मजदूर की बेटी ने पुराने बैट से खेल कर पाई T-20 में एंट्री, मगर दिल्ली जाने के लिए नहीं हैं पैसे

मिर्जापुर जिले के आंही तिवारीपुर गांव की एक बेटी ने अपने क्षेत्र का नाम रोशन किया है. एक मजदूर की इस बेटी के संघर्ष को देखने के बाद इसका क्षेत्रीय स्तर तक जाना भी बड़ी उपलब्धि लगता है लेकिन ये लड़की इतनी जल्दी रुकने वाली नहीं है. वह देश के एक प्रतिष्ठित टी-20 टूर्नामेंट में खेलने के लिए चुनी गई हैं.

DLCL के ट्रायल में चयनित हुई ज्योति

क्रिकेट का जुनून लिए 19 वर्षीय ज्योति यादव हर बाधा को लांघ कर आगे बढ़ती जा रही है. इस समय ज्योति के हर जगह चर्चे हैं लेकिन एक तरफ जहां इन चर्चों में एक गर्व की बात है तो दूसरी अफसोस की. दरअसल ज्योति ने युवा मामले और खेल मंत्रालय के अंर्तगत नेहरू युवा केंद्र से मान्यता प्राप्त दिल्ली लील क्रिकेट लीग (DLCL) द्वारा आयोजित स्पॉन्सरशिप ट्रॉफी के ट्रायल में क्वालीफाई कर लिया है.

देश भर में युवा क्रिकेट प्रतिभाओं की तलाश कर रहे डीएलसीएल ने पिछले साल 11 जून, 2022 को ट्रायल आयोजित किए थे. ये बात आर्थिक तंगी से जूझ रहे ज्योति के परिवार और उनके क्षेत्र के लिए गर्व की बात है. वहीं, अफसोस इस बात का है कि ज्योति को 15 जनवरी 2023 को होने वाले अपने पहले टी-20 मैच के लिए दिल्ली जाना है लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर है कि दिल्ली जाने के लिए भी उन्हें सोचना पड़ रहा कि वह कैसे जाएंगी.

आर्थिक तंगी से जूझ रहा है परिवार

19 साल की इस प्रतिभाशाली महिला क्रिकेट खिलाड़ी ने झोपड़ी में रहते हुए आसमान की बुलंदियां छूने का दम दिखाया है. गांव कनेक्शन से बात करते हुए ज्योति ने अपने तंग हालातों के बारे में बताया कि, “उनके पास अपनी क्रिकेट किट खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं.” ज्योति के पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. जब वह डीएलसीएल परीक्षणों में सफल रही, तो उसने सोचा कि वह अपने गांव से लगभग 100 किलोमीटर दूर प्रयागराज जिले में एक क्रिकेट कैंप में भाग लेकर और तैयारी कर सकती हैं. इसके बाद वह कोच शेफाली शानू द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए वहां गईं लेकिन वहां उनके कमरे का किराया 4,000 रुपये था, जिसे वो चुका नहीं सकती थीं. इस वजह से उन्हें घर लौटना पड़ा.

पिता हैं एक दिहाड़ी मजदूर

उनके पिता काशीनाथ यादव दिहाड़ी मजदूर हैं. ऐसे में उन्हें बेटी को लेकर चिंता लगी रहती है कि आखिर कैसे ज्योति के नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर क्रिकेट खेलने का सपना पूरा हो पाएगा. काशीनाथ ने गांव कनेक्शन को अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि, करीब चार साल पहले जब ज्योति ने 12वीं पास की थी तभी से स्कूल के फीस का 4,000 रुपये बकाया है, जिसे वो आजतक चुका नहीं पाए और इसी कारण से स्कूल ने ज्योति की मार्कशीट भी जारी नहीं की है. काशीनाथ अपनी दिहाड़ी मजदूरी से अपनी पत्नी मनोहारी देवी और छह बच्चों का पेट पाल रहे हैं. उनकी पांच बेटियां और एक बेटा. यहां तक ज्योति का खरीदा हुआ बैट भी उसका अपना नहीं है, ये भी काशीनाथ के ए परिचित ने उन्हें दिया था.

गरीबी के बावजूद बेटी को आगे बढ़ा रहे

Jyoti Yadav Twitter

“उन्होंने मुझे एक पुराना बल्ला दिया जो उसके पास चार साल पहले था, और मैं तब से उनका उपयोग कर रहा हूं, “किशोर ने कहा. ज्योति ने कहा कि फसल कटने के बाद वह खाली खेतों को अपनी पिच के तौर पर इस्तेमाल करती हैं. और, जब फ़सलें बढ़ रही होती हैं, तो वह अपने घर के पास ज़मीन साफ़ करती हैं और अपने छोटे भाई के साथ खेलती हैं. सभी बाधाओं के बावजूद, ज्योति और उसका परिवार अपनी बेटी को नई दिल्ली में उसके पहले टी20 मैच के लिए भेजने में सक्षम होने के लिए पैसे जुटाने की कोशिश कर रहा है.

इतनी मुश्किलों के बावजूद ज्योति के पिता उन्हें नई दिल्ली में उसके पहले टी20 मैच के लिए भेजने के लिए पैसे जुटाने की कोशिश कर रहे हैं. बता दें कि ज्योति के दिहाड़ी मजदूर पिता एक दिन के लगभग 350 रुपये कमाते हैं और वह अपने परिवार में अकेले कमाने वाले हैं.

दिल्ली जाने के लिए नहीं हैं पैसे

Jyoti Yadav Twitter

ज्योति ने जून 2022 में ज्योति अपने पिता के साथ दिल्ली के कंझावल में आयोजित डीएलसीएल के क्वालीफिकेशन कैंपेन में पहुंची थीं. ज्योति ने क्वालीफाइंग राउंड में ही सेलेक्टर्स को प्रभावित कर दिया था. ज्योति दाएं हाथ की तेज बल्लेबाज भी हैं. उनका प्रदर्शन टी20 क्रिकेट के लिए बेहतरीन माना गया. ऑलराउंडर होने के कारण उन्हें डीएलसीएल ने राजस्थान में होने वाले टूर्नामेंट के लिए सेलेक्ट किया है. यह टूर्नामेंट जनवरी 2023 में खेला जाना है लेकिन ज्योति की मजबूरी यह है कि उसने क्वालीफाई तो कर लिया है लेकिन आगे के ट्रैवल और रहने-खाने की व्यवस्था करने तक के पैसे उनके पास नहीं हैं.

ज्योति भारतीय महिला क्रिकेट की बेहतरीन खिलाड़ी स्मृति मंधाना को अपना आइडल मानती हैं. उनका सपना है कि वह भारत की महिला क्रिकेट टीम के लिए खेलें. अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए सुविधाओं के अभाव के बावजूद ज्योति आगे बढ़ती जा रही हैं. उनके गांव में न कोई मैदान है और न ही कोई उन्हें प्रोत्साहित करने वाला है. क्रिकेट किट के नाम पर उनके पास एक पुराना बैट है और गेंद है. इसी से वह हर रोज 7-8 घंटे प्रैक्टिस करती हैं. ज्योति के भीतर 9 साल की उम्र से क्रिकेट के प्रति ज्योति की दिवानगी रही है.