थैंक यू, मी लॉर्ड

गर्भपात का कानून जब बना था, तब की स्थिति को ध्यान में रखते हुए भले ही इसे विवाहित महिलाओं तक सीमित रखना सहज और स्वाभाविक माना गया होगा, लेकिन इस बीच समाज में विवाह और परिवार को लेकर बहुत सारे बदलाव देखने को मिले हैं। अब लिव इन जैसे रिश्ते पनप रहे हैं, जो विवाह और परिवार के पारंपरिक मॉडल से अलग हैं।

 

Supreme Court

गर्भपात के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का गुरुवार को दिया गया फैसला देश में महिलाओं के अधिकार के लिहाज से तो महत्वपूर्ण है ही, यह सामाजिक और न्यायिक चेतना को आगे ले जाने के मामले में भी भारतीय न्यायपालिका को दुनिया में अग्रणी बनाता है। अपने इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुरक्षित गर्भपात का अधिकार शरीर की स्वायत्तता से जुड़ा है और इसलिए किसी भी महिला को इससे वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कानून की व्याख्या समाज में आ रहे बदलाव को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिए। गर्भपात का कानून जब बना था, तब की स्थिति को ध्यान में रखते हुए भले ही इसे विवाहित महिलाओं तक सीमित रखना सहज और स्वाभाविक माना गया होगा, लेकिन इस बीच समाज में विवाह और परिवार को लेकर बहुत सारे बदलाव देखने को मिले हैं। अब लिव इन जैसे रिश्ते पनप रहे हैं, जो विवाह और परिवार के पारंपरिक मॉडल से अलग हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने संदेह की कोई गुंजाइश न रखते हुए स्पष्ट कहा कि महिला विवाहित हो या अविवाहित उसे प्रजनन का अधिकार है। इसीलिए उसे गर्भपात के कानूनी अधिकार से वंचित रखना महिला की गरिमा पर चोट पहुंचाना है। देश की सर्वोच्च अदालत के इस उदार और व्यापक नजरिए को अगर वैश्विक संदर्भ में देखा जाए तो मौजूदा दौर में इसकी अहमियत और उभरकर सामने आती है। खासकर गर्भपात के ही मसले पर आए पिछले दिनों अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के बहुचर्चित फैसले को देखें, जिसमें गर्भपात के संवैधानिक अधिकार को खत्म कर दिया गया, तो यह साफ हो जाता है कि कानून और संविधान की गलत व्याख्या के जरिए न्यायपालिका समाजिक चेतना को पीछे ले जाने का काम भी कर सकती है।
इस लिहाज से देश के सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसले के जरिए जिस व्यापकता और उदारता का परिचय दिया है, वह पूरे न्यायिक जगत के लिए एक मिसाल है। इसमें बात सिर्फ गर्भपात के अधिकार तक ही सीमित नहीं रहती, अदालत ने घरेलू हिंसा वाले पहलू के सहारे यह भी कहा कि अगर कोई विवाहित महिला इच्छा के विरुद्ध गर्भधारण करती है तो उसे उसी तरह से गर्भपात का अधिकार होगा जैसे किसी रेप विक्टिम अविवाहित महिला को होता है। ऐसे मामलों में उसे अलग से रेप की शिकायत दर्ज कराने या रेप साबित करने की जरूरत नहीं होगी। उसके मामले को मैरिटल रेप मान लिया जाएगा। ऐसा कहकर अदालत ने कानून में मैरिटल रेप के कॉन्सेप्ट को प्रवेश दिला दिया। चूंकि मैरिटल रेप से जुड़ी एक याचिका पहले से ही सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है, उम्मीद की जानी चाहिए कि मैरिटल रेप को कानून से मिली अनैतिक छूट जल्द ही खत्म हो जाएगी। पर जरूरी यह है कि विधायिका भी कानून निर्माण में ऐसे ही परिपक्व, उदार और व्यापक नजरिए का अनुसरण करे।