बात 3 जुलाई, 1857 की है. लखनऊ के क़ैसरबाग़ महल के बाग़ में चाँदीवाली बारादरी की तरफ़ एक बड़ा जुलूस बढ़ रहा था. उस जुलूस के बीचों-बीच एक 14 साल का दुबला पतला, साँवला सा लड़का चल रहा था. लड़के का नाम था बिरजिस क़द्र. वो एक साल पहले निर्वासितContinue Reading

बात 3 जुलाई, 1857 की है. लखनऊ के क़ैसरबाग़ महल के बाग़ में चाँदीवाली बारादरी की तरफ़ एक बड़ा जुलूस बढ़ रहा था. उस जुलूस के बीचों-बीच एक 14 साल का दुबला पतला, साँवला सा लड़का चल रहा था. लड़के का नाम था बिरजिस क़द्र. वो एक साल पहले निर्वासितContinue Reading