एक्टर सुरेश ओबेरॉय का 17 दिसंबर को 76वां बर्थडे है। सुरेश ओबेरॉय का जन्म पाकिस्तान में हुआ था। लेकिन बंटवारे के बाद उनका परिवार वहां से भागकर इंडिया आ गया और यहां रिफ्यूजी की तरह रहा। सुरेश ओबेरॉय ने एक इंटरव्यू में उस मुश्किल दौर के बारे में बताया था।
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सुरेश ओबेरॉय के 76वें बर्थडे (Happy Birthday Suresh Oberoi) पर हम आपको उनके बारे में वह किस्सा बता रहे हैं, जब उन्हें परिवार के साथ देश में रिफ्यूजी की जिंदगी बितानी पड़ी और करोड़ों का कारोबार पीछे पाकिस्तान में छोड़ना पड़ा। बेहद कम लोग जानते हैं कि Suresh Oberoi बंटवारे के बाद परिवार के साथ भागकर पाकिस्तान से भारत आए थे। सुरेश ओबेरॉय का जन्म 17 दिसंबर 1946 को क्वेटा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। सुरेश ओबेरॉय और उनके परिवार ने भारत आने के बाद एक रिफ्यूजी वाली जिंदगी जी। खाने के लिए दाल-चावल और रोटी तक नहीं थी। ऐसे में उन्हें सिर्फ चीनी और रोटी खाकर ही गुजारा करना पड़ता था। जबकि पाकिस्तान में सुरेश ओबेरॉय के पिता का अच्छा-खासा रियल एस्टेट का बिजनस था।
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पाकिस्तान से भागकर इंडिया आए, सब बिजनस छूटा
सुरेश ओबेरॉय का परिवार जब पाकिस्तान से भागकर इंडिया आया तो उस समय एक्टर मात्र 1 साल के थे। मां ने उन्हें अपनी बांहों में जकड़ा हुआ था। उन मुश्किल हालातों में सुरेश ओबेरॉय के पिता आनंद सरूप ओबेरॉय को परिवार के साथ घर और सारी संपत्ति छोड़कर हैदराबाद आना पड़ा। उनका जो रियल एस्टेट का बिजनस था, सब छूट गया। जो परिवार पाकिस्तान में अच्छे दिनों के दौरान खूब रईसी में रह रहा था, उसी परिवार को बंटवारे के बाद खाने के लाले पड़ गए।
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खाने की मुश्किल, पिता ने मुसलमान बनकर बेच दी प्रॉपर्टी
उस मुश्किल वक्त को याद करते हुए सुरेश ओबेरॉय ने 20 साल पहले हमारे सहयोगी ईटाइम्स को दिए इंटरव्यू में बताया था, ‘मैं बस बच्चा था और मां ने गोद में पकड़ा हुआ था। दिसंबर 1946 में मैं जब पैदा हुआ तो पापा रियल एस्टेट का बिजनस करते थे। बंटवारे में वह भी हमारे हाथ से चला गया। हम चार भाई-बहन थे। इतने बड़े परिवार को पालना बहुत मुश्किल था क्योंकि तब पास में कुछ नहीं था। तब हमने सिर्फ चीनी और रोटी खाकर ही पेट भरा। जब गुजारा मुश्किल हो गया तो पापा ने किसी तरह पाकिस्तान जाने की हिम्मत दिखाई। वहां उन्होंने मुसलमानों जैसे कपड़े पहने और उन्हीं के जैसी वेश-भूषा रखी। किसी तरह उन्होंने वहां की अपनी प्रॉपर्टी और बिजनस बेचा और जो पैसे मिले, उन्हें लेकर इंडिया लौट आए। उन पैसों से पापा ने पूरे परिवार को यहां (इंडिया) में बसाया।’
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इंडिया में दवाइयों के स्टोर खोले, आवाज के कारण मिली रोटी
धीरे-धीरे सुरेश ओबेरॉय और उनके परिवार की स्थिति सुधर गई। सुरेश ओबेरॉय के पिता ने कुछ दवाइयों के स्टोर खोले। एक बंगला और एक गाड़ी भी खरीद ली। परिवार के दिन फिर गए और फिर सुरेश ओबेरॉय और उनके भाई-बहनों ने भी अपनी पढ़ाई पूरी की। सुरेश ओबेरॉय को शुरुआत से ही एक्टिंग का चस्का था। सपना था कि हीरो बनना है। लेकिन सफर आसान नहीं था। सुरेश ओबेरॉय ने फिर रेडियो शो होस्ट के रूप में शुरुआत की। आवाज अच्छी थी तो उनका सिक्का जम गया। इस तरह सुरेश ओबेरॉय को उनकी आवाज के कारण रोटी नसीब हुई। इसके बाद सुरेश ओबेरॉय ने नाटकों में काम करना शुरू कर दिया और फिर पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट में एडमिशन लिया।
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1977 में किया फिल्मों में डेब्यू
सुरेश ओबेरॉय ने 1977 में फिल्म ‘जीवन मुक्त’ से एक्टिंग डेब्यू किया। शुरुआत में उन्होंने कई फिल्मों में लीड रोल किए, लेकिन सफलता सपोर्टिंग किरदारों से ही मिली। आज भी सुरेश ओबेरॉय को ‘फिर वही रात’, ‘लावारिस’, ‘विधाता’, ‘कामचोर’, ‘नमक हलाल’ और ‘राजा हिंदुस्तानी’ जैसी कई फिल्मों के लिए याद किया जाता है। सुरेश ओबेरॉय ने फिल्मों के अलावा ‘धड़कन’ और ‘कश्मीर’ जैसे टीवी शोज में भी काम किया। साल 2019 में वह फिल्म ‘मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी’ में नजर आए थे। सुरेश ओबेरॉय अब जल्द ही फिल्म ‘एनिमल’ में नजर आएंगे, जिसमें रश्मिका मंदाना और रणबीर कपूर हैं।