रतलाम में थाई अमरूद उगाने वाले किसान की पलटी किस्मत, अमेरिका में बेचकर डॉलर में कर रहे कमाई, जानिए डिटेल्स

थाई अमरूद की वजह से टीटरी गांव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने लगी है. टीटरी गांव अपने अंगूर, स्ट्रॉबेरी, सेब और टमाटर आदि के लिए मशहूर है.

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पिछले 5 साल से टीटरी गांव थाई अमरूद के लिए फेमस हो रहा है

नई दिल्ली: मध्यप्रदेश के रतलाम का टीटरी गांव आजकल थाई अमरूद के लिए काफी चर्चा में बना हुआ है. पिछले करीब 5 साल से इस गांव के 80 किसान थाई अमरूद की खेती में अपना हाथ आजमा रहे हैं और डॉलर में कमाई कर रहे हैं. थाई अमरूद की वजह से टीटरी गांव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने लगी है. टीटरी गांव अपने अंगूर, स्ट्रॉबेरी, सेब और टमाटर आदि के लिए मशहूर है. टीटरी के किसान अपने प्रयोग से देश-दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचते रहते हैं.

पिछले 5 साल से टीटरी गांव थाई अमरूद के लिए फेमस हो रहा है. मालवा और पेरु में इसे जामफल कहा जाता है जबकि दूसरे राज्यों में अमरूद के नाम से जाना जाता है. टीटरी के किसान प्रमोद पाटीदार ने कहा कि थाई अमरुद की 3 वैरायटी है इसमें पिंक ताइवान, रेड डायमंड और सफेदा आते हैं.

सफेदा सबसे अधिक बिकने वाला थाई अमरूद है जो शुगर फ्री है. इसके साथ ही पिंक ताइवान और रेड डायमंड अंदर से लाल होते हैं और काफी मीठे होते हैं. सफेदा अमरूद 15 दिनों तक आराम से रखा जा सकता है जबकि रेड डायमंड और पिंक ताइवान 5-6 दिन तक खराब नहीं होते.

टीटरी गांव में करीब 4000 बीघा खेत में थाई अमरूद की खेती हो रही है. किसानों को थाई अमरूद की खेती से ₹3,00,000 प्रति बीघा तक की कमाई हो रही है. रतलाम के किसानों की सफलता की कहानी को देखते हुए अब झाबुआ और धार जिले में भी थाई अमरूद की खेती होने लगी है.

रतलाम का टीटरी गांव अपने अनोखे प्रयोग के लिए कई सालों से सुर्खियों में बना रहता है. किसानों का कहना है कि वह बेस्ट क्वालिटी के प्रोडक्ट उगाकर देश-विदेश तक गांव का नाम रोशन करना चाहते हैं.

कुछ साल पहले फ्रूट एक्सपोर्टर की एक टीम गांव में आई थी, वह थाई अमरूद का सैंपल लेकर गई. थाई अमरूद की गुणवत्ता जांचने के बाद किसानों की उपज उनके मानदंड पर खरी उतरी और किसानों को निर्यात के आर्डर मिलने लगे. इस समय रतलाम के टीटरी गांव से 3 टन तक थाई अमरुद अमेरिका और नेपाल जैसे कई देशों में निर्यात किया जा रहा है.