सोनिया और राहुल गांधी को ईडी ने जिस केस में समन भेजा, वो नेशनल हेराल्ड मामला क्या है

सोनिया गांधी और राहुल गांधी

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प्रवर्तन निदेशालय ने बुधवार को नेशनल हेराल्ड अख़बार से जुड़े एक मनी लॉन्ड्रिंग केस में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी नेता राहुल गांधी को पूछताछ के लिए समन किया है.

सोनिया गांधी को आठ जून को पेश होने को कहा गया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस पार्टी से जुड़ी कंपनी ‘यूथ इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए हाल ही में ये केस दर्ज़ किया गया था.

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ईडी के अधिकारियों ने बताया कि प्रवर्तन निदेशालय प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के संबंधित प्रावधानों के तहत सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बयान दर्ज़ करना चाहता है.

नेशनल हेराल्ड अख़बार का प्रकाशन एसोशिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) करती है जिस पर यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड की मिल्कियत है.

ईडी ने हाल ही में वरिष्ठ कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और पवन बंसल से इसी मामले की जांच के सिलसिले में पूछताछ की थी.

रणदीप सुरजेवाला

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ईडी के समन पर कांग्रेस ने क्या कहा?

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कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा कि उनकी पार्टी इस मामले झुकेगी नहीं.

सुरजेवाला ने कहा, “मुद्दों को भटकाने में माहिर मोदी सरकार ने कायराना साज़िश की है. नेशनल हेराल्ड मामले में प्रधानमंत्री मोदी ने ईडी से समन भेजवाया है. साफ़ है कि तानाशाह डर गया है. साफ़ है कि शासन के सभी मोर्चों पर अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए देश को गुमराह कर रहा है.”

अभिषक मनु सिंघवी ने कहा, “ये इतना ज़्यादा मनगढ़ंत आरोप है कि एक प्रकार से मज़ाकिया है. सत्तारूढ़ पार्टी अपने हर राजनीतिक विरोधियों पर अटैक करती है. यह प्रतिशोध की भावना से किया जा रहा है. 2014-15 से इस मामले में अदालती सुनवाई चल रही है.”

उन्होंने कहा, “अब सात साल बाद इसमें ईडी को लाया गया है. जहाँ कोई पैसा या प्रॉपर्टी का स्थानांतरण का मामला भी नहीं है, उसमें मनी लॉन्ड्रिंग का मामला कैसे आया है? एजेएल को मज़बूत करने के लिए उस पर क़र्ज़ को हटाने के लिए उसे इक्विटी में परिवर्तित किया गया. यह काम बिल्कुल वैध है. इससे जो पैसा आया, उससे कर्मचारियों को भुगतान किया गया.”

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नेशनल हेराल्ड केस

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नेशनल हेराल्ड केस क्या है?

ये मामला नेशनल हेराल्ड अख़बार से जुड़ा है, जिसकी स्थापना 1938 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने की थी. उस समय से यह अख़बार कांग्रेस का मुखपत्र माना जाता रहा था.

अख़बार का मालिकाना हक़ ‘एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड’ यानी ‘एजेएल’ के पास था, जो दो और अख़बार भी छापा करती थी. हिंदी में ‘नवजीवन’ और उर्दू में ‘क़ौमी आवाज़’.

आज़ादी के बाद 1956 में एसोसिएटेड जर्नल को ग़ैर व्यावसायिक कंपनी के रूप में स्थापित किया गया और कंपनी एक्ट धारा 25 के अंतर्गत इसे कर मुक्त भी कर दिया गया.

वर्ष 2008 में ‘एजेएल’ के सभी प्रकाशनों को निलंबित कर दिया गया और कंपनी पर 90 करोड़ रुपये का क़र्ज़ भी चढ़ गया.

फिर कांग्रेस नेतृत्व ने ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ नाम की एक नई ग़ैर व्यावसायिक कंपनी बनाई, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित मोतीलाल वोरा, सुमन दुबे, ऑस्कर फर्नांडिस और सैम पित्रोदा को निदेशक बनाया गया. इस नई कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास 76 प्रतिशत शेयर थे जबकि बाकी के 24 प्रतिशत शेयर अन्य निदेशकों के पास थे.

कांग्रेस पार्टी ने इस कंपनी को 90 करोड़ रुपए बतौर ऋण भी दे दिया. इस कंपनी ने ‘एजेएल’ का अधिग्रहण कर लिया.

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सुब्रमण्यम स्वामी

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सुब्रमण्यम स्वामी के आरोप

भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने वर्ष 2012 में एक याचिका दायर कर कांग्रेस के नेताओं पर ‘धोखाधड़ी’ का आरोप लगाया था. उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ ने सिर्फ़ 50 लाख रुपयों में 90.25 करोड़ रुपये वसूलने का उपाय निकाला जो ‘नियमों के ख़िलाफ़’ है.

याचिका में आरोप लगाया गया कि 50 लाख रुपये में नई कंपनी बनाकर ‘एजेएल’ की 2000 करोड़ रुपये की संपत्ति को ‘अपना बनाने की चाल’ चली गई.

दिल्ली की एक अदालत ने इस मामले में चार गवाहों के बयान दर्ज किए थे. 26 जून, 2014 को अदालत ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित नई कंपनी में निदेशक बनाए गए सैम पित्रोदा, सुमन दुबे, ऑस्कर फर्नांडिस और मोतीलाल वोरा को पेश होने का समन भेजा था.

अदालत ने ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ के सभी निदेशकों को 7 अगस्त, 2014 को अपने सामने पेश होने का निर्देश दिया था.

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सोनिया गांधी

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तब अदालत में दी गई कांग्रेस की दलील

मगर कांग्रेस के नेताओं ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर सुनवाई के बाद निचली अदालत की ओर से जारी समन पर रोक लगा दी गई थी.

कांग्रेस के नेताओं ने अदालत में दलील दी कि ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ नाम की संस्था को ‘सामजिक और दान करम’ के कार्यों के लिए बनाया गया है.

नेताओं की यह भी दलील थी कि ‘एजेएल’ के शेयर स्थानांतरित करने में किसी ‘ग़ैर क़ानूनी’ प्रक्रिया को ‘अंजाम नहीं दिया गया’ बल्कि यह शेयर स्थानांतरित करने की ‘सिर्फ एक वित्तीय प्रक्रिया’ थी.

दिल्ली हाई कोर्ट ने कांग्रेस के नेताओं की ओर से दायर ‘स्टे’ की याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि एक ‘सबसे पुराने राष्ट्रीय दल की साख दांव पर’ लगी है क्योंकि पार्टी के नेताओं के पास ही नई कंपनी के शेयर हैं.

हाई कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत के लिए यह ज़रूरी है कि वो मामले की बारीकी से सुनवाई करे ताकि पता चल पाये कि ‘एजेएल’ को ऋण किन सूरतों में दिया गया और फिर वो नई कंपनी ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ को कैसे ट्रांसफ़र किया गया.