हर माता पिता का सपना होता है की उनका बच्चा अच्छी शिक्षा ग्रहण करके बड़ा अफसर बने या किसी बड़ी कंपनी में नौकरी करें। परन्तु कुछ बच्चो का पढ़ने लिखने में मन ही नहीं लगता है। यह देखकर बच्चे माता-पिता बच्चे को बड़ी मुश्किल से जोर देकर बढ़ाते हैं।
बड़ी मशक्कत के बाद ऐसे बच्चे 10वी और 12वी पास तो कर लेते हैं, परन्तु बाद में कुछ कर नहीं पाते हैं। ऐसे में वे घर में ही पड़े रहते है। कुछ का मन घर में नहीं लगता है, तो दोस्तों के साथ बहार घूमते और मस्ती करते है।
पेरेंट्स ऐसे बच्चे को निक्कमे मानने लगते हैं। परिवार वाले भी ऐसे बच्चो के बारे में यही सोचते है, की अब वह जीवन में कभी कुछ नही कर पायेगा। यहाँ आपको एक ऐसे ही लड़के के बारे में बताने वाले है, जिसका पढ़ी लिखे में मन नहीं लगता था। उससे माता-पिता को उससे कोई उम्मीद नही थी। ऐसे में पैसे कमाने के लिए उसे रिक्शा (Rickshaw) चलाना पड़ा। फिर उसने कुछ ऐसा किया कि आज करोड़ो का मालिक बन गया।
इस कामयाब शख्स का नाम अरुण सुभाष पाडुले (Arun Shubash Padule) है। यह महाराष्ट्र के पुणे (Pune) के चिखली के रहने वाले हैं। शुरू से ही अरुण पढाई में बहोत कमज़ोर रहे। वे पढ़ने में इतने पीछे रहे की उन्हें 6वी क्लास तक ABCD भी नहीं आती थी।
घर अच्छे से नहीं चल पा रहा था
अरुण के पिता रिक्शा चलाते थे, लेकिन काम से घर अच्छे से नहीं चल पा रहा था। ऐसे में किसी ने एक सब्जी बेचने की की राये दी। उन्होंने चिखली (Chikhli) के कस्तूरी बाजार में सब्जियां बेचना शुरू कर दिया। बेटा अरुण भी अपनी मां के साथ ठेले पर सब्जी बेचने लगा।
स्कूल से घर आकर वह सब्जी बेचता था। उसे इस काम से शर्म भी आती थी, क्योंकि स्कूल के दूसरे बच्चे उसे आते जाते हुए सब्ज़ी बेचते देखते थे। अरुण के घर की माली हालत का अंदाजा अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके पिता ने उसके लिए दिवाली के दिन कपड़े खरीदे, लेकिन उन्होंने उसे अपने जूते दिए थे, क्योंकि उनके पास जूते खरीदने के लिए पैसे ही नहीं थे।
10th क्लास में अच्छा स्कोर किया
शुरू में वे जिला परिषद स्कूल में पढ़े, जहाँ शिक्षक कम ही स्कूल आते थे। अच्छी शिक्षा देने के मकसद से मां ने उन्हें एक अच्छे स्कूल में भेज दिया। उनकी पढ़ाई में सातवीं क्लास से कुछ अच्छी शुरू हुई। 10th क्लास में वह स्कूल में तीसरे स्थान पर आये। तब माता पिता को लगा कि उनका बेटा टैलेंटेड है और एक दिन पढ़ लिखकर कुछ बन जायेगा।
फिर 11th क्लास में उन्हें वाडिया नामक एक फेमस कॉलेज में दाखिला मिल गया। वहा पर सभी अमीरों के बच्चे पढ़ते थे। ऐसे में एक रिक्शा चलने वाले का बेटा अरुण सामान्य कपड़े और चप्पल पहन कर जाता। वहां बच्चे अंग्रेजी भी बोलते थे और अरुण अंग्रेजी में कमजोर था। वह अपने पिता से किताबों के लिए पैसे मांगने के लिए बहुत सोचता था। उसे पता था की आर्थित हालत ठीक नहीं है।
अरुण ने अपने पिता का रिक्शा चलाया
फिर Arun Shubash Padule 11th में 53 प्रतिशत के साथ ही पास हो पाए। उसकी माँ ने उसे बारहवीं कक्षा में अच्छी शिक्षा देने के लिए बड़ी मुश्किल से पैसे जमा कर ट्यूशन लगाई। जब वह 12वी में थे तब एक दिन पिता बाहर गए थे। तब अरुण अपने पिता के रिक्शा को चलाने लगा और वह लोगों को रिक्शा में छोड़ने लगा।
उसने दिनभर रिक्शा चलाया और पुरे दिन में उसने 700-800 रुपये कमा लिए। उनके पिता के कई दोस्तों ने उन्हें देखा। अगले दिन पिता घर वापस आए, तो उनको इस बात की खबर लगी। जब पिता घर पर अरुण के पास आए, तो उन्होंने अपने पिता को 800 रुपये दिए और कहा, ‘मैंने कल इतना व्यवसाय किया’ उस वक्तसमय पापा भावुक हो गए थे।
वे पढ़ाई में आगे कुछ नहीं कर कर सकते थे
अरुण ने विचार किया की अगर कुछ नहीं हुआ, तो वे यह काम भी कर सकते हैं। जीवन इससे चल ही जायेगा। कुछ समय में उनकी 12वी 50-55 प्रतिशत अंकों के साथ हो गई। पिता को लगा कि बेटा पढ़ाई में आगे कुछ नहीं कर सकता। फिर अरुण 200 रुपये की रोज की नौकरी करने अपने दोस्तों के साथ काम पर जाने लगा। अरुण पिता की टेंपो भी रात में चलाता था।
फिर उन्हें उस जगह पर मीटर बदलने का ठेका मिल गया। यहाँ से अच्छा पैसा आना शुरू हुआ। उसने अपना पहला टेम्पो और फिर दूसरा नया टेम्पो (Tempo Rickshaw) लिया। वह एक कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने लगा। उसने अपने पिता से कहा कि वह शिक्षा के क्षेत्र में कुछ नहीं कर पायेगा।
टेंपो चलाने का काम फिर शुरू किया
मीटर का काम खत्म होने के कुछ महीने बाद फिर से अपना टेंपो चलाने का काम शुरू कर दिया। खली वक़्त में वे टैंपो वाली कंपनी में जाकर बैठते और देखते कि काम कैसे होता है। उस कंपनी में टैंपो और रिक्शा की सीट बनाई जाती थी।
घाटे में चल रहे कंपनी को खरीद लिया
उस कंपनी का मालिक यह कहते हुए पेमेंट नहीं कर रहा था कि वह घाटे में चल रहा है। ऐसे में उस मालिक ने अपनी कंपनी बेच दी। अरुण ने खुद घाटे में चल रहे कंपनी मालिक से पूछा “मेरे पास 4-5 लाख हैं और क्या मैं बाकी किश्तों में चुकाता दूंगा।” वह मालिक राज़ी हो गया और अरुण ने वही कंपनी खरीद ली। वह तो एक टेंपो ड्राइवर ही था। उनका बड़ा भाई भी रिक्शा चलता था। ऐसे में परिवार को अरुण से ज्यादा उम्मीद नहीं थी।
परन्तु उसने पहले ही सारा काम देखकर सीखा था। उसे पता था की पहले वाले मालिक ने कहा गलती की थी। उसने वह गलती नहीं की और कंपनी अच्छी चली और पहले साल में 20,000 रुपये से 5 लाख रुपये तक पहुंच गई। उसने अपने पिता को कुछ नहीं बताया। पैसा अच्छा आने के चलते वह कपडे भी अच्छे पहन रहे थे, उनका रहन सहन भी अच्छा हो रहा था।
तत्काल पिता का पूरा क़र्ज़ चुका दिया
इस वजह से पिता को लगता की यह टेम्पो चलाकर अपने शौक पूरे करने के लिए फुजूल खर्चे कर रहा है। दूसरे दिन अरुण अपने पिता के साथ बैठे और उनसे पूछा की आपका कहा और कितना कर्ज या उधार बाज़ी है पापा। वह कर्ज़ा 7-8 लाख रुपये से करीब था।
फिर अरुण अपनी नई फोर व्हीलर गाडी में अपने पिता के साथ सभी बैंक गया और सारा कर्ज़ा चूका दिया। उसने एक दिन में 8 लाख रुपये की पेमेंट कर दी। पिता हैरान रह गए। फिर एक होटल में डिनर किया और वह अपने पिता को कार में बिठाकर अपनी कंपनी में ले गया।
पिता को तो यकीन ही नहीं हुआ
उसने पिता से कहा कि मैंने यह कंपनी खड़ी की है और यहीं से मैंने सब पैसा कमाया है। पिता को तो यकीन ही नहीं हुआ, उन्हें लगा की बेटा मज़ाक कर रहा है। जब सारे पेपर और कंपनी डाक्यूमेंट्स दिखाए, तो पिता की आंखों में पानी आ गया। वे तो ख़ुशी के आंसू थे।
अरुण ने अपने पिता के हाथों से अपनी नई कार की पूजा करवाई। जिस सड़क पर अरुण और उनके पिता ने रिक्शा चलाया था, अब वे उसी सड़क पर लाखों रुपयों की महंगी कार पर सवार थे। पिता के लिए यह सब सपना जैसा था। यह किस्सा अच्छे बिज़नेस आईडिया और कड़ी मेहनत का सच्चा उदाहरण है।