कई घंटे चली किसान और सरकार के बीच बातचीत बेनतीजा रही। किसान तीनों कृषि बिल रद्द करवाने की अपनी मांग पर अड़े है। वह सरकार से हां या न मे जवाब चाहते है। सरकार इन्ही बिलों मे संशोधन कर रास्ता ढूंढने की बात कर रही है। बातचीत के दौरान भी किसान नेताओं ने मौन व्रत रख कर आदोलन जारी रखा। किसान नेताओं ने सरकार से अपनी नाराजगी प्रकट करते हुए सरकारी भोजन खाने से भी इनंकार कर दिया था। वह अपने साथ अपना खाना लेकर आए थे। बातचीत का अभी तक कोई हल नहीं निकला यह चिंताजनक है। परन्तु इस आन्दोलन की एक अच्छी बात है कि पिछले दस दिन से चल रहा आन्दोलन पुरी तरह शान्तिपुर्ण है। किसान बातचीत के समय भी दबाव बनाने के लिए गांधीवादी तरीके अपना रहे है, परन्तु वह अपने इरादों को लेकर दृढ़ निश्चयी है। कृषि मंत्री की इस अपील को भी उन्होंने विनम्रता से मानने से इनकार कर दिया, जिसमे कृषि मंत्री जी उन्हे महिलाओं, बच्चों और बजुर्गो को वापस घर भेजने लिए कहा था।
इस कड़क सर्दी और कोरोना महामारी मे इस आन्दोलन को और अधिक चलाना अच्छा नहीं है। इसका शीघ्र अति शीघ्र हल निकलना चाहिए। यह पहला ऐसा किसान धरना है जिसमे महिलाएं और बच्चे भी भाग ले रहे है। महिला किसान नेता तो नेतृत्व मे अग्रणी भूमिका भी अदा कर रही है। यह भी अच्छा है कि अभी तक राजनैतिक पार्टीयों को आन्दोलन से लगभग दूर रखा गया है और शरारती तत्व जो इस आन्दोलन को हिंसक बना सकते है, वह भी अभी तक दूर है। ऐसे आन्दोलनों को शरारती तत्वों से बचाने के लिए अति सावधानी की जरूरत रहती है, परन्तु एक बार फिर मै अपनी बात को दोहराना चाहता हूँ कि कोई भी पक्ष किसी भी बात को लेकर प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाये। यह दोनों पक्षो के लिए जरूरी है कि बातचीत मे सकारात्मक रूख रखा जाए। सरकार जिस प्रकार अपना रूख नरम कर रही है किसान नेताओं को भी इस नरमी का सकारात्मक रूख से जबाब देना चाहिए। वह अपनी समस्याओं का हल जरूर ढूंढे, परन्तु प्रतिष्ठा किसी बात को न बनाए।