महिलाओं, बच्चों को दे रही स्वस्थ रहने के टिप्स
आमतौर पर बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग योग से दूर हैं, लेकिन गोपालगंज की एक बेटी ने ग्रामीण क्षेत्रों में योग को घर-घर तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। प्रचार प्रसार से दूर ये छात्रा ग्रामीण क्षेत्रों में ना केवल महिलाओं को बल्कि बच्चों को भी योग (Yoga) द्वारा स्वस्थ रहने की टिप्स दे रही है।
गोपालगंज के हजियापुर वार्ड नंबर आठ की रहने वाली गीता सीमित संसाधनों में ना सिर्फ अपनी पीएचडी की पढ़ाई पूरी कर रही है, बल्कि चुपचाप समाज की बेहतरी के लिए अपने अभियान में लगी हुई है। जयप्रकाश विश्वविद्यालय की रिसर्च स्कॉलर गीता कुमारी हाशिये पर खड़े बच्चों के बीच योग के साथ शिक्षा का अलख भी जगा रही हैं।
गौर करने वाली बात है कि गीता जहां स्वयं सीमित संसाधनों में पली बढ़ी हैं। वहीं वे समाज में नई दिशा देने के लिए महिलाओं और बच्चों को नि:शुल्क योग की ट्रेनिंग भी दे रही हैं। इसके साथ-साथ गीता छोटे और गरीब बच्चों को कोचिंग पढ़ा कर उन्हें कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
गीता कहती हैं कि खुद को स्वस्थ रखने के लिए योग से अच्छा कुछ भी नहीं। योग का धर्म से कोई लेना देना नहीं है। गीता की पहचान आज योग के कारण गोपालगंज में है। वे कहती हैं कि योग आत्मा से परमात्मा को जोड़ने का माध्यम है, जो प्राकृतिक है। योग स्वास्थ्य लाभ के लिए है, जो लोग योग को धर्म से जोड़ते हैं, दरअसल वे योग की महत्ता को नहीं समझते। बचपन से योग के प्रति दिलचस्पी रखने वाली गीता का कहना है कि अगर व्यक्ति के पास कुछ भी योग्यता हो तो उसे समाज के लोगों के बीच बांटना चाहिए।
शाम का वक्त गीता अपने मुहल्ले और आसपास के सैकड़ों महिलाओं को योग सिखाने में बीताती हैं। गीता के पिता कोलकाता में व्यवसायी हैं, इसलिए वह अपने ननिहाल में रहकर बीते तीन सालों से बच्चों में शिक्षा का अलख भी जगा रही हैं। गीता उन बच्चों के लिए नि:शुल्क कोचिंग चलाती हैं जिसके अभिभावक उन्हें पढ़ा नहीं सकते।
बिहार विश्वविद्यालय से योग की शिक्षा ग्रहण कर चुकी गीता 2009 से ही टीवी पर बाबा रामदेव को देखकर योग सीखती थी। इसके बाद उन्हें पतंजलि संस्थान द्वारा हरिद्वार में योग का प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर मिल गया। इस प्रशिक्षण के बाद उन्होंने गांव-गांव तक योग को पहुंचाने का बीड़ा उठा लिया। इसके बाद उन्होंने गोपालगंज के लोगों को योग सिखाने लगीं। वर्ष 2013 से लोगों को योग सिखा रही गीता बताती हैं कि प्रारंभ में काफी कम संख्या में लोग योग के लिए आते थे, लेकिन अब बच्चे और महिला के अलावा पुरुषों में भी योग के प्रति आकर्षण बढ़ा है।
गीता बताती हैं कि गांवों में खासकर दलित बस्तियों में बच्चे स्कूल नहीं जाते। बच्चे दिनभर इधर-उधर घूमते थे। इसके बाद मैंने ऐसे बच्चों के लिए कोचिंग खोलने का निर्णय लिया। वे कहती हैं कि दिन में वे सिर्फ तीन ही घंटे बच्चों को पढ़ाती हैं, लेकिन उनमें शिक्षा के प्रति जागरूकता तो आ रही है। गीता गांव की महिलाओं को भी साक्षर बना रही हैं।
भविष्य की योजनाओं के संबंध में पूछे जाने पर गीता कहती हैं कि उनकी इच्छा गांव-गांव तक योग पहुंचाने की है, जिससे न केवल लोग स्वस्थ रहें बल्कि योग के जरिए सुख, शांति और सहयोग की भारतीय संस्कृति भी मजबूत हो सके।