पारसी धर्म में अंतिम संस्कार में शवों को ना तो हिंदुओं की तरह जलाया जाता है और ना ही मुस्लिम और ईसाई धर्म की तरह दफनाया जाता है। पारसी समुदाय में मौत के बाद व्यक्ति के शव को टावर ऑफ साइलेस पर रखा जाता है। यह एक गोलाकार ढांचा होता है। इसे दखमा भी कहते हैं। यहां शव रखने के बाद मृतक की आत्मा की शांति के लिए चार दिन प्रार्थना की जाता है। इस प्रार्थना को अरंध कहते हैं।
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पारसी धर्म की स्थापना पैगंबर जराथुस्त्र ने प्राचीन ईरान में 3500 साल पहले की थी। यह धर्म एकेश्वरवादी है। ये ईश्वर को आहूरामस्ता कहते हैं। इस्लाम के आने से पहले प्राचीन ईरान में जरथुस्त्र धर्म का ही प्रचलन था। ये लोग अग्नि के पूजक हैं। आइए जानते हैं इस धर्म से जुड़ी खास बातें…
पारसी धर्म एक मौखिक परंपरा है, इसका मतलब वाक्य या श्रुति से है 10वीं शताब्दी में ईरानियों का एक समूह ईरान से पलायन कर गया, जिसके बाद इस धर्म की स्थापना हुई भारत में पारसी समुदाय के लोग गुजरात और महाराष्ट्र में आकर बसे।
भारत में शापूरजी पालोनजी ग्रुप के वारिस और टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की पिछले दिनों एक सड़क हादसे में मौत हो गई। साइरस मिस्त्री पारसी समुदाय से थे। साइरस मिस्त्री के निधन के बाद पारसी समुदाय से एक मशहूर नाम चला गया। भारत में पारसियों की संख्या पहले ही बहुत कम है। ऐसे नजर डालते हैं कि आखिर पारसी धर्म की शुरुआत कहां से हुई और भारत में इनका क्या इतिहास है।
इस धर्म की शुरुआत…
पारसी या जरथुस्त्र धर्म विश्व के प्राचीन धर्मों में से एक है। पारसी धर्म की स्थापना पैगंबर जराथुस्त्र ने प्राचीन ईरान में 3500 साल पहले की थी। यह धर्म एकेश्वरवादी है। ये ईश्वर को आहूरामस्ता कहते हैं। इस्लाम के आने से पहले प्राचीन ईरान में जरथुस्त्र धर्म का ही प्रचलन था। ये लोग अग्नि के पूजक हैं। इनका धर्मग्रंथ जराथुस्त्र से निकला धर्म जराथुस्त्रियन कहलाया। जरथुस्त्र ग्रीक नाम है। पर्शियन में जरथुस्टी और गुजराती में जरातोष्टी कहते हैं। पारसियों का धर्मग्रंथ ‘जेंद अवेस्ता’ है, यह ऋग्वैदिक संस्कृत की ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखा गया है। यही कारण है कि ऋग्वेद और अवेस्ता में बहुत से शब्दों की समानता है। ऋग्वेदिक काल में ईरान को पारस्य देश कहा जाता था। लेडी श्रीराम कॉलेज की प्रोफेसर शेरनाज कामा के अनुसार पारसी धर्म एक मौखिक परंपरा है। इसका मतलब वाक्य या श्रुति से है। हालांकि, 1500 साल इससे जुड़ी किताबें लिखी गईं। जरथुस्त्र में कही गई बातें पांच गाथा में समाहित हैं। पारसी धर्म में रोशनी और बुद्धि को प्राथमिकता दी गई।
10वीं शताब्दी में ईरान से हुआ था पलायन
10वीं शताब्दी में ईरानियों का एक समूह ईरान से पलायन कर गया। इन्हें तलाश थी उस जगह की जहां वे स्वतंत्र रूप से अपनी धार्मिक गतिविधियों को चला सकें। इन्हें भारत के गुजरात में ठिकाना मिला। यहां इन्होंने इंडियन पारसी कम्युनिटी की स्थापना की। जोरोएस्ट्रिनिइज्म को ही ईरान में पर्शा बोला जाता है और ये गुजरात आकर पारसी बन गए। अग्नि मंदिर पारसी लोगों का धर्म स्थल है। भारत में पारसी लोगों के प्रार्थन स्थल को आतिश बेहराम या दर ए मेहर कहा जाता है। आतिश का अर्थ है अग्नि। पारसियों के धर्म स्थल में कोई मूर्ति नहीं होती है।
ना शव को जलाते हैं ना दफनाते हैं
पारसी धर्म में अंतिम संस्कार में शवों को ना तो हिंदुओं की तरह जलाया जाता है और ना ही मुस्लिम और ईसाई धर्म की तरह दफनाया जाता है। पारसी समुदाय में मौत के बाद व्यक्ति के शव को टावर ऑफ साइलेस पर रखा जाता है। यह एक गोलाकार ढांचा होता है। इसे दखमा भी कहते हैं। यहां शव रखने के बाद मृतक की आत्मा की शांति के लिए चार दिन प्रार्थना की जाता है। इस प्रार्थना को अरंध कहते हैं। यहां रखे शव को गिद्ध खाते हैं। यह पारसी समुदाय की परंपरा का हिस्सा है। पारसी धर्म में किसी शव को जलाना या दफनाना प्रकृति को गंदा करना माना गया है। पारसी धर्म में माना जाता है कि मृत शरीर अशुद्ध होता है। पारसी धर्म में पृथ्वी, जल और अग्नि को बहुत ही पवित्र माना गया है। इसलिए शवों को जलाना या दफनाना धार्मिक नजरिये से पूरी तरह से गलत है।
पारसी समुदाय में शादी का रस्म ‘पसंदे कदम’
शेरनाज कामा का कहना है कि पारसियों की शादी में लोग एक-दूसरे के सामने बैठते हैं। शादी के दौरान भी तीन बार पूछा जाता है। पहले लड़की को पूछा जाता है पसंदे कदम और फिर लड़के को पूछा जाता है। इसका मतलब है कि आप मानते हो कि इससे शादी करनी है। यदि लड़का और लड़की राजी है तो तीन बार सिर हिलाकर अपनी सहमति देते हैं। इससे यह पुष्ट होता है कि लड़की और लड़के दोनों को यह शादी मंजूर करना पड़ता है। इस धर्म की खास बात यह है की अगर पारसी समाज की लड़की किसी दूसरे धर्म में शादी कर ले, तो उसे धर्म में रखा जा सकता है। हालांकि, उसके पति और बच्चों को धर्म में शामिल नहीं किया जाता है। ठीक इसी तरह लड़कों के साथ भी होता है। लड़का भी यदि किसी दूसरे समुदाय में शादी करता है तो उसे और उसके बच्चों को धर्म से जुड़ने की छूट है, लेकिन उसकी पत्नी ऐसा नहीं कर सकती।
देश के विकास में अहम योगदान
भारत की इतनी बड़ी आबादी में मामूली प्रतिनिधित्व होने के बावजूद इस समुदाय ने देश को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 57 हजार पारसी समुदाय के लोग थे। देश की राजधानी दिल्ली में करीब 350 पारसी समुदाय के लोग हैं। इसके बावजदू इस समुदाय ने हर क्षेत्र में कमाल किया है। देश के विकास में पारसी समाज का बहुमूल्य योगदान रहा है। इस समुदाय के लोग देश के अग्रणी उद्यमी हैं। बड़े कानूनविद्, स्वतंत्रा सेनानी से लेकर सैन्य बलों में भी इनकी मौजूदगी और गहरी छाप है।
पारसी समुदाय से एक से बढ़कर एक हस्तियां
पारसियों ने पेशे या स्थान से संबंधित उपनाम अपनाने का फैसला किया। कपड़े का व्यापार करने वाला कपाड़िया, मोतियों का व्यापार करने वाला मोतीवाला, ठाणे शहर का व्यक्ति ठाणेवाला। मशहूर परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा भी पारसी थे। पूर्व सेनाध्यक्ष और फील्ड मार्शल मानेकशॉ भी पारसी थे। पहली बार तिरंगा फहराने वाली स्वतंत्रता सेना मैडम भीकाजी कामा भी पारसी समुदाय से ही थीं। महान स्वतंत्रता सेनानी दादा बाई नौरोजी। टाटा उद्योग के संस्थापक जमशेदजी नसरवानजी टाटा को भला कौन भूल सकता है। गोदरेज के संस्थापक आर्देशिर गोदरेज, वाडिया उद्योग के संस्थापक लवजी नुसरवानजी वाडिया, सीरम इंस्टीट्यूट के सायरस पूनावाला, पहली बोलती फिल्म आलमआरा बनाने वाले फिल्मकार एएम ईरानी, राजनेता पीलू मोदी सभी पारसी समुदाय से थे।