इंसान की क्षमता उसे बड़ी से बड़ी जीत दिलवा सकती है. उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के एक सुदूर गांव के 23 वर्षीय रामबाबू ने ये बात साबित कर दिखाई है. रामबाबू के जीवन का संघर्ष जितना बड़ा है उतना ही बड़ा सपना देखने की उन्होंने हिम्मत की है. कमाल की बात ये है कि वह सिर्फ सपना देखा ही नहीं रहे, बल्कि इसे पूरा करने की हर कोशिश करते हुए कामयाब भी हो रहे हैं.
रामबाबू ने तोड़ दिया National Record
दरअसल, हाल ही में रामबाबू ने राष्ट्रीय खेलों में 35 किलोमीटर की पुरुष ‘रेस वॉक’ यानी पैदल चलने की रेस में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा है. दो घंटे 36 मिनट और 34 सेकेंड में उन्होंने ये वॉक रेस पूरी कर गोल्ड मेडल जीत लिया. रामबाबू उस समय चर्चा में आए जब गोल्ड जीतने के बाद उनकी मनरेगा में मजदूरी करते हुए तस्वीरें और वीडियो वायरल होने लगे.
लॉकडाउन में की मजदूरी
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55 वर्षीय छोटेलाल रामबाबू के पिता हैं, जो कि एक भूमिहीन मजदूर हैं और मजदूरी से ही अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. रामबाबू और उनका परिवार उन्हीं हजारों मजदूरों में से है जिन्हें 2020 के कोविड लॉकडाउन में भोजन तक के लिए संघर्ष करना पड़ा था. उनका उस दौरान का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. लॉकडाउन की कठिन परिस्थितियों में डेढ़ महीना उन्होंने तालाब खोदने का काम किया. मजदूरी करने से पहले वह वेटर का काम करते थे. इसके अलावा उन्हें कुरियर पैकेजिंग कंपनी में करीब 4 महीने बोरे सिलने का काम भी करना पड़ा.
कोरोना काल में छोड़नी पड़ी ट्रेनिंग
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अब राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ने के बाद रामबाबू आगे की ट्रेनिंग के लिए पुणे चले गए हैं. कभी मजदूरी करने वाले रामबाबू के अंदर अपने खेल को लेकर जुनून भरा हुआ है. यही वजह है कि वह पिछले एक साल से अपने घर नहीं गए. ये रामबाबू की चार महीने की कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग का नतीजा है जिससे वह 35 किलोमीटर ‘मेंस वॉक रेस’ में रिकॉर्ड तोड़ने में सक्षम हो पाए. ये ट्रेनिंग उन्होंने बेंगलुरु में ली थी. हालांकि रामबाबू सितंबर 2018 से ट्रेनिंग ले रहे थे लेकिन 2020 में कोविड के कारण उन्हें गांव लौटना पड़ा.
मीडिया से बात करते हुए रामबाबू ने बताया कि उनके पिता मजदूरी करके जैसे-तैसे उनकी ट्रेनिंग और बहन की पढ़ाई और का खर्च उठा रहे हैं. रामबाबू के अनुसार आर्थिक अच्छी न होने की वजह से उन्हें कभी अच्छी डाइट नहीं मिली. उनके गांव के हाल ऐसे हैं कि पानी लाने के लिए भी उन्हें एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.
ओलंपिक में जाने का देखा सपना
BBC से बात करते हुए रामबाबू ने बताया था कि, “परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण लॉकडाउन में जिंदा रहने के लिए उन्हें अपने पिता के साथ डेढ़ महीने तक मनरेगा में मजदूरी करनी पड़ी. हालांकि रामबाबू को हमेशा से भरोसा था कि एक दिन वह देश के लिए जरूर परफ़ॉर्म करेंगे. 2 घंटे 36 मिनट और 34 सेकेंड में ‘रेस वॉक’ पूरी कर नेशनल रिकॉर्ड अपने नाम करने वाले रामबाबू का सपना है कि वह ओलंपिक में अपने देश का प्रतिनिधित्व करें.