“अफ़ग़ानिस्तान आज दुनिया के लिए 2001 से भी कहीं बड़ा ख़तरा है.”
ये गंभीर चेतावनी दी है तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ने वाले चर्चित नेता के बेटे ने. अहमद मसूद सिर्फ़ 33 साल के हैं और अपने पिता के नक़्शे क़दम पर चल रहे हैं.
उनके पिता ‘पंजशीर के शेर’ के नाम से मशहूर रहे चर्चित तालिबान विरोधी विद्रोही कमांडर अहमद शाह मसूद थे. मसूद परिवार का काबुल के उत्तर में स्थित पंजशीर प्रांत में ख़ासा प्रभाव रहा है.
अहमद शाह मसूद की साल 2011 में अमेरिका पर हुए अल क़ायदा के हमलों से दो दिन पहले अल क़ायदा लड़ाकों ने हत्या कर दी थी. ये अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के पहले शासन के अंतिम दिनों की बात है. उन दिनों तालिबान ने दूसरे इस्लामी समूहों को अफ़ग़ानिस्तान में पनाह दी थी.
अब अहमद मसूद को डर है कि इतिहास फिर से ख़ुद को दोहरा रहा है.
‘आतंकवादियों का सुरक्षित ठिकाना’
अहमद मसूद का कहना है कि उनका इस्लामिक स्टेट और अल क़ायदा समेत दर्जनों चरमपंथी समूहों के लिए सुरक्षित ठिकाना बन गया है. ये संगठन अपनी चरमपंथी विचारधारा को दुनिया में फैलाना चाहते हैं.
अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सैन्यबलों के जाने के बाद पश्चिम समर्थक अफ़ग़ानिस्तान सरकार बीते साल अगस्त में गिर गई थी. तालिबान ने बीस साल तक सरकार से हिंसक संघर्ष करने के बाद दोबारा सत्ता हासिल कर ली है.
बीबीसी के साथ ख़ास बातचीत में अहमद मसूद दुनिया को अफ़ग़ानिस्तान को नज़रअंदाज़ न करने की चेतावनी देते हैं. मसूद कहते हैं कि उनके देश को तुरंत ध्यान दिए जाने और राजनीतिक स्थिरता की ज़रूरत है.
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अहमद मसूद ने कहा कि चरमपंथी समूह अफ़ग़ानिस्तान के हालात का फ़ायदा उठाकर विदेशी हितों पर हमला कर सकते हैं. उनके दिवंगत पिता अहमद शाह मसूद ने भी 9/11 हमलों से कुछ दिन पहले ही ऐसी ही चेतावनी जारी की थी.
अहमद मसूद कहते हैं कि उनके पिता की चेतवानी पर ध्यान नहीं दिया गया था और दुनिया अब तक उसके अंजाम भुगत रही है. मसूद कहते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान के मौजूदा हालात उनके पिता के दौर के हालात से भी कहीं अधिक ख़तरनाक़ और ख़राब हैं.
वो कहते हैं, “मैं ये उम्मीद करता हूं कि दुनिया और ख़ासतौर पर यूरोप अफ़ग़ानिस्तान से पैदा हो रहे ख़तरे की गंभीरता को समझेगा और अफ़ग़ानिस्तान में एक ज़िम्मेदार और वैध सरकार स्थापित करने के लिए सार्थक तरीक़े से दख़ल देगा.”
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“लड़ने के लिए मजबूर”
अहमद मसूद ने ब्रिटेन के सैंडहर्स्ट स्थित रॉयल सैन्य अकादमी में एक साल प्रशिक्षण लिया है. ब्रिटेन अपने सैन्य अधिकारियों को यहीं प्रशिक्षित करता है. इसके बाद उन्होंने किंग्स कॉलेज लंदन से वॉर स्टडीज़ में डिग्री हासिल की है.
युवा नेता अहमद मसूद का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान के मौजूदा हालात का समाधान युद्ध के बजाए राजनीतिक तरीक़े से होना चाहिए. हालांकि वो ये भी कहते हैं कि तालिबान ने उनके सामने प्रतिरोध करने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा है. वो कहते हैं कि ‘तालिबान मानवता के ख़िलाफ़ जो अपराध कर रहे हैं’ वो उनके ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं.
बीते साल अगस्त में अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के बाद अहमद मसूद अपने गृह प्रांत पंजशीर वापस लौट आए थे और यहां उन्होंने तालिबान के ख़िलाफ़ नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट स्थापित किया.
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ड्रामा क्वीन
समाप्त
मसूद अब तीन हज़ार से अधिक हथियारबंद लड़ाकों के कमांडर हैं. पिछले 11 महीनों से उनके लड़ाके तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं. ये लड़ाई पंजशीर की घाटियों और पहाड़ियों और रणनीतिक रूप से अहम बग़लान प्रांत के अंदरबा ज़िले में चल रही है.
अहमद मसूद ने तालिबान के इस दावे को चुनौती दी है कि वो अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता लेकर आए हैं. 1990 के दशक के अंत में तालिबान के खिलाफ उनके पिता के सशस्त्र संघर्ष के विपरीत, किसी भी देश ने अब तक तालिबान के ख़िलाफ़ अहमद मसूद के सशस्त्र प्रतिरोध का सार्वजनिक रूप से समर्थन नहीं किया है.
पिछले महीने ब्रितानी सरकार ने एक बयान जारी कर कहा था, “वह किसी का समर्थन नहीं करती है, इसमें वो अफ़ग़ान नागरिक भी शामिल हैं जो हिंसा के ज़रिए राजनीतिक बदलाव लाना चाहते हैं, या किसी ऐसी गतिविधि का समर्थन नहीं करती है जो अफ़ग़ानिस्तान में राजनीतिक उद्देश्यों के लिए हिंसा को उकसाती हैं.”
तालिबान ने ब्रिटेन के इस क़दम का स्वागत किया था.
हालांकि अहमद मसूद कहते हैं कि इस बयान पर नैतिक रूप से सवाल उठाए जा सकते हैं. वो सवाल करते हैं कि अब वैश्विक शक्तिशाली देश ये कैसे कह सकते हैं कि तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ना स्वीकार्य नहीं है जबकि उन्होंने स्वयं दशकों तक तालिबान के ख़िलाफ़ सैन्य अभियानों का समर्थन किया था.
वो कहते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के पास स्वतंत्रता और न्याय के लिए लड़ने का अधिकार है. वो कहते हैं, “नैतिक रूप से देखा जाए तो ये ऐसा मक़सद है जिसका समर्थन किया जाना चाहिए.”
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पैसे और हथियारों की कमी
नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट के नेता अहमद मसूद ये स्वीकार करते हैं कि उनके बलों के पास तालिबान के मुक़ाबले बहुत कम संसाधन हैं. वो कहते हैं कि लड़ाकों के उच्च मनोबल और प्रेरणा ने इस प्रतिरोध को जारी रखा है.
मसूद कहते हैं, “हम साल 2022 में हैं. एक नई युवा पीढ़ि नया अफ़ग़ानिस्तान चाहती है जहां वो अपने भविष्य का फ़ैसला कर सकें.” अहमद मसूद ने ब्रिटेन समेत दुनिया के शक्तिशाली देशों से तालिबान पर अफ़ग़ानिस्तान में राजनीतिक समाधान के लिए दबाव बनाने का आह्वान किया है.
अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान की सत्ता स्थापित हुए क़रीब एक साल हो गया है लेकिन अभी तक किसी भी देश ने तालिबान के शासन को मान्यता नहीं दी है. हालांकि रूस समेत कई क्षेत्रीय देशों ने ये संकेत दिए हैं कि वो तालिबान के साथ सामान्य रिश्ते रखने के इच्छुक हैं.
अहमद मसूद तालिबान को मान्यता देने के ख़िलाफ़ चेतावनी देते हैं. वो कहते हैं कि जो देश भी तालिबान को मान्यता देगा उसे तालिबान के ज़ुल्म और शोषण के लिए भी ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा.
अहमद मसूद ने तालिबान पर पंजशीर और अंदराब में लोगों को अग़वा करने और उन्हें प्रताड़ित करने के आरोप भी लगाए हैं. संयुक्त राष्ट्र ने भी इन इलाक़ों में हुए हत्याओं को रेखांकित किया है.
अहमद मसूद कहते हैं कि तालिबान ने जिन लोगों को गिरफ़्तार किया उनमें से 97 फ़ीसदी का नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट से कोई संबंध नहीं है. वो कहते हैं कि तालिबान उन पर मानसिक दबाव डालने के लिए ऐसा कर रहे हैं. अहमद मसूद पीड़ित परिवारों से माफ़ी मांगते हुए कहते हैं कि वो इन परिवारों की मदद नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनके पास संसाधन सीमित हैं.
बातचीत का न्यौता
वो कहते हैं कि इस संकट का एकमात्र समाधान राजनीतिक वार्ता है. मसूद का तालिबान नेताओं से कई बार आमना सामना हो चुका है. इनमतें छह महीने पहले तालिबान के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी से तेहरान में हुई मुलाक़ात भी शामिल है.
वो कहती हैं कि बातचीत बहुत अच्छी नहीं रही. इसके लिए वो तालिबान को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि अभी तालिबान ऐसी स्थिति में नहीं आया है जहां वो राजनीतिक समाधान में यक़ीन रखता हो.
हालांकि मसूद ये भी कहते हैं कि ऐसे संकेत हैं कि तालिबान में निचले स्तर के लोग चाहते हैं कि प्रक्रिया अधिक खुली और समावेशी हो. उन्हें उम्मीद है कि ये समझ शीर्ष नेताओं तक भी पहुंचेगी.
लेकिन वो जानते हैं कि उनकी लड़ाई लंबी है और वो अकेले हैं. “दुनिया ने अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को अकेला छोड़ दिया है. दुनिया ने वैश्विक आतंकवाद से लड़ने के लिए हमें अकेला छोड़ दिया है”