इतिहास के पन्नों में गुम है वीरांगनाओं की कहानी
भारत की सभ्यता व संस्कृति से आकर्षित होकर कई विदेशी यहां आए। वहीं, भारत के धन और ऐश्वर्य पर अधिकार करने की इच्छा से कई आक्रमणकारियों ने भारत पर कब्जा करने की कोशिश की। जिसमें कुछ लोग कामयाब हुए और कुछ को वीर सपूतों ने धूल चटा दी।
गौरतलब है कि भारत के वीरों की जितनी कहानियां बताई या पढ़ाई जाती हैं उतनी वीरांगनाओं की नहीं। हमारे देश में असंख्य वीरांगनाओं की कहानियां हम जानते ही नहीं हैं। उनकी कहानियां इतिहास में कहीं गुम हो गई हैं। जबकि, हमारे देश की रानियां व राजकुमारियां वीरता दिखाने में भारत भूमि को बचाने में कभी पीछे नहीं हटीं। आज हम आपको ऐसी एक वीरांगना की कहानी बताने जा रहे हैं, जो कि इतिहास में अमर हैं।
हम बात कर रहे हैं माई भागो (Mai Bhago) उर्फ माता भाग कौर (Mata Bhag Kaur) की। माई भागो पेरो शाह की वंशज थीं और भाई मल्लो शाह नामक जमींदार की इकलौती बेटी थीं। माई भागो का जन्म झाबल कलां (अब अमृतसर) में हुआ था। माई भागो के माता-पिता सिख धर्म का पालन करते थे और छोटी सी भाग कौर को गुरु गोबिंद सिंह से मिलने आनंदपुर ले जाया करते थे।
इतिहासकारों का कहना है कि माई भागो आनंदपुर में ही रुक कर अस्त्र-शस्त्र विद्या सीखना चाहती थीं, लेकिन उनके पिता उन्हें घर ले आए। इसके बाद माई भागो ने घर पर ही पिता से तीरंदाजी, घुड़सवारी, युद्ध कला आदि की शिक्षा ली। माई भागो का लक्ष्य गुरु गोबिंद सिंह की सेना से जुड़ना था। कहा जाता है कि माई भागो हमेशा अपने साथ एक भाला रखती थीं और अपने पिंड में ही अभ्यास करती रहती थीं। उनका विवाह पट्टी के निधान सिंह से करवाया गया था।
जानकारी के अनुसार, 1704-05 के आस-पास हिमाचल के कुछ पहाड़ी राजाओं की मदद से मुगलों ने आनंदपुर पर हमला कर दिया। उस समय माई भागो के गांव के 40 सिखों को मुगलों से युद्ध करने की अनुमति नहीं मिली थी और वो गांव लौट आए थे। इन लोगों में माई भाग कौर के पति और दो भाई भी शामिल थे। माई भागो को यकीन नहीं हुआ कि उनके गुरु को छोड़कर कुछ लोग गांव वापस लौट आए हैं। इस कायरता के लिए माई भागो और अन्य महिलाओं ने सिखों को खूब सुनाया और उन सिखों में फिर से वीरता और गुरु के प्रति समर्पण जगाया।
कहते हैं कि माई भागो ने पुरुषों का भेष धारण किया था। इसके बाद आनंदपुर में हालात बिगड़ते ही जा रहे थे। गुरु गोबिंद सिंह ने अपने लड़ाकों को वादा किया कि सभी सुरक्षित निकल जाएंगे, लेकिन अफरा-तफरी और उलझन में गुरु के अपने बेटे और बहुत से अनुयायी मारे गए। जिसके बाद गुरु अपने कुछ अनुयायियों के साथ पंजाब के फिरोजपुर के खिदराना गांव पहुंचे और यहां माई भागो भी उन्हीं 40 सिखों के साथ पहुंची।
साल 1705, मई में 250 सिखों और 40 अनुयायियों की टुकड़ी लेकर माई भागो मुगलों की विशाल सेना से भिड़ गईं। इस युद्ध में सिर्फ माई भागो ही जीवित बचीं बाकि सभी सिख शहीद हो गए। गुरु गोबिंद सिंह 40 सिखों के बलिदान से द्रवित हो गए और शहीदों को चाली मुक्ते नाम दे दिया। आज के समय में खिदराना की झील के पास एक गुरुद्वारा है जिसे श्री मुक्तसर साहिब कहा जाता है।