शिमला. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में पीने के पानी के लिए त्राहिमाम मचा है. पहाड़ों की रानी में इन दिनों लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं. शहर के लगभग सभी हिस्सों में 3 से 4 दिन बाद पानी आ रहा है, कई इलाकों में 6 से 7 दिन बाद पानी आ रहा है.शहर के कुछ इलाके तो ऐसे हैं, जहां पर लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. राजधानी के विकासनगर से एक ऐसी तस्वीर निकल कर आई है, जो बता रही है कि स्मार्ट बन रही सिटी के हाल क्या हैं.
विकासनगर में एक बाबड़ी से लोग पानी भर रहे हैं. यहां पर प्रशासन की तरफ से साफ लिखा गया है कि ये पानी पीने योग्य नहीं है, लेकिन हालात इस तरह के बने हैं कि लोग यहां से पीने के लिए पानी भर रहे हैं. पानी भरने के लिए कतारें लगी हुई हैं. यहां पर पशु भी घूम रहे हैं, लोग पानी भी भर रहे हैं और यहीं पर कपड़े धोने के लिए मजबूर हैं. यहां के स्थानीय निवासी बता रहे हैं कि अब इसके सिवाए कोई चारा नहीं बचा है. तस्वीर रविवार की है. गौरतलब है कि 2018 में शिमला पानी को लेकर इतना ज्यादा हाहाकार मच गया था कि टूरिस्ट से भी अपील करनी पड़ी थी कि वह शिमला ना आए.
समरहिल में होटल चलाने वाले एक कारोबारी को पानी खरीदना पड़ रहा है. शहर के सभी उप-नगरों में 3 से चार दिन बाद पानी आ रहा है. शहर में हर साल गर्मियों के मौसम में इस तरह की स्थिति पैदा हो रही है. मौसम की बेरूखी को देखते हुए लगता है कि अभी ज्यादा राहत मिलने की उम्मीद कम है. स्थिति ये हो गई है कि पीने के पानी के लिए एचपीयू के छात्रावासों में रह रहे छात्रों को प्रशासन का घेराव करना पड़ा. सोमवार को छात्रों ने अधिकारियों का घेराव किया तो एचपीयू में कार्यरत एसडीओ राजेश ठाकुर, जूनियर इंजीनियर जगदीश ठाकुर के साथ शिमला जल प्रबंधन निगम के जनरल मैनेजर आर.के.वर्मा के पास जा पहुंचे. शहरवासी नगर निगम शिमला और शिमला जल प्रबंधन निगम से लोग खासे नाराज हैं.
कितना पानी आ रहा है
इस बाबत शिमला जल प्रबंधन निगम के अधिकारी आरके वर्मा ने कहा कि समर सीजन पीक पर है. तापमान में बढ़ोतरी और बारिश न होने के चलते पानी के स्त्रोत सूख रहे हैं, जिन सोर्स से पानी आ रहा है, वहां पर भी कमी होने लगी है. उन्होंने बताया कि शहर में 35 हजार से ज्यादा उपभोक्ता है और हर रोज पानी देने के लिए शहर में 47 से 48 एमएलडी पानी की जरूरत पड़ती है. सोमवार को 36.3 एमएलडी पानी प्राप्त हुआ है.
गुम्मा और गिरी स्त्रोत से सबसे ज्यादा 42 एमएलडी पानी आता है, लेकिन यहां से भी कम पानी आ रहा है. इसके अलावा कोटी बरांडी, चुरट, अश्वनी खड्ड और सयोग जैसे छोटे सोर्स से 9 एमएलडी पानी प्राप्त होता था, लेकिन अब ये 2 से 3 एमएलडी पानी रह गया है.उन्होंने कहा कि 9 जून के बाद से शहर में वैकल्पिक दिनों में पानी दिया जा रहा है. 9 जून से तीसरे दिन पानी दिया जा रहा है, लेकिन शनिवार को हल्की बारिश के साथ आए तूफान से चाबा में राज्य बिजली बोर्ड की एक बड़ी एचटी लाइन पर पेड़ गिर गया, जिसके चलते आपूर्ति बाधित हुई, 24 घंटे बाद बिजली रिस्टोर हुई, अश्वनी खड्ड में लाइन टूट जाने से आपूर्ति बाधित हुई, इसी के चलते कुछ इलाकों में काफी दिनों बाद आपूर्ति हुई. उन्होंने कहा कि कोशिश यही की जा रही है कि सभी को बराबर मात्रा में पानी उपलब्ध करवाया जाए, अब उम्मीद है कि कुछ दिनों में बारिश होगी तो स्थिती सामान्य हो जाएगी. शिमला शहर में सभी स्त्रोतों से 10 जून को 36.04 एमएलडी, 11 जून को 36.31 और 12 जून को 32.01 एमएलडी पानी आया.
मेयर ने साधी चुप्पी, बोलने से इंकार
इस बाबत शहर की मेयर सत्या कौंडल से संपर्क करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कैमरे पर कुछ कहने से इनकार कर दिया और कहा कि कंपनी वाले इस बारे में बेहतर बता पाएंगे. इस पर कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि ग्रामीण इलाकों की महिलाएं पहले को पीएम का आभार जताती हैं कि हर जगह नलके लगा दिए लेकिन उसके बाद कहती हैं कि पानी नहीं आता है, हर जगह केवल टूटियां ही नजर आती हैं. उन्होंने कहा कि जल जीवन मिशन के तहत प्रदेश में हर जगह पाइपों के ढेर लगे हैं लेकिन इन पाइपों का कोई लेखा-जोखा नहीं है. प्रदेश के कई हिस्सों में पानी के हाहाकार मचा है, सरकार उचित प्रबंध करने में विफल रही है जबकि कांग्रेस की पूर्व सरकार ने शिमला शहर में पानी की आपूर्ति के लिए वर्ल्ड बैंक की मदद एक योजना शुरू की थी, जिस पर अभी काम चल रहा है.