स्वामीनाथन एस अय्यर लिखते हैं कि नोटबंदी भले ही ठीक तरह से नहीं की गई, लेकिन यह काले धन के खिलाफ बड़ी मुहिम का हिस्सा था। इससे टैक्स चोरी रोकने में मदद मिली।
दुनिया और भारत मंदी की ओर जा रहे हैं। आमतौर पर इसका मतलब टैक्स राजस्व में कमी और राजकोषीय घाटा बढ़ना होता है। आश्चर्यजनक रूप से, टैक्स राजस्व बढ़ रहा है, राजकोषीय घाटा भी स्थिर है। रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति की सदस्य अशिमा गोयल के अनुसार, यह नोटबंदी का नतीजा है। क्या सच में? हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए अपने ब्लॉग Swaminomics में स्वामीनाथन अय्यर ने गोयल के इस दावे का ‘फैक्ट चेक’ किया है। वह लिखते हैं कि मुफ्त राशन योजना, फर्जिलाइजर्स और पेट्रोलियम उत्पादों पर ज्यादा सब्सिडी और उच्च ब्याज भुगतानों के बावजूद अर्द्धवार्षिक राजकोषीय घाटा सालाना अनुमान के सिर्फ 35% पर है जबकि ऐतिहासिक औसत 77% का रहा है। इसके पीछे मुख्य वजह यह रही कि केंद्रीय टैक्स रेवेन्यू सालाना अनुमान के रिकॉर्ड 53% तक पहुंच गया। जीएसटी में भी बूम है। 2017 में इसके साथ अलग-अलग तरह के राज्यवार शुल्क की जगह ऑल-इंडिया लेवल पर एकसमान टैक्स स्ट्रक्चर आया।
भारत के सिस्टम में किसी और देश से ज्यादा GST दरें थीं, नतीजा टैक्स घोषित करने में गड़बड़ियां हुईं। GST कलेक्शन पर असर पड़ा और सालों तक एक ट्रिलियन प्रति माह का आंकड़ा भी नहीं छुआ जा सका। अचानक से मासिक औसत 1.4 ट्रिलियन तक पहुंच गया है। अक्टूबर में GST कलेक्शन 1.52 ट्रिलियन रुपये का हुआ। पिछले 12 महीनों का GST रेवेन्यू GDP के 7% के बराबर रहा। यह कर चोरी में नकेल और स्थायी ढांचागत सुधारों के चलते संभव हो सका।
क्या नोटबंदी ‘वित्तीय आपदा’ थी?
GST भुगतानों का घोषित आय से मिलान कर टैक्स चोरी का पता लगाया जा सकता है। इससे टैक्स कंप्लायंस बेहतर हुआ है। वित्त वर्ष की पहली छमाही में डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन (इनकम और कॉर्पोरेट टैक्स) 24% बढ़ा और जीएसटी कलेक्शन में 33% का उछाल आया। सालों से अर्थशास्त्रियों ने प्रमुख कर सुधारों को असफल बताया क्योंकि उनसे GDP के अनुपात में टैक्स राजस्व नहीं बढ़ा। लेकिन अब टैक्स रेवेन्यू के बढ़ने का मतलब है कि बेहतर अर्थव्यवस्था के साथ समाज भी ज्यादा ईमानदार हो रहा है। क्या इसका श्रेय नोटबंदी को दिया जा सकता है, जैसा अशिमा गोयल कहती हैं। विपक्षी दलों और द इकॉनमिस्ट और फायनेंशियल टाइम्स जैसे पश्चिमी जर्नल्स ने ‘एकसपर्ट्स’ के हवाले से नोटबंदी के वक्त दावा किया कि इससे GDP के 2-2.5% तक नुकसान हो सकता है। बार-बार यही आंकड़े दोहराए गए और नोटबंदी को ‘आपदा’ बताया जाता रहा। यह बात अलग है कि जिन एक्सपर्ट्स का हवाला दिया गया, वे पूरी तरह गलत साबित हुए।
नोटबंदी वाले साले (2016-17) में GDP 8.3% की दर से बढ़ी। यह उस विचार को धता बताता है कि नोटबंदी एक आपदा थी। अय्यर के मुताबिक आलोचकों का यह कहना कि नोटबंदी से GDP का 2.5% चला गया, का मतलब है कि बिना नोटबंदी GDP विकास दर 10.8% रही होती, बिल्कुल बचकाना है। नोटंबंदी एक झटका थी, आपदा नहीं।
नोटबंदी का सही तरीका क्या होता?
अय्यर लिखते हैं कि नोटबंदी का सही तरीका यह होता कि 2015 में 2,000 रुपये और 5,000 रुपये के नए नोट लॉन्च किए जाते। ब्लैक मनी जमा करने वाले इन नोटों पर टूट पड़ते। फिर 2016 में सरकार इन नोटों को बैन कर सकती थी। 500 और 1000 रुपये के नोट को नहीं छूना था क्योंकि इन्हें आम जनता और छोटे व्यापारी इस्तेमाल करते थे। अगर ऐसे नोटबंदी करते तो काले धन के जमाखोर भी पकड़े जाते और जनता को नाकों चने नहीं चबाने पड़ते। इसके उलट, सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिए। अगर योजना ठीक तरह से लागू की गई होती तो कैश की किल्लत नहीं होती। नए नोटों को पहले ही बैंकों तक पहुंचा देना था। बीजेपी वालों को लगा था कि तगड़ी ब्लैक मनी रखने वालों का कैश बेकार हो जाएगा, लेकिन एक तरह से सारे नोट्स एक्सचेंज हो गए। नोटबंदी से ब्लैक मनी का पता न के बराबर लगा।
ये सभी बड़ी गलतियां थीं। इसके बावजूद नोटबंदी हवा में छोड़ा गया तीर भर नहीं थी। यह ब्लैक मनी के खिलाफ बड़ी मुहिम का हिस्सा थी। रियल एस्टेट और मनी लॉन्ड्रिंग पर कड़े नियमों के साथ व्यापक टैक्स इन्फॉर्मेशन नेटवर्क और डिजिटलाइजेशन ने टैक्स चोरी को बेहद मुश्किल बना दिया। फिर GST आया और चोरी रोकने में एक और हथियार बना। अच्छी बात यह है कि कई चूकों, देरियों और गड़बड़ियों के बाद सरकार का ब्लैक मनी पर नकेल कसने और टैक्स कप्लायंस बेहतर करने का प्लान काम कर रहा है।