इस इंजीनियर जोड़ी ने किया कमाल, इलेक्ट्रिक बुल का अविष्कार करके किसानों की परेशानी दूर कर दी

भारत मे आपदा के समय जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था और शहर में रोजी रोटी कमाने आये हुये लोग अपने गॉंव वापस जा रहे थे और सभी लोग अपने घरों में केद हो गये थे। उस समय हमने देखा कि एक नया ट्रेंड दुनिया में चल गया, जिसे हम वर्क फ्रॉम होम कहते है। जब यह ट्रेड दुनिया में चल रहा था।

उसी समय एक छोटी सी फैमली में पति इंजीनियर तुकाराम सोनवणे (Engineer Tukaram Sonewane) और उनकी वाइफ सोनाली वेलजाली (Sonali Somewane) भी वर्क फ्रॉम होम करने के लिए शहर से अपने ग्राम में वापस आ गये और यहा से अपना कार्य शुरू कर दिया।

यह दोनों महाराष्ट्र के पुणे (Pune, Maharashtra) में रहते थे और वही पर जॉब किया करते थे। लेकिन आपदा में इन्‍हें भी अपना कार्य छोड़ कर अपने गॉंव आना पड़ा और यह पहली बार था। जब वह अपने ननिहाल अंदरसुल में इतना अधिक समय बिताने आ गये थे।

लेकिन उनका यहां आना यहा के किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हुआ। सोनाली के पति तुकाराम एक मकैनिकल इंजिनियर हैं। वह बताते है कि पहले भी वह अपने गॉव कई बार समय बिताने आये थे। लेकिन 2 -4 दिन से अधिक वह अपने ननिहाल में नहीं रूक पाते थे।

लॉकडाउन में जब पूरे देश में आपदा अपने पैर पसार रही थी, तो उन्‍हें अपने घर आने का चांस मिला और वह पहली बार अपने घर में बेफिक्र होकर इस समय का पुरा लुफ्त उठाने अपने घर पहुँच गये। बहुत समय बाद उन्‍हें अपनी फैमिली और फ्रेंडस के साथ वक्‍त गुजारने का मौका मिला था।

थोड़े समय के बाद तुकानाम ने गॉंव में एक चीज नोटिस कि आज भी लोग यहा पर पारम्‍परिक तरीक से खेती करना ही पसंद करते है। वह अच्‍छी फसल के लिए पूरी तरह से अपनी मेहनत और घरेलू मवेशियों पर डिपेंड रहते है। तुकाराम को यह देख कर आश्‍चर्य हुआ कि वह लोग आज भी संघर्ष कर रहे है और नई टेक्‍नोलॉजी का ना के बराबर उपयोग कर रह है।

इंजीनियर तुकाराम की पत्नी सोनाली ने इंडस्ट्रियल इंजीनियर का कोर्स किया है। जब उन दोनों ने यह देखा कि किसान बहुत परेशान है उनको लागत अधिक लग रही है। तो उन्‍होंने इन किसानों के लिए कुछ करने का सोचा।

उन्‍होंने (Engineer Couple) यह ऑब्‍जर्व किया कि 1 एकड से लेकर 2 एकड तक जमीन वाला किसान बहुत अधिक परेशानी का सामना कर रहा है। उन्‍होने देखा कि किसान जुताई, कीटनाशकों का छिड़काव, कटाई इन सब कार्यो के लिए मशीनों किे जगह मजदूरों पर डिपेंड है। साथ ही मवेशियों कि देखभाल के लिए भी किसान जूझ रहा है और किसानों को अपने परिश्रम का पुरा फायदा भी नही मिला रहा है।

यह देखने के बाद दोनों ने किसानों कि मदद करने के लिए एक नया इन्‍वेंशन किया उन्‍होंने किसानों कि मदद के लिए इलेक्ट्रिक बैल बनाई। उन्‍होने यह इलेक्‍ट्रिक बैल गरीब छोटे किसानो कि मदद के लिए बनाई वह कहते है कि इसके उपयोग में केवल लागत का 1/10वां भाग ही खर्च होगा।

किसानों कि दिक्‍कतों को देखते हुये दोनों पति पत्‍नी ने किसानों कि सुविधा के लिए मशीन बनाने कि सोच तो ली। लेकिन वह किस तरह उसे बनाये यह उन्‍हें समझ नहीं आ रहा था। फिर एक दिन तुकाराम आपने एक दोस्‍त से मिले जो फैब्रिकेशन शॉप चलाते थे। उसे देख कर उन्‍होंने उसकी मदद अपने कार्य मे लेने की सोची। मशीन बनाने के लिए सभी आवश्‍यक सामान उन्‍होंने बाहर से मंगवाया जैसे इंजन इत्‍यादि।

सामान आने के बाद उन्‍होंने अपना उपकरण बनाना प्रारंभ कर दिया। जब उन्‍होंने यह कार्य प्रारंभ किया तो कुछ दिनों में गॉंव के सभी लोगो तक यह खबर पहुँच गई और उनके मन में इसके बारे में जानने कि इतनी जिज्ञासा जागी की वह लोग तुकाराम के घर आने जाने लगे। जब उनको पता लगा कि वह लोग यह मशीन उनकी मदद के लिए बना रहे है, तो वह लोग उनकी अत्‍यधिक तारीफ करने लगे और उन्‍हें शुभकामनाएं देने लगे कि उनका यह कार्य सफल हो।

इलेक्ट्रिक बैल की सहयता से किये जा सकते है बहुत से कार्य

तुकाराम कहते है कि खेती मे ऐसे बहुत से कार्य होते है, जो कि सिर्फ बैल के द्वारा ही किया जा सकता है। जैसे बीज बोना, पेडों के लिए स्‍थान कम करना इत्‍यादि क्‍योंकि अगर इसकी जगह हम ट्रेक्‍टर यूज करते है। तो फसल की जगह कम हो जाती है और इन चीजों के लिए ट्रेक्‍टर काफी बड़ा हो जाता है।

इंजीनियर तुकाराम बताते है कि उनके गॉाव में आधे किसानों के पास बैल नहीं है। जिसकी वजह से उन्‍हें बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ती है और पेस्‍टिसाइट को छिड़कना भी बहुत दिक्‍कत करता है और छोटी जगहों में ट्रेक्‍टर का यूज भी करना महंगा पड़ता है। इन सब बातों पर किसानों से चर्चा करने के बाद उन्‍होंने अपनी इलेक्‍ट्रिक बैल को बनाने में इतनी मेहनत की कुछ ही दिनों में उन्‍होंने अपना अविष्‍कार बना लिया।

समय के साथ लागत भी लगेगी कम

जब उनकी यह मशीन (Machine) बनकर तैयार हो गई, तो इसका परीक्षण करने के लिए दोनों ने आवेदन किया और फिर पैनल द्वारा मशीन की जांच की गई। तुकाराम बताते है, कि उनकी मशीन को पेनल द्वारा बहुत पसंद किया गया। उन्‍हें उनकी मशीन एटरेक्‍टिव लगी।

पेनल के मेम्‍बर अशोक चांडक ने उनके इस अविष्‍कार को और भी आधुनिक बनाने के लिए एक सुझााव दिया। उन्‍होने कहा कि उन्‍हें अपनी मशीन को इलेक्ट्रिक मशीन में परिवर्तित कर देना चाहिए। उनकी इस सलाह को मानते हुए तुकाराम और सोनाली इलेक्ट्रिक बुल (Electric Bull) को बनाने में लग गये ओर अपने इस इनोवेशन को बेचने के लिए उन्‍होंने ‘कृषिगति प्राइवेट लिमिटेड’ नाम का एक स्टार्टअप खोल लिया।

सोनाली बताती है कि उनका यह उपकरण चलाने के लिए सिर्फ एक ही व्‍यक्‍ति कि आवश्‍यकता होगी और इसके यूज से समय और लागत में भी कमी आयेगी। सोनाली बताती है कि किसानों को 2 एकड़ जमीन में जहॉ पुराने तरीके से रख-रखाव में 50000 रुपये लागत आती थी। वही इसके उपयोग से वह घटकर 5000 रुपये रह जायेगी। वह बताती है कि केवल 2 घंटे में यह मशीन चार्ज हो जाती है।

इस मशीन के सभी ट्रायल हुये पास

जब इस मशीन का परीक्षण किया गया तो देखा गया कि यह एक बार फुल चार्ज होने के बाद चार घंटे तक काम करता रहता है। सोनाली बताती हैं, कि बिना प्रचार किये उनकी मशीन को अन्‍य राज्‍य वाले खरीदने के लिए प्रस्‍ताव देने लगे है। वह बताती है कि अभी तक 10 कस्‍टमरों ने उनकी यह इलेकट्रिक बैल मशीन बुक भी कर कर ली है। और सात लोगो के साथ अभी बातचीत चल रही है।

 

इस मशीन का यूज करके देखने वाले महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के किसान सुभाष चव्हान बताते है, कि सोयाबीन कि खेती में उन्‍होंने जब इसका यूज किया तो कम समय में ही उनका कार्य हो गया और केवल 5000 रूपये का खर्चा आया वह बताते है, कि वह काम जो इस मशीन ने चंद घंटों में कर दिया वह काम दूसरों कि मदद से करने में उन्‍हें तीन दिनों का समय लगता।

सुभाष जी कहते है, कि यह मशीन किसानों के लिए बहुत ही लाभकारी है। वह किसान जो ट्रैक्टर खरीदने में असमर्थ है और किराए पर लेने का खर्चा नहीं उठा सकते। उनके लिए यह मशीन वरदान से कम नहीं है।

कई ऑर्डर्स से हुये सम्मानित

तुकाराम कि पत्‍नी सोनाली कहती है कि उनका इस प्रोडक्ट का प्रोडक्‍शन चालू है और वह कहती है, कि बहुत ही जल्द बाजार में उनकी यह मशीन उपलब्ध होगी। वह कहती है, कि हमारे देश में फसल का पैटर्न बदलता रहा है।

इसलिए हम चाहते है कि उस बदलाब में भी यह मशीन उनकी मदद करे इसिलए वह इसमें और इनोवेशन करते रहेंगे। वह कहती है कि अब वह इस मशीन को अफ्रीका, एशिया और यूरोपीय देशों में भी उपलब्‍ध कराने का मन बना रहे है। ताकि यह वहॉं भी किसानों की जरुरतें को पूरा कर सके।

सोनाली और तुकाराम अपने इस कृषि क्षेत्र में योगदान के विषय में कहते है, कि उन्होंने केवल अपने इंजीनियरिंग कौशल का उपयोग करके सिर्फ और सिर्फ किसानों की मदद करने के लिए यह अविष्‍कार किया है।

वह चाहते थे, कि किसानों कि परेशानियां थोडी कम हो और उनके समय और लागत में कमी आये। वह कहते है किे इंजीनियरिंग समस्याओं को दूर करने और समाधान खोजने का नाम है। उनके इस अविष्‍कार का श्रेय उनकी इंजीनियर कि पढ़ाई को जाता है। क्‍योंकि उससे ही उन्‍होंने यह मशीन बनाने का विचार अपने मन में लाया जिसमें वह सफल भी हुये।