राजा मानसिंह का रहस्यमयी खजाना जिसे खोजने के लिए भारत सरकार ने सेना बुलाई, पाकिस्तान ने भी मांगा था हिस्सा

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प्राचीनकाल में भारत को यू हीं सोने की चिड़िया नहीं कहा जाता था. भारत के कई राजा-महाराजों के पास अकूत संपत्ति थी. मध्य काल के दौरान कई राजा-महाराजाओं ने दूसरे राज्यों से लूटे माल-ए-गनीमत को छिपा कर रखा. उनमें से कुछ खजाने ऐसे हैं जिनके बारे में आज भी किसी को नहीं पता भी आज भी रहस्य बनकर रह गए हैं.

उन्हीं में से एक राजा मान सिंह का जयगढ़ किले में छिपे रहस्यमयी खजाने की कहानी लेकर आया है. इस खजाने को ढंढने के लिए भारत सरकार ने सेना तक बुला ली थी. 

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अकबर के नौरत्नों में खास थे राजा मानसिंह

राजा मान सिंह बादशाह अकबर के मजबूत सेनापति थे. मानसिंह की युद्ध कुशलता और बुद्धिमत्ता की वजह से अकबर के नौरत्नों में से एक वे खास थे. अकबर उन्हें प्यार से ‘राजा मिर्जा’ कहकर पुकारते थे. उन्होंने मुगल साम्राज्य को कई ऐतिहासिक युद्ध में जीत दिलाई थी.

साल 1540 में एक राजपरिवार में जन्में राजा मानसिंह ने अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हुए हल्दीघाटी युद्ध में भी अहम भूमिका निभाई थी. मानसिंह के पिता राजा भगवानदास ने भी अकबर के लिए कई युद्ध लड़े. गुजरात युद्ध में उनकी अहम भूमिका रही.

कई रियासतों पर कब्ज़ा करने में उनके अहम योगदान को देखते हुए अकबर ने उन्हें भारत के बिहार, बंगाल और उड़ीसा की सत्ता सौंप दी. उस दौरान राजा मानसिंह ने कई रियासतों पर हमले बोले. उनके माल-गनीमत को अपने नाम किया. उन्होंने अपने साहस और कुशलता से अकूत संपत्ति जमा कर ली थी.

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अफगानिस्तान में लूटा बड़ा खजाना

काबुल में सरदार लुटेरों का ख़ौफ था. आम जनता की रक्षा के लिए अकबर ने अपने कुशल सेनापति राजा मानसिंह को काबुल भेजा. राजा मानसिंह ने मुगल सेना की एक टुकड़ी लेकर लुटेरे सरदारों का न सिर्फ़ डटकर मुकाबला किया, बल्कि उन्हें खदेड़ने में भी फ़तेह हासिल की. इन्हीं लुटेरों में से एक युसुफजई कबीला भी था, जिसके खिलाफ युद्ध के दौरान अकबर के प्रिय बीरबल की मौत हो गई थी. राजा मानसिंह ने कबीले के सरदार को मारकर राजा बीरबल की मौत का बदला लिया था.

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इतिहासकारों के मुताबिक, राजा मानसिंह ने अफगानिस्तान के इन लुटेरे सरदारों से काफी खजाना लूटा था. इसमें कई टन सोना, हीरे-जवाहरात शामिल थे. उसे उन्होंने अकबर से छुपाकर जयगढ़ किले में छिपा दिया.

जब इंदिरा गांधी सरकार को लगी इस खजाने की भनक

अरबी भाषा में लिखी पुस्तक “हफ्त तिलिस्मत-ए-अंमेरी” अर्थात आमेर में छुपे सात खजाने, में अफगानिस्तान और भारत के अलग-अलग रियासतों से लूटे खजाने के बारे जिक्र किया गया है. इसमें राजा मानसिंह के जयगढ़ किले में छिपे खजाने के बारे में भी खुलासा करते हुए लिखा गया है कि राजा मानसिंह द्वारा जयपुर स्थित आमेर किले में इतना खजाना छिपाया गया है, जिससे कई रियासतें हजारों साल तक अपना पेट पाल सकती थीं.

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उस पुस्तक के अनुसार, जयगढ़ किले के नीचे पानी की सात विशालकाय टंकियां बनी हुई हैं जिसमें 6 मिलियन गैलन पानी संग्रहित करने की क्षमता है. राजा मानसिंह ने खजाना यहीं छिपाया था.

कभी जयपुर राजघराने की संपति रहे जयगढ़ किले को राजा जयसिंह द्वितीय ने 1726 में बनवाया था. अरावली पर्वतमाला की चोटियों पर मोटी लाल पत्थर की दीवारों को दुश्मनों के लिए भेदना बहुत ही मुश्किल था.

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इसी किले में दुनिया की अब तक की सबसे बड़ी पहिये वाली तोप भी है. इस तोप को किले में ही तैयार किया गया था. लेकिन दिलचस्प है कि इस तोप का इस्तेमाल कभी भी किसी युद्ध के दौरान नहीं किया गया.

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जयगढ़ किले में छिपे खजाने के बारे में किसी ने ध्यान नहीं दिया. अफवाहें जब तब आती रहीं और जाती रहीं, लेकिन इस बड़े खजाने का रहस्य आखिर कब तक छिपा रहता. फिर इसकी चर्चा आजाद भारत में पहली बार साल 1976 में तब हुई जब इंदिरा गांधी सरकार को इसकी भनक लगी.

महारानी गायत्री देवी और इंदिरा गांधी की अनबन

यह वह समय था जब जयपुर राजघराने की महारानी गायत्री देवी अपनी विरासत संभाल रही थीं. वो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मुखालिफत करने वालों में से एक थीं. गायत्री देवी ने स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवारों को तीन बार हराया था. दोनों के बीच कई वर्षों से अनबन चल रही थी.

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1975 में इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी. सरकार ने इस दौरान अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने की कोशिश की. कई दिग्गजों को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया. महारानी गायत्री देवी भी उन्हीं में से एक थीं.

महारानी गायत्री देवी पर विदेशी मुद्रा कानून उल्लंघन का आरोप लगाया गया. इस आरोप के बाद इंदिरा गांधी सरकार के आदेश पर जयगढ़ किले में आयकर अधिकारियों द्वारा छापा मारा गया. उस दौरान पुलिस बल के साथ सेना की भी मदद ली गई. 

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तीन महीने चली मानसिंह के खजाने की खोज

साल 1976 में सरकार की इस कार्रवाई में सेना की एक टुकड़ी की भी मदद ली गई. उस समय सेना ने मानसिंह के रहस्यमयी खजाने को ढूंढने के लिए तीन महीने तक जयगढ़ किले और उसके आस-पास खोजी अभियान चलाया. हालांकि, महारानी गायत्री देवी यह दावा करती रहीं कि किले में कोई संपत्ति नहीं है. खुदाई के दौरान किले को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया गया.

गौरतलब है कि इस किले में राजा मानसिंह के द्वारा 1592 में बनवाई गई सुरंग का दूसरा हिस्सा आमेर किला में खुलता था. दोनों किलों के बीच इस संबंध के मद्देनजर सरकार ने जयगढ़ किले के साथ-साथ इस सुरंग में भी खजाने की तलाशी कराई गई.

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अंत में इंदिरा गांधी सरकार ने जयगढ़ किले में किसी तरह का कोई खजाना मिलने से इंकार कर दिया.

शक के घेरे में रही भारत सरकार, उठता रहा सवाल

इंदिरा गांधी सरकार ने भले ही खजाना ना मिलने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया हो, लेकिन उस समय कुछ ऐसी चीजें घटित हुईं, जो सरकार को शक के घेरे में खड़ा करती हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिस दिन आयकर विभाग और सेना के संयुक्त किले की खुदाई का काम बंद करने की घोषणा की गई. उसके ठीक एक दिन बाद बिना कोई कारण बताए दिल्ली-जयपुर हाईवे को आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया.

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कहा जाता है कि सरकार को किले में राजा मानसिंह का वो विशाल खजाना मिला और इसे ही ट्रक में भरकर दिल्ली लाया गया. सरकार इसको छिपाना चाहती थी. इसलिए उस दिन वह सड़क मार्ग बंद करवा दिया गया. लोगों का शक तब और बढ़ गया जब सेना के शीर्ष अधिकारी जयगढ़ किले में निरीक्षण के लिए पहुंचे. इसके लिए कई हेलीकॉप्टर जयपुर में उतरे थे.

पाकिस्तान ने मांगा अपना हिस्सा

भारत सरकार के द्वारा इस रहस्यमयी खजाने को तलाशने की खबर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को भी लग गई. अगस्त 1976 में पाकिस्तान के पूर्नेव प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक खत लिखा.

खत में कहा गया, “आपके यहां खजाने की खोज का काम आगे बढ़ रहा है. मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि आप उस दौरान मिली संपत्ति के वाजिब हिस्से पर पाकिस्तान के दावे का ख्याल रखेंगी.”

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जैसे ही यह खत भारत पहुंचा, देश में हलचल मच गई. मीडिया में खबरें सुर्खियां बनी. देश के साथ दुनिया में भी यह खुदाई अभियान चर्चा का विषय बन चुका था. भारतीय राजनेताओं के बीच भी इस खजाने को लेकर सियासत गरमा गई थी.

पाकिस्तान के द्वारा मांगे गए अपने हिस्से के जवाब में भारत सरकार ने जब तीन माह बाद खजाना ना मिलने की घोषणा की. तब भारत की तरफ़ से पाकिस्तान को खत लिखा गया, 

“हमने अपने कानूनी सलाहकारों से कहा था कि वह आपके द्वारा पाकिस्तान की तरफ से किए गए दावे का अध्ययन करें. उनका साफ-साफ कहना है कि आपके द्वारा इस दावे का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. वैसे भी यहां कोई खजाना नहीं मिला है.”

बहरहाल, भारत सरकार ने कभी इस खजाने की सच्चाई के बारे में उजागर नहीं किया और राजा मानसिंह का जयगढ़ किले में छिपा रहस्यमयी खजाना रहस्य बनकर रह गया.