बेटे का शव लाने के नहीं थे पैसे, पुतला बनाकर किया अंतिम संस्कार, मां-बाप नहीं कर पाए अंतिम दर्शन

वैसे तो समय की मार हर किसी को झेलनी पड़ती है, लोगों के बेहद करीबी भी अचानक से इस दुनिया को अलविदा कह जाते हैं. ज़िंदगी और मौत भले ही हमारे हाथ में नहीं है लेकिन अपने किसी बेहद करीबी को अंतिम विदाई देना तो हर किसी के हाथ में है. हालांकि गरीबी इतनी ज़ालिम होती है कि कई बार लोगों से ये अधिकार भी छीन लेती है.

नहीं देख सके आखिरी बार बेटे का मुंह

औरंगाबाद के नबीनगर प्रखंड की रामपुर पंचायत के शिवपुर गांव निवासी सुरेंद्र भगत और उनके पिता इंद्रदेव भगत को भी इस गरीबी ने इतना बेबस बना दिया कि ये आखिरी बार अपने घर के लाल का चेहरा तक नहीं देख पाए. इनका परिवार तीन दिनों से रो-रोकर बेहोश हो रहा है. जब इन्हें होश आया तो ये सुरेंद्र अपने 20 वर्षीय बेटे अंकित कुमार की तलाश में लग गए. बेटे का पता भी चला लेकिन तब तक सब खत्म हो चुका था. बेटे की मौत हो चुकी थी लेकिन इस पर भी बड़ा दुख ये रहा कि परिवार को बेटे का अंतिम संस्कार करने तक का मौका नहीं मिला.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार तीन मई को तेलंगाना के जगदलपुर स्थित जंगली इलाके में पेड़ से अंकित का शव लटकता मिला. एक तो बेटे को खोने का दुख और ऊपर से गरीबी के कारण ये परिवार अपने बेटे का शव औरंगाबाद के पैतृक गांव लाने में सक्षम नहीं हो सका. अंकित के साथ रहने वाले बहनोई राजन भगत ने अगले दिन शव को वहीं दफना दिया. मजबूरी में परिवार वालों को गांव में गुरुवार को अंकित का पुतला बना उसका दाह संस्कार करना पड़ा. हालत यह है कि परिवार के पास अब ब्रह्मभोज कराने के लिए भी पैसे नहीं हैं.

तेलंगाना के जंगल में हुई थी हत्या

अंकित के पिता सुरेंद्र, दादा इंद्रदेव और मां गुड्डी देवी का रो रो कर बुरा हाल है. परिवार ने इस संबंध में बताया कि वे बेटे को आखिरी बार देख भी नहीं सके. बताया जा रहा है कि तेलंगाना के जगदलपुर जिले के बेलकाटूर जंगल में उसकी हत्या कर दी गई थी. 20 दिन पहले ही वह घर से अपने बहनोई रंजन भगत के साथ तेलंगाना गया था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अंकित की हत्या करंट लगाकर या तेजाब से जलाकर की गई है.

गरीबी के कारण पुतला बना कर किया अंतिम संस्कार

Coimbatore Woman Police Constable Cremates Unclaimed Bodies, Gets Honoured Representational Image/ Unsplash

परिवार के मुताबिक, अंकित के भाई रोहित कुमार ने पुतला बनाकर अंकित का अंतिम संस्कार किया. तेलंगाना से अंकित के बहनोई रंजन ने फोन पर बताया कि जंगल में पेड़ से लटके मिले शव को पुलिस ने अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम कराया और उन्हें सौंप दिया. उन्होंने अपने ससुर सुरेंद्र भगत को इस घटना की जानकारी दी और अंकित के शव को दफनाने की आज्ञा मांगी. जिसके बाद मजबूरी में सुरेंद्र भगत को ऐसा करने के लिए हामी भरणी पड़ी.

बताया जा रहा है कि शव लाने में 50 से 60 हजार रुपये खर्च होने थे. घर की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि परिवार इतने पैसे लगाने में सक्षम नहीं था. अंत में गरीबी की बेड़ियों में जकड़े हुए इस परिवार मे बेटे के शव को वहीं दफनाने की मंजूरी दे दी. पीड़ित परिवार को अब तक मुआवजा या मदद नहीं मिली है.

परिजनों ने सामाजिक सुरक्षा योजना से भी कोई राशि नहीं मिली है. शव नहीं आने के कारण मुखिया कौशल सिंह ने कबीर अंत्येष्टि योजना के तहत तीन हजार रुपये नहीं दिए. हालांकि, नबीनगर के प्रखंड विकास पदाधिकारी देवानंद कुमार सिंह ने कहा है कि तत्काल इस परिवार को पारिवारिक लाभ योजना से 20 हजार रुपये दिए जाएंगे. साथ ही श्रम विभाग से एक लाख रुपये की मदद दिलाई जाएगी.