आतंकियों की एके-47 का 3 नॉट 3 राइफल से सामना, बहादुर बालकृष्ण ने उस दिन राजौरी में बचा लिया पूरा गांव

Jammu Terror Attack: जम्मू स्थित राजौरी के धंगरी गांव निवाली बालकृष्ण ने साहस न दिखाया होता तो हो सकता था कि उस दिन पूरा का पूरा गांव ही साफ हो जाता। बालकृष्ण ने अपनी पुरानी राइफल की मदद से आतंकियों का डटकर सामना किया और खदेड़ दिया। वहीं बालकृष्ण की इस बहादुरी को गांव वाले सलाम कर रहे हैं।

JAMMU DHANGRI VILLAGER BALKRISHNA
धंगरी गांव के निवासी बालकृष्ण

जम्मू: नए साल पर राजौरी के धंगरी गांव में आतंकियों ने हिंदू परिवारों पर हमला कर दिया था। इस हमले में चार लोगों की मौत हो गई थी। आतंकी हमले के अगले दिन सुबह ही फिर एक आईईडी ब्लास्ट हुआ था। इस घटना में दो बच्चों की मौत हो गई थी। हिंदू परिवारों पर आतंकी हमले के दौरान यहां रहने वाले बालकृष्ण की जाबांजी को देखकर लोग सलाम कर रहे हैं। क्योंकि अगर बालकृष्ण ने साहस न दिखाया होता तो हो सकता था कि पूरा का पूरा गांव ही साफ हो जाता। दरअसल अधेड़ उम्र के बालकृष्ण के पास पुरानी लेकिन भरोसेमंद .303 राइफल है। जिसकी मदद से उन्होंने आतंकियों का डटकर सामना किया। बालकृष्ण के साहस के आगे आतंकी ज्यादा देर तक टिक नहीं पाए और भाग खड़े हुए। सेमीऑटोमैटिक राइफल्स से लैस आतंकवादियों के एक झुंड के सामने दशकों पुरानी राइफल से सामना करना इतना आसान नहीं था। लेकिन फिर भी बालकृष्ण ने हौंसला दिखाते हुए आतंकियों का डटकर सामना किया। वहीं इसके बाद गांव वाले बालकृष्ण की तारीफ कर रहे हैं। बाल कृष्ण पूर्व ग्राम रक्षा समिति (वीडीसी) के सदस्य हैं। वीडीसी की स्थापना 1990 के दशक के मध्य में दूरस्थ और पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों की सुरक्षा के लिए की गई थी।

आतंकी घटना के बाद नायक बने बालकृष्ण

राजौरी के धंगरी गांव में होने वाली आतंकी घटना के बाद बालकृष्ण की छवि गाव वालों के बीच नायक की तरह बन गई है। 50 साल के कृष्ण को गांव वाले बाला के नाम से बुलाते हैं। तीन बच्चों के पिता बालकृष्ण की धंगरी के मुख्य बाजार चौक पर कपड़े बेचने की दुकान है। उनके बड़े भाई केवल कृष्ण ने आतंकी हमले के उस मंजर को याद किया। जिसका सामना उनके गांव ने पहली बार किया था। बालकृष्ण के भाई ने बताया कि, ‘बाला अपनी दुकान से घर लौटा ही था कि तभी पहाड़ों से गोलियों की आवाज गूंज उठी। हमें कुछ पता नहीं था कि क्या हो रहा है और हम डरे हुए थे। बाला ने राइफल उठाई और बाहर चला गया। उसने दो बंदूकधारियों को पड़ोस में घूमते देखा जो कि हमारे घर के करीब थे। बालकृष्ण ने पहले तो तुरंत दो फायर किए जिसके कुछ ही देर बाद दो और गोलियां चलाईं।’ एक सेवानिवृत्त सैन्य अभियंता सेवा कर्मचारी केवल ने कहा, ‘गोलियों से घबराए आतंकवादी जंगलों में भाग गए।’ सरपंच धीरज शर्मा धनगड़ी के भी नायक बालकृष्ण की तारीफ करने से खुद को नहीं रोक सके। उन्होंने कहा कि, ‘बाला के पास वह है जो आतंकवादियों के पास कभी नहीं होगा और वो है साहस।’

1999 में मिली थी राइफल

आखिरी बार कृष्ण ने साल 1999 में राइफल से फायर किया था। यह राइफल उन्हें VDC सदस्य के रूप में सेना के जरिए दी गई थी। उन्हें 100 कारतूस दिए गए, जिनमें से 10 ट्रेनिंग के दौरान खर्च हो गए। बालकृष्ण ने दशकों तक राइफल को संभालकर रखा। हाल ही में सभी वीडीसी को अपने हथियार आत्मसमर्पण करने के नोटिस मिलने के बाद भी बालकृष्ण ने राइफल को साफ किया और तेल लगाया था। वीडीसी की स्थापना 1990 के दशक के मध्य में दूरस्थ और पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों की सुरक्षा के लिए की गई थी। लेकिन जम्मू क्षेत्र में इन रक्षकों ने मनमानी और हथियारों के दुरुपयोग के आरोपों के बाद बीते सालों में अपना प्रभाव खो दिया।

दोबारा हो रही वीडीसी को मजबूत करने की मांग

धंगरी सरपंच शर्मा ने कहा, ‘लोगों के टूटे हुए विश्वास को बहाल करने के लिए वीडीसी को मजबूत करना जरूरी है। अगर हमारे पास आधुनिक हथियार वाले लोग होते तो इस नरसंहार को टाला जा सकता था।’ एक शीर्ष पुलिस अधिकारी के अनुसार, वीडीसी को पुनर्जीवित किया जा सकता है। लेकिन इसे एक अलग नाम के तहत शुरू करना होगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर में ग्राम रक्षा समूहों (वीडीजी) के गठन की योजना को मंजूरी दे दी है।