10 मार्च, 1919 को अंग्रेज़ी हुकूमत ने रॉलेट एक्ट पास किया. रॉलेट एक्ट के ज़रिए अंग्रेज़ों के खिलाफ़ बग़ावत करने वाले किसी भी शख़्स को बिना किसी ट्रॉयल के जेल में डाला जा सकता था. देशभर में इस एक्ट का विरोध हुआ और महात्मा गांधी ने भी सत्याग्रह शुरू किया. 7 अप्रैल, 1919 को महात्मा गांधी ने ‘सत्याग्रही’ नामक लेख छापा और इस लेख में रॉलेट एक्ट का विरोध करने के तरीके बताए. पंजाब के गवर्नर Sir Michael O’Dwyer ने ही गांधी को देश निकाला देने का सुझाव दिया और गांधी जी के पंजाब आने पर पाबंदी लगा दी गई.
अंग्रेज़ों ने भारत के कुछ लीडर्स को गिरफ़्तार कर लिया था. ये अहिंसावादी नेता थे और अंग्रेज़ ये जानते थे. एक रिपोर्ट के अनुसार, डिप्टी कमिश्नर Irving को O’Dwyer ने डॉ. सत्यपाल और Dr. Kichlew का देश निकाला करने के निर्देश दिए थे. Irving ने दोनों को मिलने बुलाया और बंदी बना लिया. अपने नेता की गिरफ़्तारी देख आम जनता आक्रोशित हो गई और डिप्टी कमीश्नर के घर के बाहर भीड़ इकट्ठा हो गई. भीड़ पर अंग्रेज़ों ने गोलियां चलाई, कई मारे गए, कई ज़ख़्मी हुए. इस विरोध में एक महिला मिशनरी के साथ भी छेड़छाड़ और मारपीट हुई.
जिस समय पंजाब में ये घटना हुई, उसी के कुछ दिनों बाद वो हुआ, जिसकी टीस आज भी भारतीयों को चुभती है. ठीक 13 अप्रैल को हुआ था जलियांवाला बाग हत्याकांड.
जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre)
13 अप्रैल, 1919 जलियांवाला बाग… बैसाखी के मौके़ पर पुरुष, महिलाएं, बच्चे, बूढ़े सभी जमा हुए थे. जलियांवाला बाग़ में जमा हुए लोगों के पास किसी भी तरह का हथियार नहीं था. ये कोई राजनैतिक सम्मेलन नहीं था लेकिन अंग्रेज़ों ने इसे राजनैतिक सभा ही माना. जब ब्रिगेडियर जनरल Dyer को ये पता चला तो वो मौके पर पहुंचा और निहत्थी भीड़ पर ओपन फ़ायर करने के ऑर्डर दिए. हज़ारों की मौत हो गई, हज़ारों ज़ख़्मी हुए. गोलियां ख़त्म होने के बाद ही फ़ायरिंग रुकी.
इस घटना ने देश भर में रोष पैदा किया. ये ऐसा ज़ख्म था, जिसके घाव 100 साल बाद भी भरे नहीं हैं. अपनी इस ग़लती के लिए न ही उस समय की अंग्रेज़ी सरकार ने, न आज की ब्रिटिश पार्लियामेंट में माफ़ी मांगी गई. आद भी कई बार अंग्रेज़ोंं से इकी माफ़ी मांगने की पेटिशन चलती हैं,
उस समय एक शख़्स था जो जलियांवाला बाग़ हत्याकांड और अंग्रेज़ों के ज़ुल्म का जवाब देने लंदन पहुंचा. अंग्रेज़ी न्यायधीशों के सामने खड़े होकर इस नरसंहार और अंग्रेज़ों की क्रूरता की कहानी पेश की. उस शख़्स के बारे बहुत कम जानकारी मौजूद है. लेकिन, अब उसके जीवन पर एक फ़िल्म बनने वाली है. उस शख़्स का नाम था Chettur Sankaran Nair/ चेट्टूर शंकरन नायर.
केरल का बाग़ी वक़ील चेट्टूर शंकरन नायर
1857 को मानकारा, पलक्कड़, केरल में पैदा हुए चेट्टूर शंकरन नायर. शंकरन नायर के परदादा ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी करते थे. प्रेसिडेंसी कॉलेज, मद्रास से ग्रैजुएशन करते हुए शंकरन नायर को वक़ालत की पढ़ाई करने की इच्छा हुई. वो एक नामी वक़ील बन गए और मद्रास हाई कोर्ट में उनकी नौकरी लगी. वकालत के शुरुआती दिनों से ही शंकरन नायर बाग़ी थे, उन्हें जो सही लगता, वो उसका पक्ष लेते और इसी पर अडिग रहते. नायर को मद्रास के वकील और ब्राह्मण दोनों ही पसंद नहीं करते थे.
INC के सबसे युवा प्रेसिडेंट
1897 में शंकरन नायर को इंडियन नेशनल कांग्रेस के सबसे कम उम्र के और एकमात्र (अब तक) मलयाली प्रेसिडेंट चुने गए. उन्हें अंग्रेज़ों से कई सम्मान भी मिले. 1908 में शंकरन नायर मद्रास हाई कोर्ट के पर्मानेंट जज बनाए गए. 1904 में शंकरन नायर को King Emperor ने भारतीय साम्राज्य का Companion बनाया. 1912 में शंकरन नायर को अंग्रेज़ों ने Knighthood प्रदान किया. 1915 में शंकरन नायर को वायसरॉय काउंसिल का हिस्सा बनाया गया, इस काउंसिल में वे अकेले भारतीय थे.
प्रगतिशील विचारधारा
शंकरन नायर बेहद प्रगतिशील विचारधार के थे. वे अंतर्जातिय और अंतर्धामिक विवाह को ग़लत नहीं मानते थे. अंग्रेज़ों के ‘ख़ास’ होने के बावजूद उनका ये मानना था कि भारत को आज़ादी मिलनी चाहिए.
अकेले लड़ी जलियावाला बाग हत्याकांड के दोषियों से जंग
शंकरन नायर के वंशज, रघु पालाट और उनकी पत्नी पुष्पा पालाट ने शंकरन नायर पर एक किताब लिखी है, The Case that Shook the Empire, One Man’s Fight for the Truth About The Jallianwala Bagh Massacre. इस किताब के ज़रिए शंकरन नायर की कहानी दुनिया के सामने लाने की कोशिश की गई है.
जलियांवाला बाग कांड के बाद छोड़ा अंग्रेज़ों का दिया पद
रघु पालाट और पुष्पा पालाट से इंडियाटाइम्स हिंदी ने बातचीत की. पुष्पा ने बताया कि वायसरॉय काउंसिल का हिस्सा होने के बावजूद शंकरन नायर को जलियांवाला बाग़ और पंजाब में अंग्रेज़ी हुकूमत के अत्याचारों के बारे में बहुत बाद में पता चला. जैसे ही शंकरन नायर को अंग्रेज़ी हुकूमत की क्रूरता का पता चला, उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया. वो किसी ऐसी सरकार का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे जिसने उन्हीं के देशवासियों के साथ इतनी बर्बरता की हो.
रघु ने बताया कि शंकरन नायर के इस्तीफ़े के बाद ब्रिटिश हुकूमत हिल गई. पंजाब से प्रेस सेन्शरशिप हटाया गया और मार्शल लॉ वापस लिया गया. पंजाब में हुई ज़्यादतियों की जांच करने के लिए हंटर कमीशन का गठन किया गया.
किताब लिखकर पंजाब के गवर्नर का किया विरोध
1922 में शंकरन नायर की किताब आई, ‘Gandhi and Anarchy’. इस किताब में नायर ने लिखा कि गांधी के अहिंसावादी तरीकों से भी हिंसा फैल सकती है, मासूमों का ख़ून बह सकता है. उन्होंने इसी किताब में जनरल O’Dwyer के क्रूर तरीकों पर प्रश्न उठाए. शंकरन नायर का कहना था कि पंजाब के गवर्नर की हामी के बिना इतना भीषण हत्याकांड हो ही नहीं सकता. किताब की एक कॉपी O’Dwyer के भी हाथ लग गई.
हमसे बातचीत में पुष्पा पालाट ने कहना था कि जनरल O’Dwyer ने इंग्लैंड जाकर शंकरन नायर पर मानहानि का मुकदमा कर दिया. O’Dwyer को लगा कि उसके देश की कोर्ट उसका साथ देगी. ग़ौरतलब है कि बहुत सारे अंग्रेज़ों को यही लगता था कि जनरल Dyer ने जलियांवाला बाग में जो किया, वो सही किया. अंग्रेज़ों का ये मानना था कि अंग्रेज़ी हुकूमत को बचाने के लिए Dyer की हरकत सही थी.
गांधी जी ने शंकरन नायर के लिए कहा था,
“Sir Michael O’Dwyer की चुनौति को स्वीकार कर सर शंकरन नायर ने अंग्रेजों के संविधान और अंग्रेज़ों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया. उन पर मुकदमा चला और और वो दोषी पाए गए.”
अंग्रेज़ों के कोर्ट के सामने अंग्रेज़ों को ही ललकार आए
शंकरन नायर अपने ख़र्चे पर अकेले लंदन पहुंचे. उनके पड़-पोते रघु पलट ने इंडियाटाइम्स हिंदी से बातचीत में कहा कि लंदन की किंग्स बेंच के सामने पांच हफ़्तों तक मुकदमा चला. उस दौर का ये सबसे लंबा चलने वाला सिविल केस था.
पुष्पा ने बताया कि शंकरन अपने साथ हज़ारों लिखित काग़ज़ात लेकर गए थे जिसमें लोगों ने अंग्रेज़ों की क्रूरता बयान की थी. हज़ारों भारतीयों को कोर्ट में पेश करना संभव नहीं था. अंग्रेज़ी अदालत ने कुछ 100 काग़ज़ातों को ही मान्य किया. सिर्फ़ इन्हें पढ़कर ही प्रेस और अन्य लोगों के रौंगटे खड़े हो गए.
अंग्रेज़ों की 12 सदस्यों की ज्यूरी थी, और जस्टिस Henry McCardie इस ज्यूरी के हेड थे. जस्टिस हेनरी का झुकाव O’Dwyer की तरफ़ था और ज्यूरी के सभी सदस्य भारतीय लोगों और भारत से अपरिचित थे. ख़ुद न्यायाधीश रह चुके शंकरन नायर कोर्ट में न्यायाधीशों को पक्षपात करते देख रहे थे, लेकिन वो कुछ नहीं कर सकते थे. कोर्ट में O’Dwyer जीत गया, 11 ज्यूरी के सदस्यों ने माना कि उस पर लगाए इल्ज़ाम ग़लत थे. शंकरन नायर पर 500 पॉन्ड का जुर्माना और मुकदमे की लागत देने का आदेश दिया गया. O’Dwyer ने कहा कि अगर शंकरन नायर माफ़ी मांगते हैं तो वो सबकुछ भूलने को तैयार हो जाएगा.
नायर के पास एक और ट्रायल का विकल्प
ज्यूरी के एक सदस्य, Harold Laski ने शंकरन नायर का पक्ष लिया और उन्हें एक और ट्रायल का विकल्प दिया गया. O’Dwyer ने कहा कि अगर शंकरन नायर माफ़ी मांग लेते हैं तो उन्हें जुर्माना और अन्य ख़र्च नहीं देने होंगे. शंकरन नायर सत्य का साथ दे रहे थे और इसलिए किसी भी क़ीमत पर माफ़ी मांगने को तैयार नहीं हुए. शंकरन नायर जुर्माना देने को तैयार हो गए क्योंकि उन्हें अंग्रेज़ों के न्याय पर बिल्कुल भरोसा नहीं था.
जब अंग्रेज़ी हुकूमत की जड़ें हिल गईं
शंकरन नायर केस हार गए लेकिन इस केस पर दुनियाभर के अख़बारों ने लिखा. लंदन के कई नामी-गिरामी लोग इस केस को देखने आते थे. भारत में इस केस ने स्वतंत्रता सेनानियों के हौसले और बुलंद करने का काम किया.
इतिहास के पन्नों में खो गए शंकरन नायर
शंकरन नायर के वंशज रघु पलट ने बताया कि मार्च, 2017 में वो अमृतसर गए थे, वहां जलियांवाला बाग़ में शंकरन नायर के नाम की पट्टी देख वो भावुक हो गए. “हमें उम्मीद नहीं थी कि इतनी दूर उत्तर भारत में हमें सर नायर के स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए योगदान के बारे में कुछ देखने को मिलेगा. केरल में भी उनके योगदान के बारे में ज़्यादा लोग नहीं जानते.”
मानकर, पल्लकड़, केरल के चेट्टूर परिवार की सदस्य और पत्रकार तारा चेट्टूर मेनन शंकरन नायर की कब्र पर गईं. तारा का मानना है कि शंकरन नायर की कहानी सभी भारतीयों को पता होनी चाहिए.
“वो एक परिवार, एक क्षेत्र या एक राज्य से संबंधित व्यक्ति नहीं हैं. उन्होंने सांवैधानिक तरीकों से अंग्रेज़ों की क्रूरता का विरोध किया. जब तक हम ऐसे हीरोज़ के बारे में नहीं लिखेंगे, नहीं पढ़ेंगे या बात नहीं करेंगे तब तक इनकी कहानी इतिहास में दबी ही रह जाएगी.”
तारा की बात कहीं हद तक सही भी है.
शंकरन नायर पर कई साल तक शोध करने वाले राजशेखरन नायर ने बताया कि उन्होंने समाज के उत्थान के लिए भी बहुत कुछ किया था. “शंकरन नायर ने स्वास्थ्य, शिक्षा के सेक्टर में सुधार के लिए भी काम किया. वे वर्कर्स के हक़ के लिए भी लड़े.”
टेलिफ़ोनिक बातचीत के आखिर में पुष्पा पालाट ने कहा कि शंकरन नायर जैसी कई कहानियां देशभर के प्रांतों में छिपी हैं. आज की जेनरेशन के लिए इन कहानियों को जानना, उन लोगों को जानना बेहद ज़रूरी है.
करण जौहर बना रहे हैं बायोपिक
रघु पालाट और पुष्पा पालाट की किताब के आधार पर ही बॉलीवुड निर्देशक-निर्माता करण जौहर, शंकरन नायर पर बायोपिक बना रहे हैं. इस बात की सूचना जौहर ने इंस्टाग्राम पर दी थी.
All photos were provided by Raghu Palat