दवा, दुआ, दमखम से जीती कैंसर की जंग, कैंसर को हराने वालों ने कहा-शरीर है तो रोग है

विश्व कैंसर जागरुकता दिवस के मौके पर अमर उजाला ने ऐसे कैंसर रोगियों से बात की जो बीमारी से पूरे दमखम से लड़े, खुश रहे और जिंदगी की जंग जीत ली। आइये जानते हैं ऐसे लोगों के अनुभव…

ओपी सक्सेना, दिलशाद, ऊषा रानी मिश्रा
ओपी सक्सेना, दिलशाद, ऊषा रानी मिश्रा

ऐसा नहीं कि कैंसर हो गया तो जिंदगी खत्म। नियमित दवा, दुआ और बीमारी से लड़ने का दमखम है तो कैंसर से भी जंग जीती जा सकती है। रोगी में दृढ़ इच्छाशक्ति है तो यह शरीर को बीमारी से टूटने नहीं देती और दवाओं का असर बढ़ जाता है। विश्व कैंसर जागरुकता दिवस सोमवार को है। इस मौके पर अमर उजाला ने ऐसे कैंसर रोगियों से बात की जो बीमारी से पूरे दमखम से लड़े, खुश रहे और जिंदगी की जंग जीत ली। आइये जानते हैं ऐसे लोगों के अनुभव…

25 साल से ब्लड कैंसर को दे रहे शिकस्त

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सेवानिवृत्त सहायक प्रबंधक केसी तिवारी को ब्लड कैंसर 29 अक्तूबर वर्ष 1997 में पता चला था। लेकिन वे न घबराए और न डरे। विशेषज्ञों को दिखाया और नियमित दवाएं शुरू कीं। दिनचर्या अपनी ठीक रखी और कैंसर हारता रहा। ब्लड कैंसर होने के बाद वे बैंक में अपनी नियमित ड्यूटी करते रहे। ऐसा भी कभी नहीं हुआ कि बीमारी की बात करके उन्होंने कभी किसी तरह की राहत तलब की हो। वर्ष 2004 में उन्होंने वीआरएस ले लिया। इस वक्त उनकी उम्र 75 साल की है, लेकिन रूटीन वैसा ही है। केसी तिवारी कहते हैं कि कभी सोचा ही नहीं की बीमारी है। उनके बेटे नव तिवारी और परिवार ने पूरा सपोर्ट किया। वे दूसरे रोगियों को भी सलाह देते हैं कि खुश रहें।

स्वस्थ सोच के साथ कैंसर को दी मात
सिविल लाइंस के रहने वाले सेवानिवृत्त ऑडिट अफसर ओपी सक्सेना को वर्ष 2002 में मल्टीपल माइलोमा और ब्लड कैंसर का पता चला था। नियमित दवाओं के सेवन और दिनचर्या दुरुस्त रखकर इस वक्त बिल्कुल फिट हैं। सामान्य और खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। उनका कहना है कि दवा, दुआ और खुश रहना कैंसर से जीतने का अचूक नुस्खा है। बीमारी के बाद वे अवसाद में नहीं गए, बल्कि सही तरीके से इलाज कराया। रोग को हराया और सामान्य तरह से जी रहे हैं। अंदर की भावना का बहुत असर पड़ता है। अगर किसी को कैंसर पता चलता है तो कोई बात नहीं, शरीर है तो रोग है। लेकिन इसका इलाज भी है। दवाओं में लापरवाही नहीं करनी चाहिए। सोच स्वस्थ रखनी चाहिए।
हारे नहीं, हौसले से हराया रोग को
रावतपुर के रहने वाले दिलशाद को मुख कैंसर था। वर्ष 2009 में रोग पता चला। कहते हैं कि पहले तो सदमा सा लगा, बच्चे छोटे थे। उनका नाई का पेशा था। आमदनी बहुत कम थी। फिर भी ठान लिया कि जीना है। दिमाग से रोग निकाल दिया। जेके कैंसर इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों ने इलाज किया। वक्त पर जाकर सेंकाई कराई। दवाएं लीं, ऊपर वाले को याद किया और मस्त रहे। बीमारी खत्म हो गई। बच्चे भी बड़े हो गए हैं और काम-धंधे से लग गए। बेटियों की शादी भी कर ली है। एहतियातन जाकर साल-छह महीने में ओपीडी में जाकर चेक करा लेते हैं। घबराना नहीं चाहिए। बीमारी है तो ठीक होगी। लापरवाही से दिक्कत हो जाती है।

बाल पहले से अच्छे निकले, जीवान सामान्य है 
गुंजनविहार, कर्रही की रहने वाली ऊषा रानी मिश्रा को वर्ष 2010 में स्तन कैंसर डायग्नोस हुआ था। उनका जेके कैंसर इंस्टीट्यूट में इलाज हुआ। बताती हैं कि जब सेंकाई हो रही थी तो बाल बिल्कुल झड़ गए थे। रंग सांवला हो गया। महिला के बाल न हों, बड़ा खराब लगता था। लेकिन लगकर इलाज कराया। पहले से घने बाल निकले हैं और त्वचा भी बिल्कुल ठीक हो गई है। कहती हैं कि बीमारी हो जाए तो उसके लिए रोते न फिरें, लोग बिना जानकारी अजीब-अजीब बातें करके हौसला तोड़ देते हैं। समय से दवा लें, इलाज कराएं, हौसला न टूटने दें।

इन बातों का रखें ध्यान
– रोग जब पता चले तो तुरंत जाकर डॉक्टर को दिखाएं।
– घबराएं नहीं, योग, व्यायाम, ध्यान, पूजा-पाठ करें, जिससे मन शांत रहे।
– घरवालों का सहयोग जरूरी है, घर वाले रोगी को रोगी न समझें।
– रोगी को खूब प्यार दें, जिससे वह अवसाद में न जाने पाए।
– दवाओं में लापरवाही न बरतें, समय से दवाएं लेते रहें।
– सादा, पौष्टिक खाना लें और मस्त रहें।