जिन लोगों ने रामायण पढ़ी है, वे जानते हैं कि श्री राम ने जाति, रंग या पंथ के बावजूद सभी को गले लगाया. मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में उन्होंने नैतिकता के जो उच्च मानक स्थापित किए वो आज भी सार्वभौमिक भाईचारे और मानवता का संदेश फैलाते हैं. अमीर, गरीब, जवान, बूढ़ा, सभी ने राम की कृपा देखी. राम की अनुकंपा पाने वाली एक ऐसी ही एक बूढ़ी आदिवासी महिला शबरी थीं.
सीता को खोजते हुए शबरी से मिले थे श्रीराम
जब राम अपनी प्यारी पत्नी सीता का पता लगाने के लिए भाई लक्ष्मण के साथ अपने मिशन पर थे, तब उनकी मुलाकात शबरी से हुई, जिन्होंने उनकी दयालुता के बारे में सुना था. एक सच्चे भक्त की तरह, शबरी ने अपना जीवन श्रीराम के दर्शन की इच्छा में बिताया था. शबरी की इच्छा तब पूरी हुई, जब राम और लक्ष्मण उनकी कुटिया में गए.
गरीब महिला के पास भाइयों को खिलाने के लिए बेर के अलावा कुछ नहीं था. लेकिन वह यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि वह केवल मीठे बेर ही परोसेंगी. इसलिए उन्होंने दोनों को भेंट करने से पहले प्रत्येक बेर का स्वाद चखा. श्री राम ने शबरी के निर्दोष प्रसाद को सहर्ष स्वीकार कर लिया और इस बात पर आपत्ति किए बिना कि बेर पहले से खाए हुए थे.
वो जगह कहां है जहां पर शबरी से मिले थे राम?
जिस स्थान पर भगवान राम शबरी से मिले थे, वह जगह अब गुजरात में स्थित है. जिसे अब शबरी धाम कहा जाता है. शबरी धाम गुजरात के डांग जिले के पास अहवा-नवापुर रोड से दूर सुबीर नामक गांव से लगभग 4 किलोमीटर दूर है. इस स्थान को रामायण में वर्णित दंडकारण्य माना जाता है. मंदिर परिसर में तीन पत्थर के स्लैब हैं जिन पर राम, लक्ष्मण और शबरी बैठे थे.
वहीं भगवान राम से जुड़ी पम्पा झील शबरी धाम से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर है. शबरी देवी ने भाइयों को मीठे फल खिलाए और फिर कुछ ही दूर पम्पा सरोवर के लिए निर्देशित किया. उन्होंने भगवान राम से कहा कि वह वहां किसी ऐसे व्यक्ति से मिलेंगे जो उनकी खोज में उनकी मदद करेगा. भगवान राम ने जाने से पहले शबरी देवी को वैकुंठ में निवास करने का आशीर्वाद दिया.
शबरी से मुलाकात के बाद माता सीता की खोज
भगवान राम और लक्ष्मण फिर पम्पा सरोवर के लिए रवाना हुए. हुआ यूं कि सुग्रीव प्राचीन किष्किंधा में अंजनेय पहाड़ी पर अपने भाई बाली से छिपा हुआ था. उन्होंने दोनों भाइयों को आते देखा और हनुमानजी को यह पता लगाने के लिए भेजा कि वे कौन हैं. हनुमानजी ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और पूछा कि वे कौन हैं. तब हनुमानजी को एहसास हुआ कि यह कोई और नहीं बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं. वह दोनों भाइयों को अपने कंधों पर उठाकर पहाड़ी की चोटी पर ले आए. वहां भगवान राम सुग्रीव से मिले और बाद में, वानर सेना द्वारा सीता मां की खोज शुरू हुई.