Yogi Guru Avaidyanath: हिंदू समाज के अलग-अलग मत के धर्माचार्यों को अवैद्यनाथ ने एक साथ जोड़कर अयोध्या आंदोलन में आगे बढ़ने का काम किया था। राम जन्मभूमि यज्ञ समिति के गठन के वक्त महंत अवैद्यनाथ को इसका अध्यक्ष चुना गया था। इसकी वजह भी थी कि सभी धर्माचार्य उन्हें अपना आदर्श मानते थे। योगी आदित्यनाथ ने उन्हें अपने जैविक पिता से भी ऊंचा दर्जा दिया।
गोरखपुर: बात तब की है, जब अपना घर-परिवार छोड़कर योगी आदित्यनाथ गोरक्षनाथ मंदिर आ गए थे। 22 साल की उम्र में ही उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया था। वह गोरक्ष पीठ के उत्तराधिकारी घोषित हो चुके थे और मंदिर परिसर में लगने वाले जनता दरबार को भी अपने हाथों में ले लिया था। कई श्रद्दालुओं ने उस दौरान मंदिर में से जूते और चप्पल चोरी हो जाने की शिकायत की। एक दिन भंडारे के निरीक्षण के दौरान मठ के कर्मचारियों ने योगी को बताया कि पड़ोस के मुस्लिम युवकों का समूह खाने के बाद दूसरों के जूते-चप्पल पहनकर निकल जाता है। यह बात पता लगने पर योगी ने उन लड़कों को फटकार कर वहां से निकलने के लिए बोला। इतने में योगी के गुरु वहां पहुंच गए। सारी बात पता चलने पर उन्होंने सीख देते हुए कहा कि वे आपके मेहमान थे। किसी को भी भंडारे से भूखे नहीं लौटना चाहिए। जाइए और उन्हें प्रेमपूर्वक बुलाकर लाइए। योगी ने अपने गुरु के आदेश का पालन किया। यह गुरु और कोई नहीं, बल्कि महंत अवैद्यनाथ थे। वह अवैद्यनाथ जिनसे गोरक्षपीठ की समृद्ध विरासत योगी आदित्यनाथ को मिली। वह अवैद्यनाथ जिन्होंने योगी के अवचेतन में हिंदुत्व की सिंचाई की।
नाथ संप्रदाय की परम्परा के महंत अवैद्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु थे। योगी ने गोरक्षपीठ का उत्तराधिकार अवैद्यनाथ से हासिल किया है। ब्रह्मलीन हो चुके अवैद्यनाथ का पुण्यतिथि सप्ताह चल रहा है। उनके गोरक्ष पीठाधीश्वर रहते हुए ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण आंदोलन परवान चढ़ा। उनके ही नेतृत्व की वजह से हिंदुत्व को लेकर पूरी दुनिया भर में चर्चा हुई। वह दिसंबर 1992 में हुई कारसेवा के नेतृत्वकर्ताओं में भी शामिल रहे।
महंत दिग्विजयनाथ ने सितंबर 1969 में समाधि ले ली। उनके बाद गोरक्षपीठाधीश्वर बने अवैद्यनाथ ने शुरू से ही राम मंदिर आंदोलन की कमान संभाल ली। उन्होंने ऐलान कर दिया कि राम ज्मभूमि की मुक्ति तक वह चैन से नहीं बैठेंगे। उनका मानना था कि राजनीतिक परिवर्तन के बगैर लक्ष्य प्राप्ति नहीं हो सकती। 1980 में राजनीति से संन्यास लेने के बावजूद राम मंदिर के लिए उनका संघर्ष चलता रहा। उन्होंने सभी पंथों को एक मंच पर लाने में सफलता हासिल की।
हिंदू समाज के अलग-अलग मत के धर्माचार्यों को अवैद्यनाथ ने एक साथ जोड़कर अयोध्या आंदोलन में आगे बढ़ने का काम किया था। जुलाई 1984 में राम जन्मभूमि यज्ञ समिति के गठन के वक्त महंत अवैद्यनाथ को इसका अध्यक्ष चुना गया था। इसकी वजह भी थी कि सभी धर्माचार्य उन्हें अपना आदर्श मानते थे। वह जब तक जीवित रहे, इस पद पर सदैव बने रहे। योगी ने उन्हें अपने जैविक पिता से भी ऊंचा दर्जा दिया। वह पिता के कॉलम में भी अवैद्यनाथ का नाम लिखा करते थे।
महंत अवैद्यनाथ की प्रेरणा और उनके नक्शे कदम पर चलते हुए ही योगी आदित्यनाथ महज 22 साल की उम्र में गोरक्ष पीठ के विशाल साम्राज्य के उत्तराधिकारी बने। अवैद्यनाथ गोरखपुर लोकसभा से सांसद भी रह चुके हैं। संसद सत्र की कार्रवाई में शामिल रहने के लिए दिल्ली रहने के दौरान योगी ही पीठ का कार्यकाज देखा करते थे। ऐसा कई बार देखा गया कि अवैद्यनाथ को याद करके योगी कई बार भावुक हो जाया करते हैं।
दरअसल, गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के लिए पिछली करीब आधी सदी से सितंबर का महीना खास होता है। ऋषि परंपरा में गुरु-शिष्य के जिस रिश्ते का जिक्र किया जाता है। इस महीने में पूरे सप्ताह भर गोरक्षपीठ उसकी जीवंत मिसाल बनती है। दरअसल सितंबर में ही ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवैद्यनाथ की पुण्यतिथि पड़ती है।
इस साल भी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 53वीं एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 8वीं पुण्यतिथि है। इस मौके पर हफ्ते भर आयोजन चलता रहता है। व्याख्यान, कथा, संगीतमयी कार्यक्रम, शोभायात्रा, हवन, भंडारे का कार्यक्रम चलता रहेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठाधीश्वर भी हैं। वह आयोजन के शुभारंभ और समापन समारोह में आयोजन स्थल पर उपस्थित रहेंगे।