नीलकमल कंपनी की सफलता की कहानी, बटन बनाने से शुरू हुई और 1800 करोड़ का एम्पायर खड़ा किया

 हर उस मज़बूत चीज़ की तारीफ होती है, जो सालों तक टिकी रहती है। आज हम एक ऐसी ही चीज़ और उसे बनने वाली कंपनी की सफलता की बात करेंगे। कुछ लोग जनता को ऐसी चीज़ मुहैया करवा देते हैं, जो मज़बूती के साथ सालों साल काम देती रहती है। आज हम ऐसे ही एक टिकाऊ फर्नीचर और उसे दुनिया के सामने लाने वालों के बारे में बताने जा रहे हैं।

आज के समय में एक से बढ़कर एक फर्नीचर बाज़ार में आ गए हैं। वे सभी बहुत महंगे भी होने हैं। इसके महंगे होने के अलावा इनकी देखभाल और मरम्मत भी समय समय पर करनी पढ़ती हैं। ऐसे में लोगों की पहली पसंद राज एंड तफ प्लास्टिक कुर्सियाँ (Plastic Charis) ही होती हैं। यह प्लास्टिक की कुर्सियां और टेबल नीलकमल की ही हुआ करती हैं।

नीलकमल कंपनी प्लास्टिक कुर्सियों में सबसे बेस्ट रही

आपको याद होगा, जब प्लास्टिक की कुर्सियों की बात करने पर एक ही नाम सामने आता था, नीलकमल। कुर्सियों की मजबूती वाले पार्ट की बात करें तो नीलकमल कंपनी सबसे बेस्ट रही है। प्लास्टिक की कुर्सियों का व्यापार सबसे पहले नीलकमल ने ही शुरू किया था और लोगो का भरोसा भी जीता।

आजकल बहुत से लोगों ने नीलकमल के नाम पर नकली कुर्सियां भी बाजार में बेचनी चालु कर दी है। कुछ ने नीलकमल के नाम के साथ कुछ हेराफेरी करके वैसी ही कुर्सियां बेचनी चालू कर दी। लेकिन इस नीलकमल ब्रांड की ना ही कोई बराबरी कर पाया और ना ही कट्टर दे पाया।

दशकों पहले बटन बनाने से अपना व्यापार शुरू किया

लोगों का भरोसा जीत कर ब्रांड बन चुकी इस प्लास्टिक कंपनी ने दशकों पहले बटन बनाने से अपना व्यापार शुरू किया था। इस व्यापर को दो भाइयों बृजलाल बंधुओं (Brijlal brothers) ने शुरू किया था। ये दोनों भाई आमदनी और बिजनेस की तलाश में गुजरात से बंबई आए थे। इनका गुजरात में भी एक बिजनेस था, लेकिन इनके एक बिजनेस पार्टनर ने साथ छोड़ दिया था। जिस वजह से दोनों भाइयों को नया बिजनेस शुरू करने के लिए बंबई आना पड़ गया था।

दोनों भाइयों ने थोड़ो रिसर्च के बाद प्लास्टिक के बटन बनाने का कारोबार शुरू करने का फैसला किया। इसके लिए इन्होंने एक मशीन भी खरीदी। कुछ समय काम करने के बाद अहसास हुआ की इस व्यवसाय में लागत अधिक लग रही थी। इनका प्रोडक्ट थोड़ा नया भी था, ऐसे में इसे सही तरीके से बाजार में लाना कड़ी दिक्कत का काम था। सभी मुश्किलों के बावजूद दोनों भाइयों ने इस व्यापार को आगे बढ़ाने का मन बना लिया था।

इन भाइयों को अच्छी तरक्की मिलने लगी

इससे पहले भारत में मेटल अर्थात धातु के बटनों का इस्तेमाल होता था, ये वजन में भारी और महंगे भी थे। बृजलाल बंधुओं के इन प्लास्टिक बटनों ने लोगों को बटन के लिए एक नया और हल्का विकल्प दिया और लोगों ने इसे काफी पसंद भी किया। आगे चलकर उनका बिजनेस सफल होने लगा। इन बटनों के व्यापार में जब इन भाइयों को अच्छी तरक्की मिलने लगी, तो दोनों में और अधिक कॉन्फिडेंस आया और फिर बटनों के व्यापार से आगे बढ़ने के बारे में विचार करने लगे।

दोनों व्यापारियों को भारत के बाअज़र में प्लास्टिक से बने दूसरे प्रोडक्ट भी आने थे। अब सिर्फ प्लास्टिक के बटन ही नहीं, बल्कि घरों में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के अन्य घरेलू सामान जैसे मग और कप भी वे ले आये थे। उनका ये नया काम भी सफल हो गया।

फिर 1964 तक बृजलाल बंधू पूरी तरह से प्लास्टिक के कारोबार (Plastic Business) में उतर चुके थे। उन्होंने पानी स्टोर करने वाले प्लास्टिक के ड्रम भी बनाने शुरू कर दिए थे। बृजलाल बंधू आने वाली पीढ़ी के लिए मजबूत नींव तैयार चुके थे। अब उनके बच्चों को बिजनेस को और आगे बढ़ाना था।बृजलाल बंधुओं के बाद इस प्लास्टिक बिजनेस (Nilkamal Plastics) का जिम्मा उनके बेटों वामन पारेख और शरद पारेख (Vamanrai Parekh and Sharad Parekh) के कन्धों पर आया। उन्होंने 1981 में नीलकमल प्लास्टिक का गठन किया। बता दें की उस वक़्त नीलकमल एक प्लास्टिक निर्माण इकाई थी, जिसे उन्होंने 1970 में खरीदा और नाम का इस्तेमाल करते रहे।

फिर साल 2005 में नीलकमल कंपनी प्लास्टिक फर्नीचर (Nilkamal Plastic Furniture) के क्षेत्र में उतर गई। उन्होंने प्लास्टिक फर्नीचर बनाना चूरू कर दिया और यह सफल रहा। प्लास्टिक बटन के व्यवसाय से शुरू हुई कंपनी को बृजलाल ब्रदर्स के बाद उनके बेटों ने सफलता की नई मंजिल तक पहुँचाया और अब नीलकमल लिमिटेड (Nilkamal Limited) उनके बेटे के बेटे अपने नए जोश के साथ चला रहे है।अब बृजलाल ब्रदर्स के पोते मिहिर पारेख (Mihir Parekh) इस कंपनी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कंपनी ने मार्च 2018 में वित्तीय वर्ष के अंत तक 123 करोड़ रुपये का लाभ और 1,800 करोड़ रुपये का मार्केट कैप दर्ज किया था। कंपनी ने इक्विटी पर 14.5 फीसदी का रिटर्न भी दिया।