सुप्रीम कोर्ट ने संदेह की कोई गुंजाइश न रखते हुए स्पष्ट कहा कि महिला विवाहित हो या अविवाहित उसे प्रजनन का अधिकार है। इसीलिए उसे गर्भपात के कानूनी अधिकार से वंचित रखना महिला की गरिमा पर चोट पहुंचाना है। देश की सर्वोच्च अदालत के इस उदार और व्यापक नजरिए को अगर वैश्विक संदर्भ में देखा जाए तो मौजूदा दौर में इसकी अहमियत और उभरकर सामने आती है। खासकर गर्भपात के ही मसले पर आए पिछले दिनों अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के बहुचर्चित फैसले को देखें, जिसमें गर्भपात के संवैधानिक अधिकार को खत्म कर दिया गया, तो यह साफ हो जाता है कि कानून और संविधान की गलत व्याख्या के जरिए न्यायपालिका समाजिक चेतना को पीछे ले जाने का काम भी कर सकती है।
2022-10-02