महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल खुलकर बोलने के लिए मशहूर हैं.
जब महाराष्ट्र का सत्तारूढ़ गठबंधन, महाविकास अघाड़ी में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था, तब भी वे हर हफ़्ते भविष्यवाणी कर रहे थे कि सरकार जल्द ही गिर जाएगी.
लेकिन अब जबकि सरकार लगभग लड़खड़ा गई है तो चंद्रकांत पाटिल कुछ नहीं बोल रहे हैं.
जब पत्रकारों ने महाराष्ट्र में सियासी उठापटक पर उनसे सवाल पूछा, तो उन्होंने कहा, ” एकनाथ शिंदे की बग़ावत शिव सेना का अंदरूनी मामला है.”
पर क्या ये वाक़ई ‘शिवसेना का अंदरूनी मामला’ है? या इस बग़ावत का रिमोट कंट्रोल बीजेपी के पास है?
और अगर ये भाजपा नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का ‘ऑपरेशन लोटस’ है तो बीजेपी इस पर खुलकर सामने क्यों नहीं आ रही है? ऐसे सवाल उठना लाज़िमी है.
पिछले ढाई साल में शिव सेना के भीतर दरारें गहराती जा रही हैं. इस दौरान पार्टी के कई बड़े नेता नाराज़ हुए हैं. ऐसा कहा जाता है कि उद्धव ठाकरे तक पहुँचना, उनकी पार्टी के विधायकों के लिए भी मुश्किल होता है.
और अपने क्षेत्र के छोटे-मोटे काम नहीं हो पाने की वजह से शिव सेना के कुछ पार्टी पदाधिकारी नाराज़ हैं. शायद सबसे अहम बात ये है कि कांग्रेस के साथ ‘धर्मनिरपेक्ष’ सरकार में होने से कट्टर भगवा शिव सैनिकों में असंतोष और कड़वाहट है.
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ड्रामा क्वीन
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शिव सेना में पनप रहे इस असंतोष का अगर विपक्ष फ़ायदा नहीं उठाता तो ज़्यादा हैरानी होती. पिछले विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी के महत्वाकांक्षी नेता देवेंद्र फडणवीस ने आनन-फ़ानन में राष्ट्रवादी कांग्रेस के बड़े नेता अजित पवार के साथ सुबह-सुबह सीएम की शपथ ली थी, लेकिन वो सरकार कुछ साठ घंटों में ही गिर गई.
इससे फडणवीस बेहद आहत थे. वे सत्ता के मोह में आकर ऐसा कर बैठे, ऐसी उनकी छवि बन गई थी. अब शायद वो ये छवि नहीं बनाना चाहते कि उन्हें सत्ता में लौटने की जल्दबाज़ी है.
शायद यही कारण है कि अब अगर एक और ‘ऑपरेशन लोटस’ को अंजाम देने की योजना बीजेपी की है, तो इस बार वो कड़ी सावधानी बरत रहें हैं कि ऑपरेशन के दौरान सर्जन के हाथ में चाकू या कैंची ना दिखाई दे.
देवेंद्र फडणवीस लगभग डेढ़ साल से कहते आ रहे हैं कि महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की ये गठबंधन सरकार आंतरिक विरोध के कारण गिर जाएगी. और अब जब सरकार लड़खड़ा रही है तो बीजेपी नेता कह रहे हैं कि ये शिव सेना का आंतरिक मामला है.
लेकिन ग़ौर से देखें तो इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि एकनाथ शिंदे के हाथ में बग़ावत का झंडा बीजेपी ने ही थमाया है.
इस विद्रोह के ऑपरेशन लोटस होने के पाँच स्पष्ट संकेत देखे जा सकते हैं…
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1.एयरपोर्ट पर मोहित कंबोज की मौजूदगी
मोहित कंबोज मुंबई में भारतीय जनता पार्टी का जाना-माना चेहरा हैं. कंबोज सूरत हवाई अड्डे पर शिव सेना विधायकों को विमान में बिठाते देखे गए थे. अगर ये शिव सेना का अंदरूनी मामला है तो कंबोज, शिव सेना के बाग़ी विधायकों की मदद के लिए वहाँ कैसे और क्यों पहुँचे? और एक सवाल ये भी है कि फाइव स्टार होटल और फ्लाइट किसने बुक करवाई?
मोहित कंबोज मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. वह एक अमीर जौहरी है. साल 2014 में बीजेपी ने उन्हें मुंबई की डिंडोशी सीट से टिकट दिया था. उस वक़्त उन्होंने चुनाव आयोग को दिए हलफ़नामे में कहा गया था कि उनके पास ढाई सौ करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है. कई पुराने नेताओं को हराकर कंबोज को टिकट कैसे मिला, इसकी काफ़ी चर्चा भी हुई.
चुनाव हारने के बावजूद पार्टी में उनका रुतबा कम नहीं हुआ. मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने उनके ख़िलाफ़ केस भी किया है लेकिन कंबोज का कहना है कि उन्होंने कोई वित्तीय घोटाला नहीं किया है.
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2. शिंदे के साथ संजय कुटे
डॉ संजय कुटे बीजेपी के युवा नेता हैं. उनकी हालिया पहचान देवेंद्र फडणवीस के विश्वासपात्र के रूप में है. शिव सेना के बाग़ी विधायक जब सूरत गए तो वहाँ सबसे पहले संजय कुटे पहुँचे. उद्धव ठाकरे के प्रतिनिधि मिलिंद नार्वेकर सूरत के होटल में पहुँचने से पहले ही, संजय कुटे ने एकनाथ शिंदे से मुलाक़ात की थी. वो केवल विधायकों से मिले ही नहीं बल्कि वहीं जमे रहे.
और जब सेना के विद्रोही विधायक गुवाहाटी पहुँचे तो कुटे भी वहाँ मौजूद थे. असेंबली में देवेंद्र फडणवीस की पिछली बेंच पर बैठने वाले डॉ. संजय कुटे राजनीतिक हलकों में काफ़ी मशहूर हैं. हाल ही में हुए राज्यसभा और विधान परिषद चुनावों के दौरान डॉ. संजय कुटे ने पोलिंग एजेंट के तौर पर काम किया था.
3. बीजेपी शासित राज्यों में विधायक
शिव सेना के बाग़ी विधायक अगर सिर्फ़ अपने नेता से नाराज़ होते तो फ़ोन बंद कर महाराष्ट्र में कहीं भी बैठकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर सकते थे. महाराष्ट्र के भीतर छिपने के लिए हज़ारों होटल हैं. इससे पहले अजित पवार या किसी अन्य नेता को ग़ुस्सा आया तो उन्होंने राज्य में कहीं जाकर, अपने फ़ोन बंद कर दिए थे.
लेकिन एकनाथ शिंदे ने ऐसा नहीं किया. वे लोनावला या मुलशी नहीं गए. उन्होंने महाराष्ट्र की सरहद पार की और गुजरात गए. गुजरात महज़ भाजपा शासित राज्य नहीं है, ये मोदी-शाह का गढ़ है. ये साफ़ दिख रहा था कि वे गुजरात पुलिस के संरक्षण में वहां रुके हुए थे.
उसके बाद तमाम विधायक एक अन्य भाजपा शासित राज्य, असम चले गए. वहाँ भी उन्हें स्थानीय पुलिस का संरक्षण मिला हुआ है. अगर यह सेना की अंदरूनी नाराज़गी थी तो ये मराठी विधायक हज़ारों मील दूर गुवाहाटी क्यों जाएंगे? भाजपा की मदद के बिना ये सब संभव नहीं होता.
4. एकनाथ शिंदे की मांग
एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से जो मांग की, वो ख़ुद की नाराज़गी के बारे में नहीं थी. वह भाजपा के साथ गठबंधन करना चाहते हैं. अगर शिंदे सच में उद्धव ठाकरे से नाराज़ होते तो वे उनके सामने अपनी शिकायत रखते, भाजपा के साथ जाने की बात नहीं करते.
बीजेपी से नाता तोड़कर उद्धव ठाकरे ने महाविकास अघाड़ी के गठन में अहम भूमिका निभाई थी. और वे ख़ुद मुख्यमंत्री बने. बीते ढाई सालों में उद्धव ठाकरे और बीजेपी ने एक दूसरे की ख़ूब आलोचना की है. एकनाथ शिंदे को पता था कि इसके बाद उद्धव ठाकरे दोबारा बीजेपी के साथ नहीं जा पाएंगे.
लेकिन फिर भी वे ऐसी मांग क्यों कर रहे हैं? अगर उद्धव ठाकरे उनकी बात मान लेते तो इसका सीधा फ़ायदा बीजेपी और फडणवीस को होता. उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री पद चला जाता और यह भार फडणवीस के कंधों पर पड़ता.
अगर शिंदे शिव सेना नहीं छोड़ना चाहते, तो उन्होंने दूसरी पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री पद देने की अजीबोगरीब मांग नहीं की होती.
5. एकनाथ शिंदे की भाषा
इस सकंट के दौरान एकनाथ शिंदे की भाषा को क़रीब से देखने पर पता चलता है कि वह भाजपा की भाषा में बोल रहे हैं. “सत्ता के लिए बाला साहेब के हिंदुत्व को छोड़ना ठीक नहीं है.” यह वाक्य फडणवीस, चंद्रकांत पाटिल और भाजपा के कई प्रवक्ता पहले भी कई बार बोल चुके हैं.
भाजपा ने शिव सेना से नाता तोड़ा, लेकिन बाला साहेब के उत्तराधिकारी होने का भी दावा किया. जब से शिव सेना कांग्रेस-एनसीपी के साथ गई थी, फडणवीस बार-बार कह चुके थे कि उद्धव ठाकरे ने सत्ता के लिए बाला साहेब के हिंदुत्व के साथ समझौता किया है.
एकनाथ शिंदे अब यही कह रहे हैं. शिंदे उद्धव ठाकरे का नाम नहीं ले रहे हैं लेकिन वे परोक्ष रूप से कह रहे हैं कि उद्धव ठाकरे ने सत्ता के लिए ‘बाला साहेब के हिंदुत्व’ को त्याग दिया है.
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इसलिए बीजेपी शिंदे गुट से जितनी भी दूरी बनाए रखे और कहे कि सेना अपनी हरकतों की वजह से संकट में, ये सच है कि भाजपा ने शिव सेना के घर में जलते अंगारों को हवा देने का काम किया है.
अब ऐसा लग रहा है कि शिंदे समूह में शिव सेना के क़रीब 40 विधायक शामिल हो गए हैं. हमें जानकारी मिली है कि बीजेपी ने शिंदे को उपमुख्यमंत्री पद की पेशकश भी की है. अगर जल्द ही शिंदे और फडणवीस सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे को गले लगाते नजर आएं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.