भारत के इस राज्य में एक ‘संगीतमय गांव’ है, यहाँ हर बच्चा शास्त्रीय संगीत सीखता है, अध्भुत राग और सुर

 यह दुनिया और हमारा समाज बिना कला के अधूरा है। कला के बहुत रूप है। इन्ही कला के रूपों में से एक संगीत है। संगीत वह मधुर ध्वनि है, जो आपको सुनकर सुकून देती है। वाद्य यंत्रों का आविष्कार कुछ सदियों पहले हुआ है, लेकिन संगीत तभी से है, जब से आदिमानव ने बोलना भी नहीं सीखा था और ना किसी भाषा का अविष्कार हुआ था।

करोड़ो साल पहले आदिमानव मधुर आवाज़ों के माध्यम से ही संपर्क बनाते थे। आज की दुनिया में भले ही संपर्क सड़ने के लिए एक मोबाइल काल करके हेलो बोल दिया जाता है। परन्तु पहले के समय में सुरीली ध्वनि कई काम आती थी।

फिर आधुनिक युग आया और अब के समय में बनने वाले गानों में वो बात नहीं रही है। DJ वाले बाबू मेरा गाना लगा दे, रात अभी बाकि है, पार्टी फुल नाईट। यह कोई संगीत नहीं है। आज म्यूज़िक इंडस्ट्री में संगीत कहीं भी नहीं है।

आज के दौर में शास्त्रीय संगीत, गीत, सांस्कृतिक वादन का क्रेज़ बहुत कम हो गया है, जबकि असली संगीत यही है। शास्त्रीय संगीत में शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या पूरे देश में बहुत ही कम हैं। परन्तु भारत में एक जगह ऐसा है, जहाँ हर बच्चा बोलने से पहले मधुर संगीत सीखता है।

पंजाब के लुधियाना में एक गाँव है, जहां हर बच्चा संगीत, राग और रियाज़ करना सीख लेता है। आज के दौर में बहुत से माता-पिता समझते है कि केवल पढ़-लिखकर ही उनका बच्चा क़ामयाबी की सीढ़ी चढ़ सकता है। जबकि कई बच्चे कला के माध्यम से भी सफलता और कामयाबी हासिल कर रहे हैं।

लुधियाना, पंजाब के पास एक ऐसा गांव हैं, जहां का बच्चा-बच्चा राग और शास्त्रीय संगीत (Indian Classical Music) जानता है। भैनी साहिब (Bhaini Sahib) नाम के इस गांव (Musical Village) में पिछले 100 सालों से एक रिवाज़ चला आ रहा है। यह रिवाज़ संगीत पर आधारित है। यहां के हर बच्चे को संगीत सिखाया जाता है। ये गांव पूरे देश के लिए मिसाल है। यहाँ के बच्चे किसी से कम नहीं है।

पंजाब के भैनी साहिब के रहने वाले लोग अलग अलग काम करते है, परन्तु उनमे एक चीज़ कमान है, और वह है संगीत। वे सभी संगीत की डोर से जुड़े हुए हैं। मीडिया में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भैनी सिहाब के रहने वाले वही लोग अपने अपने कम के अलावा संगीत का रियाज़ भी करते है। राग, वाद्य यंत्रों और शास्त्रीय संगीत के बारे में यहाँ के लोगो को अच्चा खासा घ्यान और इंट्रेस्ट हैं।

 

इस गांव ‘Sri Bhaini Sahib’ के बच्चे स्कूल के बाद, अपने अन्न काम और खेल कूद के बाद वाद्य यंत्र लेकर म्यूज़िक रूम में पहुंच जाते हैं। The Times of India की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये बच्चे संगीत के बड़े-बड़े महारथियों की तस्वीरों के नीचे बैठकर गाना गाना, तबला, सरोद, सिताबर, दिलरूबा आदि बजाना सीखते हैं।

 

अपने संगीत रूम में यहाँ के बच्चे गुरु नानक, श्रीकृष्ण और महापुरुषों की कहानियां सुनते हैं। कुछ सुनना भी एक कला हैं। एक अच्छा वक्ता होने के साथ ही साथ आपको एक अच्छा श्रोता भी होना चाहिए। ये बच्चे बड़े होकर किसी भी फील्ड में काम या जॉब करेंगे, परन्तु उनके जीवन में संगीत ज़रूर रहेगा।

 

गांव के लोगो क कहना है कि बच्चों को संगीत की तालीम देने की रीत एक नामधारी आध्यात्मिक गुरु, सतगुरु प्रताप सिंह ने शुरु की थी। उन्होंने कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि संगीत की खुशबू हर बच्चे को छुए।’ सतगुरु प्रताप सिंह का 1959 में निधन हो गया, लेकिन उनके बेटे सतगुरु जगजीत सिंह ने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए बच्चो को संगीत की शिक्षा देना चालु रखा।