उज्बेकिस्तान की वैधशाला के एक शिलालेख में जयपुर के राजा सवाई जयसिंह को मुगलों का नौकर बताया गया है। इस पर राजस्थान में इतिहास के प्रोफेसर डॉ. जयन्ती लाल खंडेवाल ने कई तथ्य पेश करते हुए खारिज कर दिया। जयन्ती लाल खंडेवाल ने समरकंद की वैधशाला में लगे शिलालेख को झूठा करार दिया।
जयपुर: राजघराने के पूर्व महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय के बारे में समरकंद की वैधशाला में लगे विवादित शीलालेख पर इतिहासकार भी हैरान हैं। राजस्थान के इतिहासकारों का कहना है कि समरकंद की वैधशाला में लगे शीलालेख में जयपुर के पूर्व महाराजा के बारे गलत टिप्पणियां की गई है। सवाई जयसिंह ने एक समझौते के तहत मुगलों से मिलकर शासन किया था। इसमें नौकर जैसी कोई बात नहीं थी। इसके बावजूद समरकंद की वैधशाला में नौकर होने का उल्लेख कर दिया गया। राजस्थान में इतिहास के प्रोफेसर डॉ. जयन्ती लाल खंडेवाल ने कई तथ्य पेश किए हैं। इन तथ्यों के अनुसार, वे यह साबित कर रहे हैं कि समरकंद के शिलालेख में अगर सवाई जयसिंह को नौकर बताया गया है, तो यह शिलालेख ही झूठा है।
इतिहास के प्रोफेसर डॉ जयन्तीलाल खंडेलवाल ने पेश किए ये तथ्य
राजस्थान के इतिहास के प्रोफेसर डॉ. जयन्तीलाल खंडेलवाल बताते हैं कि कछवाह और मुगलों के बीच एक समय विशेष में ‘राजनैतिक गठबंधन’ हुआ था। दोनों राजनैतिक ताकत थे। कोई किसी के अधीन नहीं था। कछवाह अपने आंतरिक मामलों में स्वतंत्र थे। यह बात सही है कि मुगल, राजपूतों के सहयोग से आगे बढ़े थे। खंडेलवाल का कहना है कि सवाई जयसिंह (1700ई. से 1743ई.) के समय मुगल राजनैतिक रूप से कमजोर हो गए थे। लगभग 40 वर्षों के काल खंड में 6-7 मुगल शासक बदल गए थे। वे राजनीतिक रूप से अस्थिर और कमजोर हो गए थे। फिर वे किसी राजपूत शक्ति को अपने अधीन या नौकर के रूप में कैसे रख सकते थे। मुहम्मद शाह अपनी आदतों से रंगीला उपनाम से जाना जाता था। इससे उसके कमजोर व्यक्तित्व को समझा जा सकता है। किसी राजनीतिक सहयोगियों को नौकर कहना दिवालियापन है। सवाई जयसिंह को नौकर बताना मुर्खता है।
भाषा और गणना के आधार पर ही समरकंद का शिलालेख झूठा
डॉ. जयन्ती लाल बताते हैं कि समरकंद का शिलालेख अंग्रेजी में लिखा हुआ है। इससे साफ जाहिर होता है कि यह शिलालेख बहुत बाद में लिखा गया है क्योंकि तत्कालीन समय में अगर कोई शिलालेख लिखा जाता तो अरबी या फारसी भाषा में लिखा होता। सवाई जयसिंह स्वयं खलोगविद थे। उन्होंने देश में 5 वैध शालाएं स्थापित की, जो दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, वााराणसी और मथुरा में स्थापित है। इन वैधशालाओं की रचना सूर्य सिद्धांत पर आधारित है। उन्होंने स्वयं के विवेक और बुद्धिमता के चलते इनका निर्माण किया। यह किसी की नकल नहीं है। आर्यभट्ट ने 5वीं शताब्दी में समय गणना का फॉर्मूला बताया था, जो खगोलशास्त्र की सनातन परम्परा को बढ़ा रहे थे। उस समय मुगल शासक थे ही नहीं। डॉ. जयन्तीलाल खंडेलवाल का कहना है कि बाबर 500 वर्ष पहले हुआ करता था और समय की गणना सूर्य के सिद्धांत के फॉर्मूल के आधार पर एक हजार साल पहले ही हो गई थी। इससे साफ जाहिर होता है कि समरकंद के शिलालेख में किया गया उल्लेख पूर्णत असत्य है।
सांसद दीया कुमारी ने केन्द्र सरकार से किया आग्रह, त्रुटि में सुधार कराएं
पूर्व राजपरिवार की सदस्य और भाजपा सांसद दीया कुमारी ने भी समरकंद के शिलालेख में उल्लेखित तथ्यों का विरोध किया है। उन्होंने केन्द्र सरकार को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि विवादित तथ्यों को हटाने के लिए एक्शन लिया जाए। उज्जबेकिस्तान सरकार को इसके बारे में पत्र लिखा जाना चाहिए। विवादित उल्लेख से राजस्थान के राजपूतों में गहरा रोष है। दीया कुमारी ने कहा कि विवादित उल्लेख से राजपूतों की भावना को बड़ा आघात लगा है। जो राजा इतने विद्वान थे और सालों तक प्रजा के हित के लिए कार्य करते रहे। उनके बारे में ऐसी टिप्पणियां करना अशोभनीय है। उन्होंने केन्द्रीय मंत्री को पत्र लिखकर आपत्ति जताई है।