अंग्रेज़ों की रंगभेदी सोच का विरोध करने के लिए 100 साल पहले बनाई गई ‘वाघ बकरी चाय’ की कहानी

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भारत चाय पीने वालों का देश है. अदरक चाय, इलायची चाय, मसाला चाय, तुसली अश्वगंधा वाली चाय. यहां के लोगों की सुबह तब तक नहीं होती जब तक एक प्याली चाय हलक से नीचे नहीं उतरती. चाय के साथ हम भारतीयों की भावनाएं जड़ी हैं. अमीर हो या ग़रीब चाय ऐसी चीज़ है जो सबके रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा है.

एक रिपोर्ट की मानें, तो 2019 में भारत ने 1 बिलियन किलोग्राम चायपत्ती गटक ली. चाय के साथ बिस्कुट, पकौड़े, समोसे, पोहा आदि भी चलती है. चाय पर चर्चाएं होती हैं, बहस होती है, चाय पर ही रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं. चाय भी ऐसी कड़ी है जो हम भारतीयों को आपस में जोड़ती है और यहीं से शुरू हुई मशहूर ब्रैंड ‘वाघ बकरी चाय’ की कहानी.

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अंग्रेज़ों के रंगभेद का जवाब थी वाघ बकरी चाय

नारानदास देसाई ने 1892 में डर्बन, दक्षिण अफ़्रीका में 500 एकड़ चाय का बगान ख़रीदा. अफ़्रीका उस दौर में अंग्रेज़ी हुकूमत के क़ैद में था. नारनदास को भी अपने रंग और नस्ल की वजह से कई तरह के अन्याय और भेदभाव का सामना करना पड़ा. सफ़लता सीढ़ियां की चढ़ते नारनदास के लिए भेदभाव के जाल कम नहीं हुए. महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानने वाले नारनदास 1915 में भारत लौट आए. उनके पास सिर्फ़ कुछ सामान और बापू की लिखी हुई एक चिट्ठी थी.

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12 फरवरी, 1915 तारीख वाली इस चिट्ठी में थी देसाई की तारीफ़

‘मैं नारनदास देसाई को दक्षिण अफ़्रीका में जानता था जहां वो कई सालों से सफ़ल चाय बागान के मालिक रहे.’

गांधी जी ने नारदास की सहायता की और नारनदास ने भी उन्हें निराश नहीं किया. 1919 में नारनदास ने अहमदाबाद में गुजरात टी डिपो की स्थापना की.

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कंपनी के नाम और Logo के पीछे की सोच

नारनदास की कंपनी वाघ बकरी चाय के Logo में एक बाघ बना है और एक बकरी. और ये दोनों ही एक ही प्याली से चाय पीते हैं. एक लेख के अनुसार, गुजराती में बाघ को ‘वाघ’ कहते हैं और बकरी यानी बकरी. ये चिह्न एकता और सौहार्द का प्रतीक है. इस चिह्न में बाघ यानी उच्च वर्ग के लोग और बकरी यानी निम्न वर्ग के लोग. दोनों को एकसाथ चाय पीते दिखाना लोगों के लिए एक बहुत बड़ा संदेश है. सामाजिक एकता का प्रतीक है इस चाय कंपनी का Logo.

इस Logo के साथ 1934 में चाय के ब्रैंड की स्थापना की गई.

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1980 तक बेची खुली चाय

एक ट्विटर थ्रेड के अनुसार, वाघ बकरी चाय 1980 तक होलसेल और रिटेल में खुली बिकती थी यानी बतौर Loose Tea बिकती थी. मार्केट में ख़ुद को बनाए रखने के लिए कंपनी बोर्ड ने चाय के ब्रैंड में बदलाव करने का निर्णय लिया. गुजरात टी प्रोसर्स ऐंड पैकर्स लिमिटेड (Gujarat Tea Processors And Packers Limited) नाम के नीचे कंपनी ने पैकेजेड चाय बेचना शुरू किया.

इसके बाद कुछ सालों तक ये चाय गुजरात में बेहद मशहूर हुई. 2003 और 2009 के बीच कंपनी ने अन्य राज्यों में भी बिक्री शुरू की.

भारत की पहली पैकेज्ड चाय

Best India Media Info के लेख के अनुसार, वाघ बकरी चाय ने भारत में सबसे पहले पैकेज्ड चाय बेचना शुरू किया. उस दौर में लोग पैकेज्ड और ब्रांडेड चीज़ें नहीं ख़रीदते थे और इस वजह से कंपनी का पूरा नेटवर्क ही ख़त्म हो गया था.

1985 के अहमदाबाद दंगों के बाद लोगों ने पैकेज्ड चाय को अपनाना शुरू किया और माना कि इसकी क्वालिटी ख़राब नहीं होती. धीरे-धीरे लोगों ने पैकेज्ड चाय लेना शुरू किया.

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अलग-अलग राज्यों के लिए अलग स्वाद

वाघ बकरी चाय सिर्फ़ 13 राज्यों (मध्य और पश्चिम भारत) में मिलती है. हर राज्य के ख़रीददारों के लिए अलग ब्लेंड, अलग स्वाद देती है ये कंपनी.

कई तरह के प्रोडक्ट्स शुरू किए

बदलते दौर के साथ वाघ बकरी चाय ने भी कई तरह के प्रोडक्ट्स लॉन्च किए. 1944 में गुड मॉर्निंग टी की शुरुआत हुई, ये सुपर प्रीमियम सेगमेंट की चाय है. वाघ बकरी चाय प्रीमियम सेगमेंट की चाय है और इसकी बिक्री सबसे ज़्यादा होती है. मिली टी मिडल और लोअर सेगमेंट में रखा गया है और कंपनी को इससे 20% रेवेन्यू मिलती है. नवचेतन टी को इकोनॉमी सेगमेंट में रखा गया है.

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भारत की तीसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी

भारत में टाटा टी और HUL चाय की सबसे बड़ी कंपनियां हैं, दोनों के पास 21 प्रतिशत मार्केट वैल्यू है. वाघ बकरी चाय तीसरी सबसे बड़ी कंपनी है. 2009 में इस कंपनी का मार्केट शेयर सिर्फ़ 3% था और 2020 में ये बढ़कर 10% हो गया. गुजरात में इस कंपनी का 50% मार्केट शेयर है.

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40 से ज़्यादा देशों में एक्सपोर्ट

वाघ बकरी चाय के पास कोई चाय बागान नहीं है. ये कंपनी सिर्फ़ पैकेजिंग और प्रोसेसिंग पर ध्यान देती है. इसी वजह से कंपनी पर किसी भी तरह का कोई कर्ज़ नहीं है. ये कंपनी 40 से ज़्यादा देशों में चाय एक्सपोर्ट करती है.

टी लाउंज

चायोस, चाय पॉइंट, चाय चौंतीस आदि टी लाउंज मशहूर है. 2006 में वाघ बकरी चाय ने विले पार्ले, मुंबई में पहला टी लाउंज शुरू किया. कैफ़े कल्चर को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के लाउंज की शुरुआत की गई, जहां कई तरह के फ़्लेवर वाली चाय मिलती है. वाघ बकरी चाय के 15 लाउंज हैं.

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मार्केटिंग के शास्त्र Philip Kotler की किताब में मिली जगह

वाघ बकरी चाय की लिगेसी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मार्केटिंग का शास्त्र कहे जाने वाली Philip Kotler के 14वें एडिशन में इसकी कहानी को जगह दी गई.
लोगों को डायरेक्ट पहुंचने के लिए इस कंपनी ने वेबसाइट भी लॉन्च कर दी है. अगली बार कहीं इस चाय की पैकेट दिखे तो Logo को ग़ौर से देखिएगा और इस कहानी को याद करिएगा.