मृत्यु से भय नहीं होना चाहिए क्योंकि मृत्यु निद्रा जैसी है, ये शरीर का अंत तो है लेकिन आत्मा का नहीं….

मृ्त्यु अंत नहीं है....

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मृ्त्यु अंत नहीं है….

मृत्यु को अंत समझने वाले लोग इसे दुख के भाव में देखते हैं लेकिन जो लोग सच की अनुभूति कर चुके हैं उनके लिए ये उल्लास और हर्ष का विषय है। मृत्यु एक स्वतंत्रता है जो आत्मा को मिलती है इस नश्वर संसार से।

आत्मा का वर्णन

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आत्मा का वर्णन

मृत्यु के बाद आत्मा हर बंधन से मुक्त हो जाती है। बड़े-बड़े योगियों, आध्यात्मिक गुरुओं और कई धर्म ग्रंथों में आत्मा का वर्णन किया गया है। खुद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर और अमर होने की बात कही है। मृत्यु के पहले कुछ सेकेंड में भय का भाव होता है। अज्ञात का भय, चेतना के लिए कुछ अपरिचित जैसा होता है लेकिन उसके बाद एक महान अनुभूति होती है। आत्मा को राहत और स्वतंत्रता का आनंदमय अनुभव होता है। आप जानते हैं कि आप नश्वर शरीर से अलग हैं।

जो आया है उसे जाना है...

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जो आया है उसे जाना है…

हम सभी एक ना एक दिन मृत्यु का सामना करेंगे क्योंकि जो आया है उसका जाना जरूरी है तो फिर इस मृत्यु से डरना क्यों है? कई लोग इस डर को आफ्टर लाइफ यानि मृत्यु के बाद के जीवन से जोड़ते हैं, कि ना जाने कहां जाएंगे मृत्यु के बाद, कौन सा जन्म लेंगे…..आदि….

नींद जैसी है मृत्यु

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नींद जैसी है मृत्यु

मृत्यु के बाद आप कुछ महसूस नहीं करेंगे। आप नींद में अपने शरीर की चेतना खोने की संभावना से दुखी नहीं होते। आप एक नया रास्ता देखने के लिए इस नींद को आजादी के रूप में स्वीकार करते हैं। यह आराम की अवस्था है, यह जीवन की पेंशन है। इसमें डरने की कोई बात नहीं है क्योकि मृत्यु के बाद ना तो आपको सांसारिक भोग याद रहेंगे और ना ही रिश्ते। छूट जाने का डर सिर्फ तब तक होता है जब तक आपकी चेतना हो, यादें हों।

शरीर छोड़ती है आत्मा...

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शरीर छोड़ती है आत्मा…

जिस तरह लहरें समंदर से किनारे पर आती हैं और वापस समंदर में लौट जाती हैं उसी तरह आत्मा बस शरीर त्यागती है, वो नष्ट नहीं होती। मृत्यु उस निद्रा की तरह है जिसकी अवधि भले ही ज्यादा हो लेकिन ये अंत की शुरुआत नहीं है।

मृत्यु का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

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मृत्यु का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो पदार्थ का एक कण या ऊर्जा की एक लहर भी अविनाशी है। जैसा कि विज्ञान ने सिद्ध किया है कि मनुष्य की आत्मा या आध्यात्मिक सार भी अविनाशी है। जिस प्रकार पदार्थ या मैटर परिवर्तन से गुजरता है उसी प्रकार आत्मा भी बदलते अनुभवों से गुजरती है। मौलिक परिवर्तनों को ही मृत्यु कहा जाता है लेकिन म-त्यु आपके आध्यात्मिक सार को कभी खत्म नहीं करती। ये आध्यात्मिक सार आपकी आत्मा के अंदर समाहित हमेशा रहता है।

आध्यात्मिक दृष्टि से मृत्यु

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आध्यात्मिक दृष्टि से मृत्यु

आध्यात्मिक दृष्टि में मृत्यु तब नहीं होती जब कोई बीमार हो जाता है या अचानक उसका एक्सीडेंट हो जाता है या उसकी कुंडली में इतनी ही उम्र लिखी थी। ये सब बातें आध्यात्मिकता से बहुत परे हैं। आध्यात्मिक स्तर पर मृत्यु एक अस्थायी मुक्ति है। ये अंत नहीं है। ये आपको तब दी जाती है जब कर्म और न्याय का नियम यह तय करता है कि आपके मौजूदा शरीर ने अपना उद्देश्य पूरा कर लिया है। या फिर जब आप अपने शारीरिक अस्तित्व को सहन करने के लिए बहुत थक गए हैं। जो लोग वर्तमान जन्म में बहुत पीड़ित हैं उनके लिए मृत्यु जागृत शांति और सांसारिक यातनाओं से पुनरुत्थान है।

आध्यात्मिक दृष्टि से मृत्यु

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आध्यात्मिक दृष्टि से मृत्यु

आपने देखा होगा कि बुजुर्गों की मृत्यु के बाद कई परिवारों में बड़े स्तर पर भोज का आयोजन होता है। जोर-जोर से रोने, चिल्लाने की जगह लोग हर्ष मनाते हैं कि घर के बुजुर्ग को मुक्ति मिली। वास्तव में बुजुर्गों के लिए मृत्यु जीवन भर चले संघर्ष के बाद अर्जित पेंशन है। मृत्यु एक योग विश्राम है जिसका जश्न मनाना चाहिए।

मृत्यु और भगवान की क्रूरता

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मृत्यु और भगवान की क्रूरता

कई बार ऐसा होता है कि हम जब किसी युवा या किसी नन्हे से बच्चे की मृत्यु देखते हैं तो दिल दुख और गुस्से से भर जाता है। हम भगवान को कोसने लगते हैं कि ये कैसा न्याय है। कई दफा ऐसा भी होता है कि किसी बहुत अच्छे कर्मों वाले व्यक्ति की अचानक मौत हो जाती है तब हमें लगता है कि ये कर्मों का सिद्धांत फेल है। हमें ईश्वर की योजना उसके प्लान क्रूर लगने लगते हैं। कई बार तो हम ईश्वर से इतना गुस्सा हो जाते हैं कि नास्तिकता की ओर चल पड़ते हैं। हम तब कल्पना भी नहीं कर पाते कि ईश्वर दयालु हैं। लेकिन जैसे ही आप ज्ञान की दृष्टि से मृत्यु को देखते हैं तो आपको दिखता है कि मृत्यु सिर्फ सांसारिक भोग से छुटकारा है। आध्यात्मिक लोग इसे उत्सव की तरह मानते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि ये सिर्फ शरीर का अंत है, आत्मा तो अजर, अमर है….