आदिवासियों के लिए जंगल उनके घर के समान होता है. वन माफिया इन जंगलों से पेड़ काट कर और जंगली जानवरों को मार कर एक तरह से आदिवासियों के घरों को उजाड़ते हैं. ऐसे स्थिति में हर आदिवासी को कांदोनी सोरेन की तरह बनने की जरूरत है.
झारखंड के जमशेदपुर जिले में शहर से करीब 60 किलोमीटर दूर मुसाबनी प्रखण्ड के पहाड़ों से घिरे एक गांव सड़कघुटू की रहने वाली आदिवासी युवती कांदोनी सोरेन यहां के लोगों के बीच ‘जंगल की शेरनी’ नाम से जानी जाती है. कांदोनी को ये नाम इसलिए मिला है क्योंकि ये एक शेरनी की तरह अपने जंगल की सुरक्षा करती है. कांदोनी को बचपन से ही पेड़ पौधों से प्यार करती आ है. उम्र बढ़ने के साथ साथ जंगल के प्रति इस प्रेम ने कांदोनी को इनका रक्षक बना दिया.
45 महिलाओं की टीम बनाई
इसके बाद कांदोनी ने गांव की अन्य महिलाओ के साथ मिलकर ‘वन सुरक्षा समित’ बनाई और जंगल की रक्षा करने लगी. कांदोनी ने करीब 45 महिलाओं की टीम बनाई है. वह इन सभी महिलाओ के साथ मिलकर करीब 100 हेक्टेयर मे फैले वन क्षेत्र की रक्षा करती हैं. अपनी शारिरिक क्षमता के कारण ही कांदोनी जब चलती है तो लगता है जैसे जंगल में शेरनी चल रही हो. ये हर रोज दूर दूर तक फैले जंगल का भ्रमण करती हैं तथा ये सुनिश्चित करती हैं कि जंगल पर किसी तरह का कोई खतरा तो नहीं मंडरा रहा.
कांदोनी पुलिस में हैं होम गार्ड
जब शुरूआत में कांदोनी ने जंगल की सुरक्षा का जिम्मा उठाया तो उन्हें जंगल के पत्थर और लकड़ी माफियाओं से धमकियां भी मिलीं लेकिन कांदोनी पीछे नहीं हटीं और अपनी जान की परवाह किये बिना वन रक्षा समिति बना कर जंगल की सुरक्षा करती रहीं. बता दें कि आदिवासी युवती कांदोनी सोरेन झारखंड पुलिस में होम गार्ड की नौकरी कर रही हैं.
इनके नाम से कांपता है वन माफिया
ये जंगल कांदोनी के लिए अपने घर जैसा है, तभी तो वह बंद आंखों से भी जंगल के कोने कोने तक पहुंच सकती हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि घने जंगलों में भी कांदोनी की तेजी कम नहीं होती. वह सरलता से पेड़ों और पहाड़ों पर चढ़ सकती है. यही वजह है कि इस शेरनी की दहाड़ से लकड़ी माफिया कांप उठता है. कांदोनी और उनकी टीम खाली हाथ जंगलों की सुरक्षा का जोखिम नहीं उठती. इनके पास तीर-धनुष, कटारी आदि जैसे पारंपरिक हथियार हैं, जिन्हें साथ लेकर ही ये जंगल में निकलती हैं.
कांदोनी का कहना है कि यह जंगल पहले बहुत घना था, लेकिन वन माफिया ने इसे बहुत नुकसान पहुंचाया. अब कांदोनी और उनकी टीम इसे बचाने की हरसंभव सहयोग कर रही है. उनका मानना है कि हम केवल सरकार व सिस्टम के भरोसे पर नहीं बैठे रह सकते. स्थानीय लोगों को भी जंगल के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी.