एफपीआई ने 2022 में बाजार से करीब डेढ़ लाख करोड़ निकाले थे.
नई दिल्ली. भारतीय शेयर बाजार में पैसे लगाने वाले निवेशकों के लिए अच्छी खबर है. अक्टूबर में बंपर बिकवाली करने वाले विदेशी निवेशकों (FPIs) का भरोसा फिर बाजार पर लौट रहा है. नवंबर के पहले सप्ताह में ही विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 15,280 रुपये भारतीय बाजार में लगाए हैं. इससे आने वाले सप्ताह में शेयर बाजार में तेजी की उम्मीद भी जताई जा रही है.
दरअसल, अमेरिका में फेड रिजर्व के ब्याज दरें बढ़ाने की आशंका के चलते विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में पैसे लगाए हैं. कोटक सिक्योरिटीज के इक्विटी रिसर्च हेड श्रीकांत चौहान का कहना है कि विदेशी निवेशकों को भू-राजनैतिक तनाव और मॉनिटरी पॉलिसी की सख्त नीतियों के कारण आगे भी बाजार में अनिश्चितता का माहौल रहने की आशंका है. अमेरिका में अभी महंगाई 40 साल के शीर्ष पर है, जबकि रोजगार की स्थिति भी कमजोर है. ऐसे में भारतीय बाजार में पैसे लगाना ज्यादा सुरक्षित लग रहा है.
पांच दिन में 15 हजार करोड़ का निवेश
एनएसई से मिले आंकड़ों के अनुसार, विदेशी निवेशकों ने नवंबर के शुरुआती पांच दिन 1 से 4 नवंबर तक ही बाजार में 15,280 करोड़ रुपये लगाए हैं. अगर इससे पहले महीने की बात करें तो अक्टूबर में विदेशी निवेशकों ने बाजार से 8 करोड़ रुपये निकाले थे, जबकि सितंबर में 7,624 करोड़ रुपये निकासी की थी. हालांकि, इस निकासी से पहले अगस्त में विदेशी निवेशकों ने शुद्ध रूप से निवेश किया था और बाजार में कुल 51,200 करोड़ रुपये लगाए थे. इससे पहले जुलाई में भी 5 हजार करोड़ का निवेश किया था.
नौ महीने तक लगातार निकासी
विदेशी निवेशकों ने साल 2021 के आखिर से 2022 के मध्य तक लगातार नौ महीने तक भारतीय बाजार से पूंजी निकाली थी. यह सिलसिला अक्टूबर, 2021 में शुरू हुआ था और इन नौ महीनों के दौरान कुल 1.53 लाख करोड़ रुपये की पूंजी बाजार से निकाल ली थी. अक्टूबर में भी एफपीआई ने बिकवाली शुरू की थी, जो बाद में धीमी पड़ी और महीने के आखिर तक सिर्फ 8 करोड़ की पूंजी ही बाजार से निकाली.
भारतीय इकोनॉमी पर बड़ा भरोसा
जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वीके विजयकुमार ने कहा कि अमेरिकी बॉन्ड यील्ड बढ़ने और डॉलर में मजबूती के बावजूद विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार में निवेश करना ज्यादा महत्वपूर्ण है. इसका मतलब है कि विदेशी निवेशकों का भारतीय इकोनॉमी पर भरोसा बढ़ रहा है. इसकी वजह ये है कि इस समय ग्लोबल इकोनॉमी पर महंदी का खतरा मंडरा रहा है, जबकि भारत पर इसका असर कम होने का अनुमान है.