Rishabh Pant Car Accident News: क्रिकेटर ऋषभ पंत के कार का एक्सिडेंट दिल्ली- देहरादून हाइवे पर हो गया। रुड़की के पास नारसन बॉर्डर पर हुए इस हादसे को होते हुए हरियाणा रोडवेज के ड्राइवर सुशील कुमार ने देखा। अपनी गाड़ी रोकी और मदद के लिए आगे बढ़े। आज ऋषभ रिकवर कर रहे हैं।
देहरादून: दिल्ली देहरादून हाइवे पर शुक्रवार की सुबह 5 से 5.30 बजे के बीच जो कुछ हुआ, उसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की होगी। न ऋषभ पंत ने। न उनके परिवार ने। न ही उनके फैंस ने। दिल में परिवार से मिलने का उत्साह और नए साल के उमंग के साथ ऋषभ पंत दिल्ली से निकल तो गए थे। लेकिन, होनी को कुछ और ही मंजूर था। रुड़की अपने घर से पहुंचने से पहले ऋषभ की कार दुर्घटना का शिकार हो गई। उसी वक्त ईश्वर ने देवदूत समान हरियाणा रोडवेज के ड्राइवर सुशील कुमार और कंडक्टर परमजीत को वहां भेज दिया। उन्होंने सामने एक कार को पलटते देखा। यह भी नहीं सोचा, कौन होगा? कैसा होगा? लपक पड़े। देखा एक युवक विंडस्क्रीन तोड़कर बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है। आधा निकला है। दोनों ने जिस दुर्घटना को देखा, उसमें बचने की कहां गुंजाइश थी। लेकिन,वह ऋषभ पंत थे। खुद को बचाया। सुशील और परमजीत ने निकाला। लेकिन, सुशील क्यों रुके। कोई तो एक्सिडेंट के बाद दर्द से कराहते लोगों को देखकर साइड से निकल जाता है। इस समय में सुशील को क्या सूझा, मदद करने गए। कहते हैं, मैं हाइवे पर ही रहता हूं। हादसे के शिकार को अगर मैं नहीं बचाउंगा तो भला कौन बचाएगा? इस बस ड्राइवर की बातें आपका दिल जीत लेंगी। उनकी सोच को सलाम करने का जी करेगा।
दिल्ली- देहरादून हाइवे को इनसे बेहतर कौन जानता है?
दिल्ली- देहरादून हाइवे को सुशील कुमार से बेहतर कम ही लोग जानते हैं। वे लगभग एक दशक से हर दूसरे दिन हाइवे पर अपनी गाड़ी के साथ होते हैं। हरियाणा रोडवेज के ड्राइवर को हरिद्वार- पानीपत रूट की जिम्मेदारी सौंपे हुए एक माह से अधिक का समय हो गया है। वे अपनी गाड़ी के साथ सुबह 4.25 बजे हरिद्वार से गाड़ी लेकर निकलते हैं। शुक्रवार भी उनके लिए सामान्य दिनों की ही तरह था। हरिद्वार से गाड़ी खुली। करीब एक घंटे की यात्रा के बाद वे रुड़की में नारसन सीमा के पास पहुंचे थे। तभी उन्होंने ने तेज गति से एक कार को डिवाइडर से टकराते हुए देखा। कार दिल्ली तरफ से आ रही थी। टक्कर के कारण कार हवा में गोते खाते हुए उनके लेन में आ गई। सुशील ने कार की टक्कर से बचने के लिए अपनी बस को सुरक्षित दूरी पर पार्क किया। अपने सहयोगी परमजीत के साथ क्षतिग्रस्त कार के अंदर फंसे व्यक्ति को बचाने के लिए बाहर निकले।
सुशील कुमार को इस बात का अंदाजा नहीं था कि वह जिस व्यक्ति को बाहर निकालने में मदद कर रहे हैं, वह स्टार विकेटकीपर- बल्लेबाज ऋषभ पंत हैं। सुशील कहते हैं कि मुझे बस इतना पता था कि उस आदमी को बचाया जाना चाहिए। मेरे लिए, यह अंतरात्मा की पुकार थी। अगर मैं जरा सा भी देर करता तो कार में विस्फोट हो जाता। मैं हाईवे पर रहता हूं। अगर मैं मदद नहीं करूंगा, तो कौन करेगा? 42 वर्षीय सुशील कुमार ये सवाल प्रश्न करने वालों से ही पूछते हैं। सुशील को बचपन से ही रोडवेज की बसों को चलाने की महत्वाकांक्षा थी। रोडवेज की बसों को चलाने से उनके पैशन और गांव में सरकारी नौकरी की प्रतिष्ठा भी मिली। करनाल में उन्हें सम्मान की नजर से देखा जाता है। शनिवार को एक बार फिर वे सामान्य दिनों की तरह अपने काम पर थे।
2014 से कर रहे हैं रोडवेज की नौकरी
वर्ष 2008 में सुशील ने हरियाणा रोडवेज में ड्राइवर पद के लिए आवेदन किया। मेरिट लिस्ट में जगह मिली। नियुक्ति पत्र का इंतजार करते रहे, ज्वाइनिंग नहीं हो पाई। थके, निराश हो गए। चार साल तक इंतजार जो चलता रहा। सुशील ने निराश होकर 2012 में साऊदी अरब में एक निजी डाइवर के रूप में नौकरी की। दो साल बाद यानी 2014 में सरकार ने भर्ती की सूचना जारी की। इसमें सुशील कुमार का नाम था। वे अपने ड्रीम जॉब करने के लिए साऊदी अरब से वापस लौट आए। सड़क पर चलने के दौरान शुक्रवार को पहला मौका नहीं था, जब सुशील ने मदद की पेशकश की हो। वर्ष 2020 में कोविड का प्रकोप बढ़ा। लॉकडाउन लगा तो प्रवासी मजदूरों की फेरी के लिए उन्होंने पेशकश की थी। वे लोगों को पैदल जाने की जगह बस से पहुंचाने को तैयार थे। बिना अपनी सेहत की परवाह किए।
सुबह में ड्राइवरों को होती है मुश्किल
सुशील कुमार रोडवेज के बसों को चलाने के अपने एक दशक के अनुभवों के आधार पर कहते हैं कि वह भोर का समय था। इस समय में ड्राइवरों को अपनी आंखें खुली रखने में मुश्किल होती है। शुक्रवार की अहले सुबह वे 33 लोगों को अपनी बस में लेकर जा रहे थे। उसी समय में उन्हें आभास हुआ कि दूसरी लेन में आने वाले मर्सिडीज कार अनियंत्रित हो गई है। वे सचेत हो गए। सुशील कहते हैं कि मुझे पता था कि कार दुर्घटनाग्रस्त होने वाली है। इसलिए, मैं धीमा हो गया। मेरी पहली कोशिश टक्कर से बचने और बस में यात्रियों को बचाने की थी।
सुशील उस वक्त को याद करते हैं। कहते हैं कि जब मैं और परमजीत बचाव के लिए दौड़े, उस समय पंत होश में थे। 30 वर्षीय परमजीत कहते हैं कि उन्होंने हमसे पूछा कि वह डिवाइडर पर कैसे पहुंच गए। हमने उन्हें प्राथमिक उपचार दिया। एम्बुलेंस और पुलिस को बुलाया।