है. कोरोना काल में भी इसकी डिमांड काफी रही है.