छह महीने पहले नौकरी की तलाश में घूम रहे कानपुर के नौबस्ता रविंद्र नगर निवासी सुरेश मांझी (30) को उसके परिचित मछरिया गुलाबी बिल्डिंग निवासी विजय ने पहले झकरकटी पुल के नीचे बंधक बनाया फिर पीट-पीटकर हाथ-पैर के पंजे तोड़ दिए। आंखों में केमिकल डालकर अंधा कर दिया। शरीर को कई जगह दागा भी। फिर आरोपी ने उसे दिल्ली के एक भिखारी गैंग के लीडर राज को 70 हजार रुपये में बेच दिया। वहां यातनाओं से सुरेश की तबीयत खराब हुई तो गैंग लीडर ने दो महीने पहले उसे आरोपी विजय के हाथों कानपुर भेज दिया। तबसे आरोपी उससे शहर में ही भूखा-प्यासा रखकर भीख मंगवा रहा था। रविवार को किदवईनगर चौराहे पर राहगीर की मदद से सुरेश नौबस्ता स्थित अपने घर पहुंच सका। यहां दोनों भाइयों रमेश और प्रवेश ने उसे गले लगाया।
गुरुवार को क्षेत्रीय पार्षद प्रशांत शुक्ला को घटना की जानकारी हुई तो उन्होंने परिजनों से नौबस्ता थाने में तहरीर दिलाई। इस दौरान हंगामा भी किया। डीसीपी साउथ प्रमोद कुमार ने कहा कि मामले में तीन लोगों पर एफआईआर दर्ज की गई है। जांच के लिए टीम बनाई गई है।
भिखारी गैंग के शिकार सुरेश मांझी ने दर्द की दास्तां बताई
भिखारी गैंग के शिकार नौबस्ता रविंद्रनगर निवासी सुरेश मांझी पर हुए जुल्म और यातनाओं की दास्तां जिसने भी सुनी सन्न रह गया। हर कोई पूछता रहा तुम जिंदा कैसे बचे। सुरेश बस इतना कहा.. मैं बस जीना चाहता था।
मूल रूप से बिहार के रहने वाले सुरेश मांझी के माता पिता निधन हो चुका है। तीन भाइयों में वह सबसे छोटा है। सुरेश ने नौबस्ता पुलिस को बताया कि छह महीने पहले वह छोटी-मोटी की नौकरी के लिए भटक रहा था। तभी मछरिया गुलाबी बिल्डिंग निवासी विजय ने उसे नौकरी लगवाने का झांसा दिया।
झकरकटी पुल के नीचे उसे बंधक बना लिया। पीट-पीटकर हाथ पैर तोड़ दिए। वह रोज आंखों में केमिकल डालता रहा। तीन दिनों तक वहां पर रखकर यातनाएं दीं। उसके बाद मछरिया में एक मकान में 12 दिनों तक रखा। तबतक वह अंधा हो चुका था। सुनाई भी कम देने लगा था। विजय ने चापड़ से मुंह पर वार किए थे जिससे वह और वीभत्स लगे।
फिर ट्रेन से उसको लेकर दिल्ली और फिर वहां से हरियाणा बॉर्डर ले जाया गया। दिल्ली के भिखारी गैंग को उसने बेच दिया। तीन माह से ज्यादा समय तक उससे भीख मंगाई गई। जहरीले इंजेक्शन के कारण उसकी तबीयत खराब हुई तो विजय उसे कानपुर ले आया। अफीम कोठी, घंटाघर समेत अन्य जगहों पर वह उससे भीख मंगवाता रहा।
सुरेश ने बताया कि दो महीने से वह कानपुर में था इसके बारे में उसको नहीं पता था। विजय उसे रोज चौराहे पर खड़ा कर देता था शाम तक जो पैसा होते थे वह लेकर चला जाता था।
खाने को भी नहीं देता था। कुछ समय पहले उसने टेंपो वाले के मुंह से किदवईनगर सुना। तब उसको एहसास हुआ कि वह कानपुर में है। इसलिए उसने मदद मांगी। आखिर में वह घर पहुंच गया।