बहुत लोग कहते हैं की अमीर लोग और भी अमीर होते जा रहे और गरीब लोग ज्यादा गरीब हो रहे है। देश में गरीबी के अलावा जात पात का भेद भाव लोगो में अंतर लाने के साथ साथ देश की जड़ों को भी खोखला करता है। अगर कोई इस सब चीजों का सामना करते हुये सफलता के शिखर पर पहुँच जाये, तो वह किसी मिसाल से कम नहीं होगा। आज की कहानी भी एक ऐसे ही शख्स की हैं।
आज की कहानी अशोक खाड़े (Ashok Khade) नाम के एक व्यवसाई (Businessman) की है। उनके पिता एक मोची थे और मां दूसरों के खेतों में दिहाड़ी मज़दूरी का काम किया करती थी। दोनों माता पिता अपने बेटे को अच्छी शिक्षा देकर गरीबी से निकालकर एक अच्छा जीवन देना चाहते थे।
इसी शिक्षा के सहारे अशोक ने एक कंपनी भी बनाई, जो आज 4500 लोगों को रोजगार देती है और सालाना 500 करोड़ रुपये का कारोबार (500 Crore Ru Business) कर रही है। यह सब कैसे संभव हो पाया, यही जानना हमारा मकसद है।
महाराष्ट्र के सांगली ज़िले के पेड गांव में अशोक का जन्म हुआ था। वे एक दलित परिवार से आते थे। वहां पर अशोक की जाति के लोग का पारंपरिक काम मृत जानवरों की खाल उतारने का था। अशोक कुल 6 भाई बहन थे। ऐसे में घर में खाने के भी लाले रहते थे। कुछ दिन तो भूखे पेट ही सोना पड़ता। अशोक के परिवार ने गरीबी और जातिगत भेद भाव का भी सामना किया।
फिर कुछ वक़्त गांव में ही काम करने के बाद अशोक के पिता ने मुंबई ने मुंबई जाने का मन बनाया। अशोक ने द इकॉनॉमिक टाइम्स को बातचीत में बताया, मेरे पिता ने मुंबई में एक मोची के रूप में काम किया। आप अभी भी उनके द्वारा लगाए गए पेड़ को देख सकते हैं और वे चित्रा टॉकीज के पास मूचि का काम करते थे। वह स्थान अब भी है। कभी कभी वे वहां जाते है।
अशोक ने कई सरकारी स्कूलों से पढाई की। 10वीं क्लास की पढ़ाई के बाद बे अपने पिता और भाई के काम के हाँथ बैठने के लिए मुंबई आ गए थे। उस समय उनका भाई Mazgaon Dockyard नाम की एक कम्पनी में वेल्डर का काम करता था। अशोक ने मुंबई में भी अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए अपने भाई की कम्पनी में ही एक ट्रेनी के तौर पर काम करना शुरू क्र दिया।
अशोक ने साल 1975 से 1992 तक उसी कंपनी में काम किया और फिर उन्होंने खुद की कम्पनी शुरू करने के के लिए व्यावसायिक संपर्क बढ़ाये और रिसर्च करनी शुरू कर की। 1983 में उन्हें जर्मनी जाने का भी मौका मिला। यहां के काम को देखकर उनके दिमाग में नया बिज़नेस आईडिया आया।
फिर साल 1995 में DAS Offshore कंपनी शुरू की, उन्होंने यह काम अपने भाई दत्ता और सुरेश के साथ मिलकर शुरू किया। DAS का मतलब दत्ता, अशोक और सुरेश था, जो की तीनों भाइयों के नाम का पह्का अक्षर था। काम संभालने के बाद उनका पहला बड़ा प्रोजेक्ट उनकी पहले वाली कम्पनी Mazagon Dock से आया।
फिर अशोक ने तेल रिसाव का निर्माण और नवीनीकरण करना शुरू कर दिया और अपने नए कस्टमर्स बनाने शुरू किये। उने कस्टमर्स में ONGC, Essar, Hyundai आदि शामिल हैं। हालिया समय में DAS ऑफशोर में 4500 से अधिक कर्मचारी काम करते है और उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 500 करोड़ रुपये है। उन्होंने अपने गाँव में एक मंदिर भी बनवाया है। अब उनके गाँव में ही उनके माता पिता और पूरे परिवार को मान सम्मान दिया जाता है।