रोटी कितनी महंगी है ये वो औरत बताएगी… वंचितों के लिए लड़ती रही अदम गोंडवी की धारदार लेखनी

उत्तर प्रदेश के गोंडा के मशहूर कवि अडम गोंडवी की आज सालगिरह है। असमानता के खिलाफ उनकी काव्यात्मक लड़ाई और उनकी विद्रोही ग़ज़लें आज भी जिंदा हैं। उनका तीखा व्यंग्य आज के भारत की भी कहानी कहता है। पढ़ें उनकी सालगिरह के मौके पर कुछ कविताओं की पंक्तियां।

Adam Gondvi
अदम गोंडवी

जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिए
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिए
जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिए

जिस अंदाज से अदम गोंडवी सिस्टम पर कटाक्ष करते थे, उसकी दुनिया दीवानी बनी। आज के दौर में भी सोशल मीडिया पर, वॉट्सऐप स्टेटस, अपनी फेसबुक पोस्ट पर उनकी पंक्तियों के संग लोग उन्हें याद करते हैं। आज अदम गोंडवी की सालगिरह है (22 अक्टूबर 1947-18 दिसंबर 2011) और असमानता के खिलाफ उनकी काव्यात्मक लड़ाई में यह दिन बहुत खास है। साहित्यकारों-कवियों का कहना है कि उनकी विद्रोही ग़ज़लें आज भी जिंदा हैं, उनका तीखा व्यंग आज के भारत की भी कहानी कहता है और नई पीढ़ी को अदम को जरूर पढ़ना-समझना चाहिए।

ग़ज़लकार हरेराम समीप बताते हैं, अदम एक ऐसे अदम्य कवि थे, जिन्होंने अन्याय और शोषण के खिलाफ निडर होकर आवाज उठाई। ‘अदम’ का मतलब है वंचित। यह नाम उन्हें उनके गुरु ने दिया था। बचपन से ही वह क्रांतिकारी थे। उनका एक ही विषय था समाजिक न्याय । अन्याय के खिलाफ उनके अंदर विद्रोह की आग भरी हुई थी। मनुष्यता का अपमान उन्हें बर्दाश्त नहीं था। वो उत्तर प्रदेश गोंडा से एक ठाकुर परिवार से थे और गरीबों, दलितों, वंचितों पर अत्याचार के खिलाफ उन्होंने अपने ही समुदाय के लोगों का विरोध किया। वहां से लड़ते-लड़ते समाज की लड़ाई और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की स्थिति पर उन्होंने लड़ाई लड़ी। अन्याय, अपमान, अत्याचार, इन तीन शब्द पर ही उनकी लड़ाई का आधार और विस्तार रहा।
असमानता पर अदम खूब लिखते हैं…

आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको

रोटी कितनी महंगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है

स्कूल-कॉलेज नहीं, जिंदगी को पढ़ा
अदम स्कूल में कम ही पढ़े, मगर जिंदगी में वो बहुत पढ़े लिखे थे। हरेराम समीप बताते हैं, बचपन में वो बीमार रहते थे इस वजह से ज्यादा पढ़ नहीं पाए। वह एक वैद्य के पास 11 साल तक रहे जो कि फारसी के भी विद्वान थे। उन्होंने ही उन्हें ‘अदम’ नाम दिया क्योंकि वह वंचितों के लिए लड़ते थे। अदम खुद भी अपनी पहचान बदलना चाहते थे और वह ठाकुर रामनाथ सिंह से अदम गोंडवी हो गए। वह बहुत विद्वान थे। मैं उनके साथ भी रहा हूं।वह इतना पढ़ते थे कि देश के सभी विचारकों के अलावा उन्होंने दुनिया के हर विचारक सुकरात, मार्क्स, लेनिन हर किसी को पढ़ा। वह पढ़े-लिखे दृष्टिवान हिंदी कवि थे।
अदम की पंक्तियां एक अदा से सिस्टम पर चोट करती हैं। वह लिखते हैं…
आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी
हम ग़रीबों की नज़र में इक क़हर है ज़िन्दगी

तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है

कोठियों से मुल्क के मेआर को मत आंकिए
असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है

समीप कहते हैं, उनकी ग़ज़लें आज के दिन भी प्रासंगिक हैं और नई पीढ़ी को उन्हें जरूर पढ़ना चाहिए।

‘वह हिंदी कवि थे मगर ग़ज़ल का अनुशासन संभाला’
वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी कहते हैं, ग़ज़ल का रूप विधा संभाल पाना बड़ा मुश्किल काम है। अदम गोंडवी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह हिंदी के कवि थे मगर उन्होंने उर्दू की ग़ज़ल का अनुशासन उसी तरह संभाला है, जिस तरह एक उर्दू का कवि संभालता है। हिंदी का होते हुए ही भी वह उर्दू कवियों जैसी ग़ज़ल करते थे। दूसरा, उन्होंने किसानों, मजदूरों के जीवन पर और शोषितों, वंचितों के दुख और विसंगतियों पर खूब कविताएं लिखीं और इसके लिए उन्होंने अपनी भाषा रची, मुहावरे रचे, अपने बिम्ब रचे। सामंती व्यवस्था, समाज के पाखंड पर उन्होंने सटीक और चुभती हुई कविताएं लिखी हैं।

त्रिपाठी कहते हैं, अदम व्यंग भी लिखते थे। हास्य और विनोद केवल मनोरंजन करता है, मगर व्यंग प्रहार करता है। जैसे,

काजू भुने पलेट में, विह्सकी गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

त्रिपाठी कहते हैं, ग़ज़ल में इश्क-माशूक के लिए लिखा जाता है, इसमें कोमलता होती मगर इसमें कोमलता नहीं, बल्कि खुरदरापन है। यही उनकी बहुत बड़ी विशेषता है।
देश के विकास की पोल अदम ने अपनी लेखनी में खोली। भूख, समानता, भ्रष्टाचार, वोट राजनीति उन्हें बेचैन करते थे। वह लिखते हैं…

ख़ुदा का वास्ता देकर किसी का घर चला देना
यह मज़हब की वफादारी हक़ीक़त में सियासी है

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद हैं
दिल रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है