फिर चुनाव में भिड़ेगें ससुर-दामाद

पिछले चुनाव में ससुर अपने दामाद को चटा चुके हैं धूल 
सोलन : सोलन विधानसभा आरक्षित विधानसभा में चुनाव फिर से रोचक होने वाले हैं। यहां से कांग्रेस के विधायक कनर्ल डॉ. धनीराम शांडिल एक बार फिर से अपने ही दामाद और भाजपा नेता राजेश कश्यप से दो-दो हाथ करने के लिए मैदान में डट गए हैं। शांडिल की बड़ी बेटी के पति और पूर्व में आईजीएमसी में डॉक्टर तैनात रहे राजेश कश्यप को साल 2017 में भाजपा ने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दिला कर चुनाव में उतारा था। इससे पहले राजेश कश्यप के बडे भाई वीरेंद्र कश्यप भाजपा भी सांसद रह चुके हैं और वे भी शांडिल के हाथों चुनाव में मात खा चुके हैं।

साल 2017 के विधानसभा चुनावों में 53750 वोट पड़े थे जिसमें कर्नल शांडिल को 26200 मत मिले, जबकि भाजपा के राजेश कश्यप को 25529 वोट मिले। कर्नल शांडिल 671 के छोटे से मार्जिन से विजयी घोषित हुए थे। अब पांच साल बाद राजनीतिक बिसाल फिर से वैसी ही बिछ चुकी है लेकिन इस बार नये नवेले नेता बने राजेश कश्यप की जगह पांच साल से लोगों के बीच सक्रिय राजेश कश्यप हैं।

राजनीति में भाग्यशाली माने जाने वाले कर्नल शांडिल सांसद रहने के साथ साथ ही पूर्व में मंत्री भी रह चुके हैं। ज्यादा आयु होने के बावजूद कर्नल शांडिल की सक्रियता और उनका जनसम्पर्क शानदार रहा, जिसका फायदा उन्हें चुनावों में मिल सकता है। शांडिल के नेतृत्व में हुए हाल के नगर निगम चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत भी कांग्रेस के हौंसलें बुलंद किए हुए हैं। पिछले दिनों अपने कार्यकाल में करवाए गए कार्यों का ब्यौरा पेश करते हुए शांडिल अपनी जीत के प्रति आश्वस्त दिखे। उनके द्वारा शुरू कराए गए कई काम कई अड़चनों के बाद अब पूरे हुए हैं और कर्नल शांडिल इन कामों का श्रेय भाजपा को नहीं लेने दे रहे। मामला चाहे शामती-बायपास का हो, नए बने ऑडिटोरियम का हो या चंबाघाट के पैदल पथ का शांडिल भाजपा को इन कार्यों को पूरा करने का श्रेय तो नहीं दे रहे उल्टा इनमें देरी के लिए सरकार को कटघरे में खडा कर रहे हैं।

वहीं, दूसरी ओर राजेश कश्यप फिलहाल भाजपा की ही राजनीति में पूरी तरह उलझे हुए हैं। पांच साल तक निर्विवाद रूप से भाजपा के चेहरे के रूप में काम करने के बाद चुनावी बेला में अचानक उन्हें पार्टी के अंदर से ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यहां भाजपा मंडल के कई नेता खुले तौर उन्हें फिर से टिकट देने की खिलाफत कर रहे हैं। हालांकि राजेश कश्यप के राजनीतिक कद और हाईकमान से मिल रहे समर्थन के चलते उनका भाजपा से टिकट तो पार्टी में उनके विरोधी शायद न रोक सकें लेकिन चुनावों में निश्चित ही भाजपा को इस विरोध का नुकसान झेलना पड़ेगा। जाहिर है कि बेहद कम मतों से हारे राजेश कश्यप अपना प्रर्दशन तभी दोहरा सकेंगे यदि वे भाजपा का कुनबा एकसाथ रखने में कामयाब रहे। परिणाम चाहे जो भी आएं लेकिन सोलन में ससुुर दामाद की ये जंग बहुत रोचक रहने वाली है।