Taliban Help US In Zawahiri Killing : तालिबान ने वादा किया था कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं होने देगा। अमेरिका को उम्मीद थी कि वह तालिबान की मदद से आईएस खुरासान आतंकी संगठन का खात्मा करेगा। एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान ने पैसे और सत्ता की खातिर दोहा समझौते को तो मान लिया लेकिन उसके अंदर मौजूद कई धड़ों को यह अंदर ही अंदर रास नहीं आया।
जवाहिरी की मौत के बाद अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या तालिबान और अलकायदा के बीच रिश्ते एक जैसे ही रहेंगे या इस मौत का दोनों के बीच घनिष्ठ रिश्तों पर कोई असर पड़ेगा। वह भी तब जब तालिबान दुनिया से मान्यता लेने के लिए अपनी हर कोशिश कर रहा है। दरअसल, फरवरी 2020 में कतर में अमेरिका और तालिबान के बीच एक समझौता हुआ था। इसके बाद अमेरिकी सेनाएं करीब 20 साल बाद अफगानिस्तान से वापस चली गई थीं।
दोहा समझौते से दो फाड़ में बंट गया तालिबान
तालिबान ने वादा किया था कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं होने देगा। अमेरिका को उम्मीद थी कि वह तालिबान की मदद से आईएस खुरासान आतंकी संगठन का खात्मा करेगा। एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान ने पैसे और सत्ता की खातिर दोहा समझौते को तो मान लिया लेकिन उसके अंदर मौजूद कई धड़ों को यह अंदर ही अंदर रास नहीं आया। उन्होंने इस समझौते को नहीं माना और तालिबान में रहते हुए भी अलकायदा के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखा। इससे तालिबान दो फाड़ में बंट गया।
नया तालिबान बनाम पुराना तालिबान
एक तरफ नया तालिबानी हैं जो अत्याधुनिक तकनीकी से लैस हैं, अंग्रेजी बोलते हैं जो इस अवसर को अपने संगठन की छवि को बदलने और दुनिया से पैसा लेकर अफगान समाज को मजबूत करना चाहते हैं। वहीं दूसरी ओर पुराने तालिबानी लड़ाके हैं। पुराने तालिबानी लड़ाकों का एक धड़ा अब्दुल गनी बरादर के प्रति निष्ठा रखता है जो तालिबानी कब्जे के बाद उप प्रधानमंत्री बना था। मुल्ला बरादर का यह गुट तालिबान के गढ़ कंधार का रहने वाला है जो बहुत कट्टर माने जाते हैं।
कभी खत्म नहीं हुए थे हक्कानी और अल कायदा के रिश्ते
इसके अलावा दोहा समझौते का पाकिस्तान के पालतू हक्कानी ब्रदर्स ने भी विरोध किया था। इसी सिराजुद्दीन हक्कानी के घर में अलकायदा सरगना जवाहिरी कई महीने से रह रहा था। हक्कानी इस दोहा समझौते को पश्तूनों के साथ धोखा मानता है। सिराजुद्दीन हक्कानी ने तालिबान के क्वेटा काउंसिल को कभी नहीं माना। यही नहीं हक्कानी खुद को काबुल पर जीत का हीरो मानता है। एक अफगान खुफिया अधिकारी के मुताबिक हक्कानी नेटवर्क ने कभी भी अलकायदा के साथ अपने रिश्ते को नहीं तोड़ा है।
लोकल सपोर्ट के बिना सर्जिकल ऑपरेशन मुश्किल
अब सवाल यह उठता है कि क्या तालिबान ने अमेरिकी ऑपरेशन में मदद की? इतनी जल्दी इस बारे में कुछ भी कहना मुश्किल होगा और यह भी संभव है कि सच कभी बाहर न आए। माना जा रहा था कि इस ड्रोन हमले की योजना कई महीनों से बनाई जा रही थी। यह भी हो सकता है कि इसे बेहद अच्छी तरह प्लान किया गया था और बिना किसी लोकल सपोर्ट के अंजाम दिया गया जिसमें सिर्फ इंटेलिजेंस की भूमिका थी।
इनाम के लालच में दिया अमेरिका का साथ?
हालांकि बेहद कड़ी सुरक्षा वाले इलाके में अमेरिकी ड्रोन हमले जैसे सर्जिकल ऑपरेशन इस बात का संकेत देते हैं कि जवाहिरी की सटीक लोकेशन का पता लगाने में कुछ मदद ली गई थी। एक ऐसा मुल्क जो गरीबी, खाद्यान संकट और भ्रष्टाचार की चपेट में है, वहां जवाहिरी जैसे आतंकवादी का पता बताने वाले को 25 मिलियन डॉलर का इनाम उन कयासों को और पुख्ता कर देता है जिनमें अमेरिका को लोकल सपोर्ट की बात कही जा रही है।