लंबा सफर तय कर भारत पहुंचे थे ‘पटाखे’, शैतान भगाने के लिए होता था इस्तेमाल, फिर बना अमीरों का शौक

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भले ही हर दिवाली पर पटाखों को लेकर बहस छिड़ती हो लेकिन ये भी सच है कि आज भी हमारे देश में अधिकतर लोगों के लिए पटाखों के बिना दिवाली अधूरी है. ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ये पटाखे कहां से आए होंगे? किसने इसे बनाया होगा? भला किस देश की खोज हैं ये पटाखे? अगर आप भी ऐसे सवाल सोचते हैं तो आज इस लेख में आपको सभी सवालों के जवाब मिलेंगे.

चीन में जन्म हुआ बारूद का

Fire Crackers History Twitter

इतिहासकारों की मानें तो दुनिया की पटाखों से पहचान कराने वाला देश चीन था. बताया जाता है कि छठी से नौवीं शताब्दी के बीच टांग वंश के समय चीन में ही बारूद की खोज हुई. इससे अनुमान लगाया जाता है कि पटाखे यानी आतिशबाजी की खोज चीन में ही हुई थी.

वहीं बने पटाखे

Fire Crackers History Twitter/ Exploding Bamboo

कहा जाता है कि पटाखों से पहले भी लोगों को पटाखों का शौक था, जिसे वे प्राकृतिक रूप से पूरा करते थे. तब चीन के लोग बांस में आग लगाते और इसमें मौजूद एयर पॉकेट्स फूटने लगते. इससे आवाज आती और इस तरफ पटाखों का शौक बिना पटाखों के पूरा हो जाता. चीनी के लोग ऐसा एक मान्यता के तहत करते थे. जिसके अनुसार कहा जाता था कि बांस में आग लगाने से बुरी शक्तियों का नाश होता है.

समय बीतने के साथ चीन में पहली बार बारूद में पोटेशियम नाइट्रेट, सल्फर और चारकोल मिलाकर इसे बांस के खोल में भरकर जब जलाया गया. जिससे विस्फोट पहले से बड़ा था. ऐसे पहला पटाखा बना और बाद में बांस की जगह कागज कागज का इस्तेमाल किया जाने लगा.

मुगल इसे भारत लाए

Green crackers IQAIR

बात करें बारूद और पटाखों की भारत में प्रवेश की तो ये मुगल अपने साथ लेकर आए थे. कहा जाता है कि पानीपत की पहली लड़ाई उन पहली लड़ाइयों में से एक थी जहां बारूद, आग्नेयास्त्र और तोप का इस्तेमाल हुआ. यही वजह थी कि बाबर के तोपखाने के आगे इब्राहिम लोधी की सेना को घुटने टेकने पड़े.

इस तरह 1526 के बाद भारत में बारूद का प्रवेश हुआ, जिसके बाद आतिशबाजी का चलन शुरू हुआ. कहा जाता है कि शादी समारोह और उत्सवों में आतिशबाजी करने का चलन अकबर के समय शुरू हुआ था. बताया जाता है कि बारूद महंगा होने के कारण आतिशबाजियां केवल  राजसी घरानों और अमीर लोगों के यहां होती थीं. कलाकार आतिशबाजी से तरह-तरह के करतब दिखाते थे.

ऐसे पड़ा पटाखा नाम

UP Village Fire CrackersZee

बारूद से बने इन धमाका करने वाली आतिशबाजी का नाम पटाखा इसलिए पड़ा क्योंकि पहले इनके कर फोड़ा जाता था. बताया जाता है कि 19वीं सदी में एक मिट्टी की छोटी मटकी में बारुद भरकर पटाखा बनाने का चलन था. इसे जमीन पर पटक कर फोड़ा जाता था, जिससे रोशनी और आवाज होती. अनुमान है कि इसी ‘पटकने’ के कारण इसका नाम ‘पटाखा’ पड़ा होगा. इसके अन्य नाम ‘भक्तापू’ या ‘बंगाल लाइट्स’ भी थे.

आज भारत में तमिलनाडु के शिवकाशी को पटाखों का सबसे बड़ा केंद्र है. हालांकि इससे पहले अंग्रेजी हुकूमत के दौरान कलकत्ता में सबसे पहले माडर्न पटाखे बनाए जाते थे.