भारत की धरती पर कई वीर यौद्धाओं ने जन्म लिया है. मेवाड़ की धरती पर ऐसे ही एक शूरवीर ने 9 मई 1540 को जन्म लिया था. नाम था महाराणा प्रताप। (Maharana Pratap Jayanti 2020). महाराणा प्रताप के शौर्य से जुड़े कई किस्से हैं, जिनमें से एक है हल्दीघाटी का युद्ध। इतिहासकरों से लेकर किताबों तक में पढ़ा गया है कि ये युद्ध मुग़लों ने जीता था. लेकिन, एक लेखक ऐसा भी है जिसने ये दावा किया था कि ये युद्ध मुगलों ने नहीं बल्कि महाराणा प्रताप ने जीता था (Battle of Haldighati).
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डॉक्टर चंद्रशेखर शर्मा: वो इतिहासकार जिसने कहा कि हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप ने जीता था
Chandrashekhar Sharma
‘राष्ट्र रतन महाराणा प्रताप’ किताब के लेखक डॉ. चन्द्रशेखर शर्मा, जो उदयपुर के सरकारी महाविद्यालय ‘मीरा कन्या महाविद्यालय’ के छात्रों को पढ़ाते हैं और उन्होंने से शहर के जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय से अपनी पीएचडी के लिए इस किताब पर काम किया है. इस रिसर्च के दौरान उन्होंने जो भी तथ्य हासिल किये, वो सब इस किताब में लिखे.
डॉक्टर चंद्रशेखर की रिसर्च में ऐसा क्या था जिसकी वजह से उन्होंने प्रताप को हल्दीघाटी का विजेता माना:
1. उद्देश्य के आधार पर’
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शर्मा का दावा हैं कि प्रताप ने अकबर को हराया था. प्रताप का मुख्य उद्देश्य अपनी जन्म भूमि की रक्षा करना था. अगर अकबर ने युद्ध में विजय प्राप्त की होती तो वो प्रताप को गिरफ़्तार करता और मौत की सज़ा देकर उसके राज्य पर कब्ज़ा कर लेता. – इस बात के सबूत है कि अकबर अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया था. हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर सेनापति मान सिंह व आसिफ खां से हार को लेकर नाराज था और इसी कारण इस दोनों को छह महीने तक दरबार में न आने की सजा दी थी. – अगर मुगल सेना जीतती, तो अकबर अपने सबसे बड़े विरोधी प्रताप को हराने वालों को पुरस्कृत करते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इससे ये बात साफ़ होती है कि महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध को जीता था.
2. प्रताप ने हल्दीघाटी के आस-पास के गांवों की जमीनों के पट्टे ताम्र पत्र के रूप में जारी किए थे
Chandarshekhar
डॉ. शर्मा ने अपने शोध में प्रताप की विजय को दर्शाते ताम्र पत्रों से जुडे़ प्रमाण जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में जमा कराए गए हैं. – शर्मा कहते हैं कि उनके अनुसार युद्ध के बाद अगले एक साल तक महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के आस-पास के गांवों की जमीनों के पट्टे ताम्र पत्र के रूप में जारी किए थे. इन पर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर थे. उस समय जमीनों के पट्टे जारी करने का अधिकार सिर्फ राजा को ही होता था. अगर प्रताप की जीत न हुई होती, तो वो उन ताम्र पत्रों पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते थे. शर्मा ने इन ताम्र पत्रों को तत्कालीन महान राजपूत परिवारों और गांवों के किसानों से इकठ्ठा कर अपनी किताब में भी छापा है. – इसके साथ ही उन्होंने ये निष्कर्ष निकाला कि हल्दी घाटी के युद्ध के बाद ही प्रताप की प्रशासनिक व्यवस्था के साथ कोई भी छेड़छाड़ नहीं की गई थी. वो कहते हैं कि भीलवाड़ा मैदानी इलाकों के साथ-साथ मेवाड़ के महत्वपूर्ण पहाड़ी क्षेत्रों पर प्रताप के प्रभावी नियंत्रण के निशान आज भी मौजूद हैं. – 1834 में जिस ज़मीन पर महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की समाधी का नवीनीकरण किया गया था, वास्तव में वो ज़मीन समाधि बनाने के लिए 1576 में हुए हल्दीघाटी के युद्ध के बाद प्रताप द्वारा ही आवंटित की गई थी. – इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भी मेवाड़ और उसके आसपास के इलाकों पर महाराणा प्रताप का ही नियंत्रण था.
3. प्रताप ने गुरिल्ला युद्ध भी लड़ा था
महाराणा प्रताप पहले ऐसे भारतीय राजा थे, जिन्होंने गुरिल्ला युद्ध भी लड़ा था और बहुत व्यवस्थित तरीके से इस युक्ति का उपयोग किया. जिसका परिणाम यह हुआ था कि मुगल घुटने टेकने पर मजबूर हो गए थे. – एक ऐसा भी समय था, जब लगभग पूरा राजस्थान मुगल बादशाह अकबर के कब्जे में था, लेकिन महाराणा अपना मेवाड़ बचाने के लिए अकबर से 12 साल तक लड़ते रहे. अकबर ने उन्हें हराने के लिए हर हथकंडा अपनाया, लेकिन महाराणा आखिर तक अविजित ही रहे. – इसके साथ ही शर्मा कहते हैं कि युद्ध की ये तकनीक न ही प्रदेश शासित है और न ही समयबद्ध है. – शर्मा कहते हैं कि लोगों का मानना है कि यह युद्ध केवल चार घंटे ही चला था, लेकिन यह सत्य नहीं है. जबकि यह लड़ाई सूर्योदय से सूर्यास्त तक चली थी. इसको तो पुरातात्विक सबूत के अलावा भारतीय और फारसी मूल के साहित्यिक कृतियों में भी उद्धृत किया गया है.