सुषमा स्वराज: वो चैंपियन, जिसके आगे चुनौतियों ने भी घुटने टेक दिए

एक ऐसा राज्य जहां लड़कियों की स्थिति पर साल 2019 में भी बात होती है, वहां से एक लड़की का साल 1977 में विधायक बनना। वह भी 25 साल की उम्र में। टैलेंट इतना की सीएम को उसे कैबिनेट में शामिल करना पड़ा। वह लड़की इमरजेंसी के विरोध में जेल में बंद जॉर्ज फर्नांडिस की हाथों में हथकड़ी लगी फोटो लेकर बिहार के मुजफ्फरपुर पहुंच जाती हैं और लोकसभा में उसकी जीत में बड़ी भूमिका निभाती हैं।

चुनौती स्वीकार करने का जुनून ऐसा कि संस्कृत से पढ़ाई और हिंदी-इंग्लिश में काम करने वाली वह महिला 15 दिनों में कन्नड़ सीख जाती हैं और सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने कर्नाटक के बेल्लारी पहुंच जाती हैं। मौका मिला तो केंद्र की 13 दिन की सरकार में भी मंत्री बनती हैं और संसद के डिबेट का लाइव प्रसारण का फैसला ले लेती हैं। भारतीय फिल्मों को नया आयाम देने के लिए उसे उद्योग तक के रूप में घोषित करती हैं।

एक ऐसा देश जहां इंदिरा गांधी भी कार्यवाहक विदेश मंत्री रहती हैं, वहां वह पहली पूर्णकालिक विदेश मंत्री बनती हैं। इससे पहले वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री की बनने का इतिहास बना चुकी होती हैं। वह बीजेपी की एक मात्र नेता थीं जो उत्तर और दक्षिण भारत दोनों जगह से चुनाव लड़ी थीं। इतना ही नहीं बीजेपी ही नहीं किसी भी राजनैतिक पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता बनने का भी गौरव हासिल कर चुकी थीं।

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सुषमा स्वराज का जन्म 14  फरवरी 1952 को अंबाला में हुआ। उनके पिता आरएसएस के स्वयंसेवक थे। सुषमा ने संस्कृत और पॉलिटिकल साइंस में अंबाला के एसडी कॉलेजे से ग्रेजुएशन और पंजाब  यूनिवर्सिटी से एलएलबी किया था। कॉलेज में भी वह बेस्ट हिंदी प्रवक्ता का पुरस्कार पाती रहीं और बेस्ट सैनिक स्टूडेंट भी घोषित हुई थीं।

स्टूडेंट्स पॉलिटिक्स में वह साल 1970 में ही आ गई थीं। देश में इमरजेंसी लगा तो वह विरोध में सड़क पर उतर आईं। साल 1977 में वह विधानसभा का चुनाव लड़ गईं और उन्हें जीत मिली। 25 साल की उम्र में वह कैबिनेट मंत्री बनीं। खास बात है कि सरकार में रहते हुए सरकार की कमियों के खिलाफ बोलने पर उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया। साल 1979 में 27 साल की उम्र में उन्हें जनता पार्टी ने हरियाणा का अध्यक्ष बना दिया।

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न्याय युद्ध के दौरान सुषमा स्वराज लाल कृष्ण आडवाणी के संपर्क में आ गईं। यह समय था उनके राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखने का। वह करनाल से तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़ीं, लेकिन जीत नहीं पाईं। साल 1990 में बीजेपी ने उन्हें राज्य सभा का सांसद बना दिया। इस दौरान वह अटल, आडवाणी और जोशी के साथ बीजेपी को मजबूत करने के लिए हर वक्त खड़ी रहीं।

साल 1996 आ गया था और यह समय था बीजेपी के उदय का। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनती है। सुषमा को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया जाता है। यह सरकार सिर्फ 13 दिन चलती है, लेकिन सुषमा एक ऐतिहासिक काम कर जाती हैं। उन्होंने संसद की कार्यवाही के लाइव प्रसारण की शुरुआत कर दी। इसके बाद एक बार फिर अटल सरकार बनती है और उन्हें सूचना प्रसारण के साथ-साथ दूरसंचार मंत्रालय भी मिलता है। उन्होंने इसी दौरान भारतीय फिल्म को उद्योग घोषित कर दिया, जिससे फिल्म इंडस्ट्री में चार-चांद लग गए।

सुषमा स्वराज ने सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की तो उनकी मुलाकात स्वराज कौशल से हुई। कुछ ही दिनों में दोनों का प्यार परवान चढ़ा और 13 जुलाई को दोनों ने शादी कर ली। उन्हें एक बेटी है जो लंदन में पढ़ाई कर रही हैं।

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अक्टूबर 1998 में सुषमा स्वराज को पार्टी ने नई भूमिका दी और 12 अक्टूबर 1998 में वह दिल्ली की पहली महिला सीएम बनीं। हालांकि, 3 दिसंबर को ही उन्होंने इससे इस्तीफा दे दिया। इस बीच देश की राजनीति में सोनिया गांधी की एंट्री हुई और वह कर्नाटक के बेल्लारी सीट से चुनाव लड़ने पहुंच गई। दक्षिण में बीजेपी मजबूत नहीं थी। उसके पास सोनिया को चुनौती देने वाला कोई राष्ट्रीय नेता नहीं था। सुषमा ने इस चुनौती को स्वीकार किया और बेल्लारी से चुनाव लड़ने पहुंच गईं।

बेल्लारी में सुषमा के लिए सबसे जरूरी था, लोगों से कनेक्ट करना। इसके लिए सुषमा ने भाषा को चुना। उन्होंने 15 दिन के अंदर ही कन्नड़ भाषा सीख ली और उसी में वहां भाषण देने लगीं। उनके भाषण का असर ये था कि वह चुनाव में बेहतर करने लगीं और सिर्फ 7% वोट कम पड़ने से हारीं। बीजेपी ने साल 2000 में उन्हें यूपी से राज्यसभा में भेजा और फिर से केंद्रीय मंत्री बना दिया। बीजेपी ने उन्हें पार्टी का प्रवक्ता भी बनाया था और वह किसी भी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता थीं।

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साल 2006 में सुषमा स्वराज को मध्य प्रदेश से राज्यसभा भेजा गया। साल 2009 में वह मध्यप्रदेश की विदिशा सीट से चुनाव लड़ीं और संसद पहुंची। उन्हें लालकृष्ण आडवाणी की जगह पार्टी ने विपक्ष का नेता बना दिया। साल 2014 में वह एक बार फिर सांसद बनीं और उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। वह देश की पहली महिला विदेश मंत्री बनीं थीं। इसके पहले इंदिरा गांधी कार्यवाहक विदेश मंत्री बनी थीं। 7 बार संसद पहुंचने वाली सुषमा को संसद ने भी श्रद्धांजलि दी है।