चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब की अहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई उस ने मगर बिछड़ते वक़्तContinue Reading