राम भक्त हनुमान
अपने भक्तों के बीच बजरंगबली, अंजनी पुत्र, पवन पुत्र के नाम से प्रसिद्ध हनुमानजी के एक नहीं कई रूप हैं। हनुमान जी के भक्तों ने उनके हर स्वरूप को एक अलग नाम दिया है, जिनमें से सबसे ज्यादा प्रचलित है राम भक्त हनुमान। भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाने वाले श्रीराम के प्रिय भक्त थे हनुमानजी।
श्रीराम और मां सीता की सेवा
हनुमानजी ने शायद अपनी ज़िंदगी का एक बड़ा हिस्सा अपने प्रभु श्रीराम और उनकी पत्नी, मां सीता की सेवा में समर्पित किया है। हनुमानजी के भक्त भी उन्हें सबसे ज्यादा श्रीराम के सेवक के रूप में ही जानते हैं। मंदिरों में भी हनुमानजी को श्रीराम, सीता और लक्ष्मणजी की मूर्ति के पास बैठे हनुमानजी को उनके सेवक के रूप में दिखाया जाता है।
हनुमानजी की पहचान
श्रीराम का भक्त होना, हनुमानजी की सबसे बड़ी पहचान है। भगवान विष्णु द्वारा अपने मानवीय अवतार श्रीराम का धरती पर समय पूरा करने के बाद ही हनुमानजी ने अयोध्या छोड़ी थी। अंतिम समय तक वे अपने प्रभु के चरणों में ही रहे।
क्या मकसद था?
वह भी किसी साधारण कारण से नहीं, बल्कि उनका अमेरिका जाने के पीछे के गहरा मकसद भी था। वे उस समय जहां गए थे, उस जगह को आज महान वैज्ञानिको तथा शोधकर्ताओं द्वारा गंभीर रूप से ढूंढ़ा जा रहा है, लेकिन ना चाहते हुए भी कुछ मिल नहीं पा रहा है। अभी तक जो कुछ भी शोधकर्ताओं को हासिल हुआ है वह कुछ धुंधले तथ्य हैं।
थियोडर मॉर्ड की खोज
12 जुलाई 1940 का दिन, जब एक साहसिक खोजी थिएडॉर मॉर्ड, मध्य अमेरिका के जंगलों से होकर वापस आए थे। जिन तथ्यों तथा कहानियों के साथ वह लौटे थे उन्हें जानकर सभी वैज्ञानिक हैरान हो गए।
बंदर जैसा दिखने वाला भगवान
मॉर्ड का कहना था कि उन्होंने एक ऐसा कबीला या फिर एक गांव जैसा दिखने वाला शहर ढूंढ़ निकाला था जहां का देवता एक ‘बंदर जैसा दिखने वाला’ इंसान था।
लॉस्ट सिटी ऑफ मन्की गॉड
मॉर्ड के मुताबिक उस जगह का नाम ‘लॉस्ट सिटी ऑफ मन्की गॉड’ है। विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा पिछले ना जाने कितने ही सालों से ‘ला क्यूडिआड ब्लान्का’ नाम की जगह को खोजा जा रहा था, लेकिन मॉर्ड की खोज ने उन्हें एक नया मोड़ दिया है।
मध्य अमेरिका का मसक्यूशिया क्षेत्र
मॉर्ड की मानें तो मध्य अमेरिका के मसक्यूशिया, वर्षा जंगलों में करीब 32,000 वर्ग मील में फैली एक ऐसी जगह है जो लोगों की नज़रों से छिपी हुई है। इस जगह को खोजने के लिए वह केवल अपने एक साथी लॉरेन्स के साथ 4-5 महीनों तक उन जंगलों में भटकता रहा।
दि व्हाइट सिटी
और तब मिली उन्हें ऐसी जगह जहां की दीवारें कोई आम पत्थर से नहीं बल्कि सफेद संगमरमर के पत्थरों से बनी हुई थी। शायद यहीं कारण है कि वैज्ञानिकों ने इस जगह को ‘दि व्हाइट सिटी’ का नाम भी दिया है।
क्या है इतिहास?
उस जगह को देखकर ऐसा लगा कि मानो यहां कोई बड़ा साम्राज्य जरूर किसी समय रहता होगा, उस शहर के चारों ओर उन सफेद दीवारों का घेरा था। कुछ लोगों से पूछताछ करने पर मॉर्ड को पता लगा कि यहां कोई ऐसी प्रजाति रहा करती थी जिनका देवता एक बंदर की भांति दिखने वाला मानव था।
कौन था उनका देवता?
वह ना तो पूरी तरह से मानव था और ना ही पूर्ण रूप से बंदर। लोगों का मानना है कि शायद आज भी उस विशाल बंदर की कोई मूर्ति वहां की जमीन के नीचे दबी हुई है।
उनका संधर्ष
स्थानीय जनसंख्या के अनुसार वहां रहने वाले लोगों द्वारा उस स्थान और अपने प्रभु को पाने के लिए कई तरह के युद्ध भी लड़े गए थे और युद्ध जीतने के बाद रिवाज़ के रूप में उन्होंने उन मृत शवों को ग्रहण भी किया था। यह सुनने में बेहद अटपटा लगता है लेकिन सच में उस समय वहां क्या हुआ था यह कोई नहीं जानता।
रामायण में उल्लेख
मॉर्ड द्वारा जिस जगह की खोज की गई थी, ठीक उसी जगह का उल्लेख रामायण में हजारों वर्षों पहले किया गया था। रामायण के किष्किंधा कांड के मुताबिक हनुमानजी एक समय पर मध्य अमेरिका जरूर गए थे। हनुमानजी हिन्दू धर्म से संबंधित ऐसे भगवान हैं जिनका शरीर देखने में तो बिल्कुल एक बंदर की भांति थे, लेकिन उनकी चाल-ढाल तथा वाणी इंसानों वाली ही थी।
हनुमानजी पाताल लोक गए थे
रामायण में मौजूद इस अध्याय के मुताबिक एक बार हनुमानजी पाताल लोक की ओर रवाना हुए। वर्तमान में पाताल लोक को मध्य अमेरिका तथा ब्राजील का हिस्सा ही माना जाता है। क्योंकि यह पृथ्वी के ग्लोब के आधार पर भारत देश से बिल्कुल उल्टी दिशा में पड़ता है, जो जमीन से काफी नीचे है। इसीलिए इसे पाताल लोक माना गया था।
अपने पुत्र से मिलने
इस अध्याय के अनुसार एक बार हनुमानजी अपने पुत्र मकरध्वज से मिलने पाताल लोक गए थे, जो हूबहू भगवान हनुमान की तरह ही दिखते थे। पाताल लोक पहुंचने पर हनुमानजी का पाताल के राजा से भीषण युद्ध हुआ, जिसमें पाताल लोक का राजा मारा गया और हनुमान जी ने अंत में पाताल लोक को अपने पुत्र के नाम घोषित कर दिया।
पुत्र को राजा बनाया
राजा बनने के बाद वहां के सभी लोग मकरध्वज को अपना भगवान मानकर उनकी पूजा करने लगे। यह एक कारण हो सकता है कि क्यों मॉर्ड द्वारा खोजी हुई उस जगह पर लोगों द्वारा एक बंदर जैसे दिखने वाले जीव की पूजा की जाती थी।
क्या है समानता
हो सकता है कि मॉर्ड द्वारा खोजे गए शहर के वासियों का देवता और भगवान हनुमानजी के पुत्र मकरध्वज एक ही हों। दूसरी ओर कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि वह देवता स्वयं भगवान हनुमान ही हो सकते हैं। अपनी खोज से वापस लौटते समय मॉर्ड अपने साथ निशानी के तौर पर काफी सारी चीज़ें लेकर आए थे, ताकि वैज्ञानिक उनकी खोज पर यकीन कर सकें।
खोज के कुछ तथ्य छिपाए
लेकिन हैरत की बात है कि मॉर्ड ने अपनी खोज की सारी बातें कभी भी विस्तार से नहीं बताई थी। ना ही उन्होंने कभी बताया कि जिस व्हाइट सिटी को उन्होंने खोज निकाला थ, उस तक पहुंचाने का रास्ता क्या है। मॉर्ग ने वैज्ञानिकों से कई पहलू बांटे लेकिन मूल संदर्भ से कुछ भी नहीं बताया।
मॉर्ड का भय
यह भी हो सकता है कि इन तथ्यों के अलावा और भी ना जाने कितने ही अनगिनत सबूत होंगे जो मॉर्ड ने वैज्ञानिकों से छिपा कर रखे थे। कहते हैं मॉर्ड नहीं चाहते थे कि वैज्ञानिक उनसे दोबारा जाने से पहले ही उस जगह को खोज निकालें और वहां की खूबसूरती और अनमोल वस्तुओं को चुराकर वहां की चीज़ों को नष्ट करें।
मॉर्ड की रहस्यमयी मौत
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि अचानक वर्ष 1954 में रहस्यमयी तरीके से मॉर्ड की मौत हो गई और उस जगह का हर एक राज़ उनके साथ ही खत्म हो गया। लेकिन उनके बताए हुए तथ्यों को आधार बनाकर हुए आज भी वैज्ञानिक उस जगह को खोज रहे हैं। उनका मानना है कि वे जल्द ही उस जगह को खोज निकालेंगे जिसका वर्णन मॉर्ड द्वारा वर्षों पहले किया गया था।