उम्मीद अब भी बाकी है: 40 साल अकेले मेहनत की और बंजर पड़ी ज़मीन को हरा-भरा जंगल बना दिया

कहते हैं अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, लेकिन यहां ये कहावत थोड़ी ग़लत साबित होगी क्योंकि एक व्यक्ति ने अकेले 40 साल मेहनत कर कीचड़ भरी ज़मीन को हरियाली में तब्दील कर दिया. हम बात कर रहे हैं असम के जादव ‘मोलई’ पायेंग (Jadav Molai Payeng) की.

असम के जोराहाट ज़िले में रहने वाली मिशिंग जनजाति से ताल्लुक रखने वाले जादव ने अपनी मेहनत और मज़बूत इरादों से कुछ भी हासिल करने का उदाहरण पेश किया है.

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साल 1979 में आई भीषण बाढ़ के बाद असम में द्वीप के पास बसी अधिकतर ज़मीन की हालत खस्ता हो चुकी थी. यहां बस दूर-दूर तक कीचड़ ही दिखता था. लेकिन 55 साल के जादव ने अपनी मेहनत से इस ज़मीन को एक घने जंगल में तब्दील कर दिया. इस साधारण आदमी के असाधारण सफ़र की शुरुआत तब हुई, जब वह एक दिन ब्रह्मपुत्र नदी स्थित अरुणा सपोरी द्वीप से लौट रहे थे. उस दौरान उन्होंने कक्षा 10 की परीक्षा दी थी. ख़ैर, लौटते समय उन्होंने ज़मीन की ख़राब अवस्था पर नज़र पड़ी. वहां सैकड़ों सांप बेजान पड़े हुए. इस घटना ने उन पर गहरा असर डाला. 

रिपोर्ट के मुताबिक, एक दफा आसपास के कुछ लोगों से जादव ने सांप की तरह इंसानों के भी मर जाने की बात किया. उस दौरान तो जादव की बात को लोगों ने हंसते हुए टाल दिया, लेकिन जादव ने भूमि को हरा-भरा बनाने की ठान ली.

इसके लिए उन्होंने गांव वालों से बात करनी शुरू की और उन्होंने जादव को पेड़ उगाने समेत 50 बीज और 25 बांस के पौधे दिए. उनके बीजारोपण के बाद उन्होंने उन पौधों की देखभाल की. तब से लेकर आज का दिन है कि अब यह जगह एक घना जंगल बन चुकी हुई. पिछले तीन दशक से भी ज्यादा उन्होंने इस जंगल की देख-रेख की है. 

जोराहाट में कोकिलामुख के पास के मौजूद इस जंगल का नाम उन्ही के नाम पर रखा गया है “मोलई फॉरेस्ट”. आज यह जंगल सैकड़ों जीव-जंतुओं का घर है.जादव के मुताबिक, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी एक छोटी सी पहल एक दिन इतना बड़ा परिवर्तन लाएगी.’